दिल्ली के कई इलाकों में सीएए विरोध के नाम पर अंजाम दिए गए हिन्दू विरोधी दंगों के बाद एक बड़ा ग्रुप दंगाइयों को ही पीड़ित साबित करने में जुटा है। इनमें विपक्षी दल, लिबरल, वामपंथी और मीडिया का समुदाय विशेष भी शामिल है। इस बीच असली हिंदू पीड़ितों की गलियों में सन्नाटा पसरा हुआ है। पीड़ित घरों में मातम छाया हुआ है। यह कहानी हर एक उस हिंदू परिवार की है, जिस किसी ने अपने को खोया या फिर किसी दूसरे का जीवन में कमाया हुआ सब कुछ बर्बाद हो गया। कुछ ऐसी ही कहानी है बृजपुरी में रहने वाले राहुल ठाकुर की जिनको दंगाइयों ने मार डाला।
हम शनिवार को बृजपुरी स्थित राहुल ठाकुर के घर पहुँचे। घर के बाहर सांत्वना देने के लिए आसपड़ोस के लोग जुटे हैं। अपना सिर झुकाए गमगीन बैठे पिता को घर के बाहर, तो कमरे के अंदर बैठी कुछ महिलाएँ राहुल की माँ को संभाल रहीं थीं। हमने घटना के बारे में जानकारी लेने की कोशिश की तो वहाँ बैठे घटना के चश्मदीद अपनी आँखों देखी हमें बताने लगे। चश्मदीद, “सोमवार को चाँदबाग से शुरू हुई हिंसा एक के बाद दूसरे इलाकों में मजहबी भीड़ के साथ फैलती चली जा रही थी, जो कि करावल नगर होते हुए खजूरी, जाफराबाद और शिव विहार तक जा पहुँची। चारों और ईंट-पत्थरों की आवाज हुई तो हर कोई अपने घरों से बाहर की ओर यह देखने के लिए निकला कि आखिर हो क्या रहा है।”
चश्मदीद के मुताबिक, “हम सब गली के बाहर निकले। हमारे साथ राहुल भी था कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर हो क्या रहा है। इतने में ही देखा कि बृजपुरी मस्जिद की ओर से हजारों की संख्या में इस्लामी भीड़ हाथों में ईंट-पत्थर, हथियार लिए हमारी ओर चली आ रही है। हम अपने को संभाल पाते इससे पहले ही पता चला कि हमारे बगल में खड़े राहुल को एक गोली आकर लगी और वह पेट पकड़े जमीन पर गिर गया। सामने से मजहबी भीड़ को देख हमने आनन-फानन में राहुल को गोद में उठाया और पीछे वाले रास्ते से अस्पताल ले गए। कुछ देर चले उपचार के बाद डॉक्टरों ने राहुल को मृत घोषित कर दिया।”
इस बात की जानकारी दरवाजे पर बैठकर राहुल के घर आने का इंतजार रही माँ ममता देवी को जैसे ही हुई ऐसे ही वह दहाड़ मार-मार कर रोने लगीं और पूरे परिवार में कोहराम तो गली में मातम छा गया। राहुल के पिता आरपीएफ में हैं और पंजाब में तैनात हैं। उन्हें जैसे ही बेटे की मौत की खबर मिली पैरों तले जमीन खिसक गई और उनके मुँह से बस एक ही बात निकली “उसको क्या जरूरत थी घर से बाहर जाने की।”
बाहर बैठे लोगों से बात करने के बाद हमने राहुल की माताजी जी से मिलने की इच्छा जाहिर की। हमने कमरे में प्रवेश करने के लिए अपने जूते उतारे ही थे कि सामने बैठी राहुल की माताजी भरे हुए गले से जोर से बोलीं, “कमरे के अंदर आओ तो मेरे बेटे राहुल को लेकर ही आना, नहीं तो वापस चले जाना” इतना कहते ही ममता देवी फफक पड़ीं। इतनी भारी आवाज और उसमें छिपे दर्द और गुस्से को सुन एक बार तो मैं भी सिहर सा गया और दूर से ही माता जी तो प्रणाम कर वापस लौट लिया, क्योंकि जिस राहुल को वह मेरे साथ देखना चाहती थी, वह मेरे पास नहीं बल्कि भगवान के पास था, जिसे मजहबी भीड़ ने उनसे छीन लिया था।
बृजपुरी की गली नंबर 6 में रहने वाले 23 वर्षीय मनीष सिंह उर्फ राहुल ठाकुर SSC की तैयारी कर रहे थे। दो भाइयों में राहुल दूसरे नंबर पर थे। राहुल की मौत के बाद परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है। बड़े भाई अभिषेक का रो-रोकर बुरा हाल है। राहुल की मौत के बाद से वे घर से बाहर तक नहीं निकले हैं और न किसी से बात करने को तैयार हैं।