दिल्ली में हुए हिंदू विरोधी दंगों के मामले में एक हैरान करने वाले ख़बर सामने आई है। दिल्ली दंगों के संबंध में कुछ ऐसे सबूत मिले हैं, जिनमें बेहद साफ़ तौर पर कहा जा रहा है – “सड़कों पर उतरेंगे।” यानी एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन की आड़ में दंगे और हिंसा भड़काई गई।
इन दंगों को अंजाम देने के लिए मीटिंग भी हुई थी और उस मीटिंग में शामिल हुए एक चश्मदीद ने कई हैरान कर देने वाली बातें कही हैं। चश्मदीद की बात इस ओर इशारा करते हैं कि दिल्ली दंगे पूरी तरह सुनियोजित थे।
दिल्ली दंगों के मामले में एक चश्मदीद ने मजिस्ट्रेट के सामने गवाही दी है। उसने गवाही में कहा, “वो कहते थे कि हमें सड़कों पर उतरना पड़ेगा और खून बहाना पड़ेगा, प्रदर्शन से काम नहीं चलेगा। पूरे प्रदर्शन के दौरान भाईचारे, सहिष्णुता और मजहब विशेष पर होने वाले अत्याचार की बात करते हुए वो इसकी आड़ में जनजीवन ठप्प करना चाहते थे। हर योजना की तैयारी कर ली गई थी, जिसके परिणामस्वरूप भारी भीड़ इकट्ठा हुई थी। ऐसी भीड़ जो पूरी तरह तैयार थी, और उनके पास हिंसा भड़काने के लिए हथियार तक मौजूद थे।”
मतलब लिबरल मीडिया ने दिल्ली दंगों को जो स्वतःस्फूर्त बताया, वो एक छलावा मात्र था। इस हिंसा की योजना बहुत पहले ही तैयार कर ली गई थी। हर एक दिन, हर एक कदम की प्लानिंग की गई थी। किसे मारना है, यह तक तय था। पुलिस वालों की हत्या तक करनी है, यह भी तय था और इसे अंजाम भी दिया गया।
सड़क जाम करना है। सरकार को झुकाना है। प्रशासन को उसकी औकात बतानी है। – यह सब ऊपरी बातें थीं, जहाँ भीड़ होती थी, वहाँ की बातें थीं, जहाँ मीडिया या वीडियो लिए जाते थे, वहाँ की बातें थीं। असली बात तो इनकी कोर मीटिंग में होती थी – काफिरों को मारने वाली बात। दिल्ली पुलिस को यह बात भी उस गवाह ने ही बताई है।
इसके अलावा चश्मदीद ने कहा, “दंगे भड़काने की योजना बनाने के दौरान यहाँ तक बात हुई कि हथियार जमा करने होंगे। सिर्फ बैठे रहने से और इंतज़ार करने से कुछ हासिल नहीं होगा। इस क़ानून (सीएए और एनआरसी) को रोकने के लिए सड़कों पर खून भी बहाना पड़ा, तो वह भी करेंगे।”
दिल्ली दंगों की साजिश के पीछे जिनका हाथ था, वो हिंसा का आरोप भी किसी और पर मढ़ने का प्लान बना चुके थे। गवाह ने मीटिंग में हुई बात को बताया, “अब बहुत ज़रूरी हो गया है कि हम इस हिंसा का आरोप किसी और पर डाल दें। सबसे अच्छा यह होगा कि हम दिल्ली के मुख्यमंत्री पर दबाव डालें कि वह पूरी हिंसा का आरोप दिल्ली पुलिस पर लगा दें। जब तक हम चुप होकर बैठे रहेंगे, तब तक हमें कुछ नहीं मिलने वाला है, हमें अपने अधिकारों के लिए सड़कों पर उतरना होगा।”