Sunday, September 15, 2024
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नाना ने जमीन दी, माँ ने आपातकाल में रिपोर्टिंग के लिए बेदखली का भेजा नोटिस, राजीव गाँधी ने भी जारी रखी प्रताड़ना: 37 साल बाद IndianExpress को कोर्ट से मिली राहत

जब हाई कोर्ट ने एक्सप्रेस पर बकाया राशि की गणना करने के लिए कहा तो सरकार का जवाब में 17,684 करोड़ रुपए बताया था। कोर्ट के बार-बार पूछने और कई वकीलों के बदलने के बाद केंद्र सरकार ने यह राशि घटाकर 765 करोड़ रुपए कर दी। अब इस मामले में जस्टिस प्रतिभा सिंह ने फैसला सुनाया है कि केंद्र सरकार द्वारा गणना की गई राशि 'अविश्वसनीय, अनुचित और अत्यधिक' है।

दिल्ली हाई कोर्ट ने शुक्रवार (30 अगस्त 2024) को केंद्र सरकार द्वारा इंडियन एक्सप्रेस अखबार को जारी किए गए 37 साल पुराने बेदखली नोटिस को खारिज कर दिया। इस नोटिस में अखबार को दिल्ली के बहादुर शाह जफर रोड स्थित बिल्डिंग खाली करने की माँग की गई थी। कोर्ट ने कहा कि तत्कालीन कॉन्ग्रेस सरकार का नोटिस प्रेस की स्वतंत्र को दबाने तथा उसके आय के स्रोत को समाप्त करने के लिए था।

दिल्ली हाई कोर्ट की जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने कहा कि जिस नोटिस के जरिए सरकार ने अखबार के भवन की लीज समाप्त की थी, वह इंडियन एक्सप्रेस को कभी दिया ही नहीं गया। न्यायमूर्ति प्रतिभा सिंह ने कहा कि अखबार के दफ्तर को उस भवन से निकालने के लिए तत्कालीन सरकार द्वारा नोटिस एवं प्रयास किए गए। यह सब प्रेस की स्वतंत्रता को खत्म करने के लिए था।

अदालत ने कहा, “किराएदारों को नोटिस जारी करके उन्हें एल एंड डीओ के पास किराया जमा करने का निर्देश देना तत्कालीन सरकार की ओर से पूरी तरह से दुर्भावनापूर्ण कार्य है। इसका उद्देश्य केवल एक्सप्रेस न्यूजपेपर्स को चुप कराना और इसके आय के स्रोतों को खत्म करना था। इससे अधिक कुछ नहीं। इस प्रकार, उक्त नोटिस मनमाने और दुर्भावनापूर्ण माने जाते हैं।”

अदालत ने आगे कहा, “वास्तव में 2 नवंबर 1987 का वह नोटिस, जिसके द्वारा लीज समाप्त की गई थी, एक्सप्रेस न्यूजपेपर्स को कभी नहीं दिया गया और उसके बाद एक प्रति खरीदी गई। एक्सप्रेस न्यूजपेपर्स को 15 नवंबर 1987 के टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर से इस बारे में पता चला। उस समय की सरकार का ऐसा आचरण कम से कम कहने के लिए कुछ और नहीं बल्कि दुर्भावना से प्रेरित है।”

चूँकि, सरकार का कार्य अवैध था और मुकदमा लगभग पाँच दशकों तक चला, इसलिए न्यायालय ने कहा कि एक्सप्रेस को 5 लाख रुपए का जुर्माना अदा किया जाना चाहिए। दरअसल, जिस जमीन पर एक्सप्रेस बिल्डिंग बनी हुई है, उसे तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस पेपर के मालिक रामनाथ गोयनका को 1950 के दशक में दिया गया था।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, इंडियन एक्सप्रेस को शुरुआत में यह जमीन तिलक ब्रिज के पास आवंटित की गई थी, लेकिन पंडित नेहरू के आग्रह पर गोयनका ने इसे वापस लौटा दिया। इसके बदले में रामनाथ गोयनका ने बहादुर शाह जफर मार्ग पर जमीन लेने के लिए राजी हो गए थे। मार्च 1980 में कॉन्ग्रेस की केन्द्र सरकार ने एक्सप्रेस को फिर से एंट्री करने और ध्वस्तीकरण का नोटिस जारी किया।

सरकार की इस नोटिस को पर अखबार ने कहा कि यह सब इंदिरा गाँधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के दौरान सरकार द्वारा की गई ज्यादतियों की रिपोर्टिंग का प्रतिशोध था। इसके बाद वह इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में लेकर गया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की 3 सदस्यीय बेंच ने साल 1986 में सरकार द्वारा जारी नोटिस को खारिज कर दिया। कोर्ट ने नोटिस को मौलिक अधिकारों का हनन बताया था।

सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के बाद कॉन्ग्रेस की सरकार ने अखबार को फिर से नोटिस भेजना शुरू कर दिया। उस समय केंद्र में राजीव गाँधी की सरकार थी। इसके बाद इस मामले को टाइम्स ऑफ इंडिया ने 15 नवंबर 1984 को अपने अखबार में उठाया। इसमें कहा गया है कि केंद्र सरकार ने नोटिस जारी करने के बाद एक्सप्रेस बिल्डिंग पर नियंत्रण कर लिया है।

हालाँकि, अखबार ने कहा कि उसे कोई भी नोटिस नहीं मिला है। इस विषय में उसने केंद्र सरकार को भी लिखा। इसको लेकर सरकार ने अदालत का रूख किया। वहीं, अखबार ने भी कोर्ट में मामला दर्ज किया। कई आरोपों के बीच सरकार ने कहा कि एक्सप्रेस ने समाचार पत्र के अलावा अन्य व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए परिसर का उपयोग किया है तथा वहाँ अनाधिकृत निर्माण हुआ है।

जब हाई कोर्ट ने एक्सप्रेस पर बकाया राशि की गणना करने के लिए कहा तो सरकार का जवाब में 17,684 करोड़ रुपए बताया था। कोर्ट के बार-बार पूछने और कई वकीलों के बदलने के बाद केंद्र सरकार ने यह राशि घटाकर 765 करोड़ रुपए कर दी। अब इस मामले में जस्टिस प्रतिभा सिंह ने फैसला सुनाया है कि केंद्र सरकार द्वारा गणना की गई राशि ‘अविश्वसनीय, अनुचित और अत्यधिक’ है।

दिल्ली हाई कोर्ट ने पाया कि सरकार द्वारा जारी किया गया लीज समाप्ति का नया नोटिस 1986 में ‘सर्वोच्च न्यायालय के श्रमसाध्य निर्णय की पूर्ण अवहेलना’ है। इसमें यह भी कहा गया कि अखबार ने पट्टे की शर्तों का उल्लंघन नहीं किया है। हाई कोर्ट ने कहा कि अखबार को केवल रूपांतरण शुल्क और अतिरिक्त भूमि किराया देना होगा, जो लगभग 64 लाख रुपए है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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