दिल्ली हाईकोर्ट ने देश में समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code या UCC) की आवश्यकता पर बल देते हुए केंद्र सरकार से इसके विषय में आवश्यक कदम उठाने के लिए कहा है। कोर्ट ने कहा कि UCC के कारण समाज में झगड़ों और विरोधाभासों में कमी आएगी, जो अलग-अलग पर्सनल लॉ के कारण उत्पन्न होते हैं। यह आदेश जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने 7 जुलाई 2021 को हिन्दू मैरिज ऐक्ट 1955 से जुड़ी एक याचिका पर विचार करते हुए दिया।
The Delhi High Court backs the need for a Uniform Civil Code (UCC) observing that “there is the need for a Code – ‘common to all’ in the country and asked the Centre government to take the necessary steps in this matter.”
— ANI (@ANI) July 9, 2021
UCC के संबंध कोर्ट के प्रेक्षण:
मीणा समुदाय के दो पक्षों के बीच उत्पन्न विवाद पर सुनवाई करते हुए जस्टिस सिंह ने कहा कि अदालतों को कई बार पर्सनल लॉ से उत्पन्न हुए संघर्षों का सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि अलग-अलग समुदाय, जाति अथवा धर्म के जो लोग वैवाहिक संबंध स्थापित करते हैं उन्हें इन पर्सनल लॉ के कारण विवादों से गुजरना पड़ता है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत के युवाओं को बार-बार (खासकर शादी और तलाक के मुद्दे पर) असमानता से जुड़े इन मुद्दों से जूझने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।
जस्टिस सिंह ने UCC के मामले में संविधान का हवाला देते हुए कहा कि भारत में UCC संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत परिभाषित किया गया है। जस्टिस सिंह ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के द्वारा भी समय-समय पर इसे दोहराया जाता रहा है और वर्तमान में एक ऐसे सिविल कोड आवश्यकता है जो सभी के लिए एक जैसा हो। यह हर समाज के शादी, तलाक और उत्तराधिकार के मामलों में समान सिद्धांत लागू करे।
मुस्लिमों को छोड़ बाकी समुदायों के कानून संहिताबद्ध:
वर्तमान में हिन्दू धर्म और विभिन्न अन्य समुदायों में शादी, तलाक, गोद लेने, उत्तराधिकार और विरासत आदि मामलों की वैधानिक स्वीकार्यता के लिए अलग-अलग कानून संहिताबद्ध हैं। इन कानूनों में हिन्दू मैरिज ऐक्ट, हिन्दू उत्तराधिकार कानून, इंडियन क्रिश्चियन मैरिज ऐक्ट, इंडियन डिवोर्स ऐक्ट, पारसी मैरिज ऐक्ट और डिवोर्स ऐक्ट अस्तित्व में हैं। इन संबंधित धर्मों और संप्रदायों में संहिताबद्ध कानूनों के तहत ही कार्रवाई की जाती है, लेकिन मुस्लिमों में ऐसा नहीं है।
उनके पर्सनल लॉ, शरीयत और उनके धार्मिक ग्रंथों के हिसाब से संहिताबद्ध किए गए हैं। हालाँकि, तीन तलाक के मुद्दे पर सत्तारूढ़ वर्तमान मोदी सरकार ने कानून बनाकर मुस्लिमों और अन्य संप्रदायों के बीच के अंतर को पाटने का प्रयास अवश्य किया है, लेकिन इस कानून के कारण अक्सर मोदी सरकार इस्लामिक कट्टरपंथियों के निशाने पर रहती है।
UCC की संवैधानिक स्थिति:
संविधान के भाग 4 में अनुच्छेद 36 से लेकर 51 तक राज्य के नीति निदेशक तत्वों का वर्णन किया गया है। ये निदेशक तत्व, मूल अधिकारों की मूल आत्मा कहे जाते हैं। इन्हीं नीति निदेशक तत्वों में अनुच्छेद 44 के अंतर्गत समान नागरिक संहिता (UCC) का उल्लेख किया गया है। इसके विषय में सबसे रोचक बात यह है कि भले ही नीति निदेशक तत्व प्रकृति में गैर-न्यायिक होते हैं, लेकिन ये किसी कानून की संविधानिकता का निर्धारण कर सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कई बार यह व्यवस्था दी है कि यदि कोई कानून सीधे तौर पर राज्य के नीति निदेशक तत्वों को प्रभावी करना चाहता है तो सुप्रीम कोर्ट ऐसे कानून को अनुच्छेद 14 अथवा अनुच्छेद 19 के संबंध में तर्कसंगत मानते हुए असंवैधानिक कहे जाने से बचा सकता है। इसका मतलब यह हुआ कि UCC का यह कहकर विरोध नहीं किया जा सकता है कि इसके द्वारा किसी मूल अधिकार का हनन हो रहा है।