सिख विरोधी दंगों (Anti Sikh Riots) की दहशत आज भी पीड़ितों की आँखों में झलकता है। उन दिनों के हालात को याद करके आज भी लोगों के रोएँ खड़े हो जाते हैं। इन दंगों में सैकड़ों लोगों की जानें गईं और सैकड़ों महिलाओं के साथ रेप और गैंगरेप जैसी घटनाओं को अंजाम दिया गया।
31 अक्टूबर 1984 को ऑपरेशन ब्लूस्टार के विरोध में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की उनके ही दो सिख सुरक्षाकर्मियों ने हत्या कर दी। इसके बाद देश के कई हिस्सों में सिख विरोधी दंगे भड़क उठे थे। इन दंगों से सबसे अधिक प्रभावित दिल्ली हुआ था। कहा जाता है कि कॉन्ग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं की अगुवाई में दंगाइयों ने सिख पर ऐसा जुल्म ढाया कि वे याद कर आज भी सिहर उठते हैं।
दिल्ली के तिलक विहार में रहने वाली 55 साल की पप्पी कौर उन भयावह दिनों को याद कर रुआँसी हो उठती हैं। अक्टूबर का महीना था। वे अपने परिवार के साथ घर में खाना खा रही थीं। उसी वक्त भीड़ ने परिवार के सामने उनके पिता के गले में टायर डालकर आग लगा दिया। उनके 18 साल के भाई को भी नहीं छोड़ा गया।
पप्पी कौर उस मनहूस रात को याद करते हुए कहती हैं, “दंगाई आए और हम महिलाओं को लाइन में लगाकर खुले में बैठा दी गईं। इसके बाद टॉर्च लिए घूमने लगे। वे एक-एक महिला के चेहरे पर रोशनी डालकर देखते और उनके शरीर को ऊपर से नीचे तक घूरते। पसंद आने पर उनको उठाकर ले जाते।”
पप्पी कौर बताती हैं कि एक-एक औरत को चार-चार लोग उठाकर ले गए। इनमें से कितनी महिलाएँ वापस नहीं लौटीं। जो महिला वापस लौटी वह पहले जैसी नहीं रह सकी। पप्पी कौर बताती हैं कि दहशत के कारण गर्भवती महिलाओं के बच्चे हो जाते और बच्चे भी ज्यादातर मुर्दा पैदा होते।
इसी तरह 50 साल की निर्मल कौर की कहानी है। निर्मल कहती हैं कि भीड़ ने उनके पिता को खींचकर उनके ऊपर कोई पाउडर डाला (संभवत: फॉस्फोरस) और उन्हें आग लगा दी। वह बचाने के लिए गई तो उन्हें पकड़कर दूर फेंक दिया गया। निर्मल बताती हैं कि इन दंगों में उनके पिता के अलावा, भाई, चाचा, ताऊ, मौसा तक मार दिया गया।
निर्मल कौर बताती हैं कि यह सिलसिला 3 नवंबर तक चलता रहा। 3 नवंबर को आर्मी और पुलिसवाले आए जले हुए लोगों को ट्रक में ठूंसने लगे। इनमें कई जिंदा थे। उनका सिर हिल रहा था। कई लोग पानी-पानी बुदबुदा रहे थे, लेकिन उन पर रहम ना करके सबको ट्रक में डालकर यमुना नदी में फेंक दिया गया।
दैनिक भास्कर को निर्मल कौर ने बताया कि उस दौरान एक महिला का बच्चा प्यास से तड़प रहा था, लेकिन उस दिन किसी के पास पानी नहीं था। आखिरकार अपने बच्चे की जान बचाने के लिए महिला ने अपना पेशाब छोटे बच्चे को पिलाया।
इन दंगों की शिकार महिलाओं के लिए तिलक नगर में 2 हजार फ्लैट वाला ‘विडो कॉलोनी’ है, जिनमें विधवा महिलाएँ रहती हैं। उनके पिता-पति को उन दंगों में मार दिया गया था। इन महिलाओं को काम के नाम पर चपरासी की नौकरी मिली, लेकिन न्याय आज तक नहीं मिला।
रिपोर्ट के मुताबिक, इन दंगों में दिल्ली में ही करीब 2700 लोग मारे गए थे, जबकि देशभर में मरने वालों का आँकड़ा करीब 3500 था। इस केस में कॉन्ग्रेस नेता सज्जन कुमार को आजीवन कारावास की सजा मिली। वहीं, अन्य आरोपित बलवान खोकर, भागमल और गिरधारी लाल को उम्रकैद की सजा मिली, जबकि महेंद्र यादव और किशन खोकर को 10 साल की सजा दी गई।
इन दंगों को लेकर इंदिरा गाँधी के बेटे और बाद में देश के प्रधानमंत्री बने राजीव गाँधी ने कहा था कि जब बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही है। 19 नवंबर 1984 को राजीव गाँधी बोट क्लब में लोगों के सामने कहा था, “जब इंदिरा जी की हत्या हुई थी तो हमारे देश में कुछ दंगे-फसाद हुए थे। हमें मालूम है कि भारत की जनता को कितना क्रोध आया, कितना ग़ुस्सा आया और कुछ दिन के लिए लोगों को लगा कि भारत हिल रहा है। जब भी कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती थोड़ी हिलती है।”