Sunday, November 24, 2024
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’41 किसानों की मौत’: लौट आया ‘नोटबंदी से होने वाली मौत’ वाला नैरेटिव किसान आंदोलन में भी

जिस तरह से किसी भी मौत को किसान आंदोलन से जोड़ दिया जा रहा है, ठीक ऐसा ही चलन मीडिया से लेकर राजनीतिक बयानबाजी में नोटबंदी के दौरान भी देखने को मिला था जब किसी भी दुर्घटना के कारण हुई मौत को नोटबंदी से हुई मौत को ठहराया जाने लगा था।

तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन एक महीने से ज्यादा समय से चल रहा है। अपनी माँगों पर अड़े हुए किसान दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों में धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। इस बीच रविवार (दिसंबर 27, 2020) को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने भी किसान आंदोलनों को अपना समर्थन देते हुए कहा कि ‘हमारे किसान साथियों को 32 दिनों से सर्दी में रहना पड़ रहा है’ और आंदोलन के दौरान हुई 40 किसानों की मौत ने उन्हें बहुत दुःख पहुँचाया है।

किसान आंदोलनों के दौरान हुई किसानों की कथित मौत को लेकर काफी बयानबाजी देखने को मिल रही है। लेकिन क्या किसान आंदोलनों में सामने आ रही किसानों की मौत वास्तव में उनकी माँगों या फिर धरना प्रदर्शन से जुड़ी हुई हैं? लेकिन जिस तरह से किसी भी मौत को किसान आंदोलन से जोड़ दिया जा रहा है, ठीक ऐसा ही चलन मीडिया से लेकर राजनीतिक बयानबाजी में नोटबंदी के दौरान भी देखने को मिला था जब किसी भी दुर्घटना के कारण हुई मौत को नोटबंदी से हुई मौत को ठहराया जाने लगा था। यहाँ तक दावे किए गए कि नोटबंदी की मार से 32 दिन में 100 से अधिक लोगों ने अपनी जान गँवाई। 

बताया जा रहा है कि पंजाब और हरियाणा में 15 सितंबर से अब तक पंजाब के साथ-साथ दिल्ली में 41 किसानों की मौत हो चुकी है। इनमें से 30 मौतें अकेले पंजाब के मालवा बेल्ट से, दोआब बेल्ट से 6, माझा बेल्ट से 2 और हरियाणा से 3 बताई जा रही हैं।

किसानों की जिन मौतों को इस आंदोलन से जोड़कर सामने रखा जा रहा है, उनमें से कई मौत तो वास्तव में किसी व्यक्ति के सल्फास खाने, दुर्घटना का शिकार होने आदि कारणों से हुई हैं। यहाँ तक कि इनमें से कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने कर्ज के चलते कथित तौर पर आत्महत्या की हैं।

हमने सिर्फ जाँचने के लिए सबसे पहले आई कथित तौर पर ‘किसान आंदोलनों से जुड़ी मौतों’ की कुछ खबरों की पड़ताल की, तो पता लग गया कि ये आँकड़ा और कहानियाँ भ्रामक और गुमराह करने वाली हैं। इन लोगों की मौत की वजहों को देखकर उन तमाम मौतों पर संदेह पैदाता है, जिन्हें इस आंदोलन से जोड़कर बताया जा रहा है।

किसान आंदोलनों के कारण होने वाली कथित तौर पर पहली मौत 18 सितंबर को बताई जा रही है। दरअसल, पंजाब के मनसा गाँव के रहने वाले 65 वर्षीय प्रीतम सिंह ने पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के घर के बाहर धरने पर जानलेवा सल्फास की गोलियाँ खा ली थीं। प्रीतम सिंह के परिवार को सरकार द्वारा 3 लाख रुपए का मुआवजा, एक परिवार के सदस्य को नौकरी और कर्ज माफ़ी के आश्वासन के वायदे के बाद ही मृतक के शरीर का अंतिम संस्कार किया गया।

इन्हीं मौतों में दो महिलाएँ की मौत भी जोड़ी गई हैं। इन महिलाओं में से एक थीं 80 साल की तेज कौर! तेज कौर की मौत बुढलाडा में 8 अक्टूबर को रेलवे ट्रैक पर गिरने से हुई थी। जबकि गुरमेल कौर की मौत बठिंडा में विरोध प्रदर्शन के दौरान दिल का दौरा पड़ने से हुई। ख़ास बात यह है कि रेलवे ट्रैक पर गिरने और दिल का दौरा पड़ने से हुई मौतें भी किसान आंदोलन का हिस्सा बताई जा रही हैं।

26 नवंबर को जब किसान पंजाब से दिल्ली की ओर रवाना हुए तो 27 नवंबर को एक और मौत दर्ज की गई। पंजाब के मनसा गाँव के 45 वर्षीय धन्ना सिंह के ट्रैक्टर के भिवानी के पास एक ट्रक की चपेट में आने से मौत हो गई। उनके परिवार को पंजाब सरकार द्वारा मुआवजे में 5 लाख रुपए दिए गए।

समाचार पत्र ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, कई प्रदर्शनकारियों की मौत दिल्ली में ठंड के कारण भी हुई हैं। जबकि कुछ लोग कोहरे के कारण सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए। वहीं, गुरलभ सिंह, जिस पर 6 लाख से अधिक का कर्ज था, की मौत की जाँच पंजाब पुलिस कर रही है और बताया जा रहा है कि उसकी मौत का कारण विषैला पदार्थ खाकर आत्महत्या करना है।

इन लोगों की मौत का वास्तविक कारण सामने रखने का कारण यह भी है कि ठीक ऐसा ही माहौल राजनेताओं द्वारा नोटबंदी के दौरान भी बनाया गया था। ऐसा प्रतीत होता है कि नोटबंदी के समय भी सौ लाशों की गिनती पूरी करने वाले विपक्ष ने जैसे सामान्य मौतों को भी लाइन में खड़े हो कर मरने वाली मौत कह दी थी, वैसे ही कोई भी, कहीं भी आत्महत्या कर रहा है, या फिर ट्रक के टक्कर से दुर्घटनावश मर रहा है, उसे किसान आंदोलन वाले तत्परता से वैसे ही अपना बना रहे हैं जैसे खालिस्तानियों के नेताओं को।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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