नूपुर शर्मा पर सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों जस्टिस सूर्यकान्त और जस्टिस जेबी पारदीवाला की विवादित टिप्पणी पर रार थमता नहीं दिख रहा है। 15 सेवानिवृत्त जजों, 77 रिटायर्ड नौकरशाहों और 25 पूर्व सैन्य अधिकारियों ने खुला पत्र जारी कर के नूपुर शर्मा पर सुप्रीम कोर्ट के दोनों जजों की टिप्पणी को ‘दुर्भाग्यपूर्ण और गलत उदाहरण पेश करने वाला’ करार दिया है। नूपुर शर्मा पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के इन दोनों जजों ने विवादित टिप्पणी की थी।
Open letter written to Supreme Court in support of Nupur Sharma@anany_b brings in more details
— News18 (@CNNnews18) July 5, 2022
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पत्र में लिखा है कि हम एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते ये विश्वास रखते हैं कि किसी भी देश का लोकतंत्र तभी तक अक्षुण्ण रहेगा, जब तक उसकी सारी संस्थाएँ संविधान के हिसाब से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करती रहेंगी। उन्होंने लिखा कि सुप्रीम कोर्ट के दो जजों द्वारा की गई ताज़ा टिप्पणी ‘लक्ष्मण रेखा’ का उल्लंघन है और हमें इस पर बयान जारी करने के लिए मजबूर होना पड़ा। उन्होंने लिखा कि इन टिप्पणियों से देश-विदेश में लोगो को हैरानी हुई है।
पत्र में लिखा है, “जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला द्वारा की गई टिप्पणियाँ, जो कि जजमेंट का हिस्सा नहीं हैं – किसी भी तरह से न्यायिक उपयुक्तता और निष्पक्षता के दायरे में नहीं आती। ऐसे अपमानजनक तरीके से कानून का उल्लंघन न्यायपालिका के इतिहास में आज तक नहीं हुआ। इन बयानों या याचिका से कोई लेनादेना नहीं था। नूपुर शर्मा को न्यायपालिका तक पहुँच से मना कर दिया गया और ये संविधान की भावना के साथ-साथ प्रस्तावना का भी उल्लंघन है।”
पत्र में आगे लिखा है कि जजों का ये बयान कि देश में जो कुछ भी हो रहा है, उसके लिए सिर्फ और सिर्फ नूपुर शर्मा जिम्मेदार हैं – इसका कोई औचित्य नहीं बनता। सेवानिवृत्त जजों, अधिकारियों और सैन्य अधिकारियों ने लिखा कि ये सब कह कर जजों ने एक तरह से उदयपुर में सिर कलम किए जाने की क्रूर घटना के अपराधियों को दोषमुक्त करार दिया है। पत्र में लिखा है कि देश की दूसरी संस्थाओं को नोटिस दिए बिना उन पर टिप्पणी चिंताजनक और सतर्क करने वाला है।
In an open letter, #retiredjudges #bureaucrats #armyofficers condemn the observations made by the #SupremeCourtOfIndia in the #NupurSharama case. https://t.co/c8ZFICxMq4 pic.twitter.com/LTC1QgvFke
— Satya Tiwari (@SatyatTiwari) July 5, 2022
पत्र में आगे लिखा है कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की न्यायपालिका के इतिहास पर यर टिप्पणियाँ धब्बे की तरह हैं। इस पर आपत्ति जताई गई है कि याचिकाकर्ता को बिना किसी सुनवाई के दोषी ठहरा दिया गे और न्याय देने से इनकार कर दिया गया, जो किसी लोकतांत्रिक समाज की प्रक्रिया नहीं हो सकती। साथ ही याद दिलाया गया है कि एक ही अपराध के लिए कई सज़ा का प्रावधान नहीं है, इसीलिए नूपुर शर्मा FIRs को ट्रांसफर कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुँची थीं।