एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले के आरोपित कथित आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता स्टेन स्वामी का सोमवार (जुलाई 5, 2021) को कार्डियक अरेस्ट से निधन हो गया। 84 वर्षीय स्वामी पार्किंसंस रोग सहित कई बीमारियों से पीड़ित थे। वह पिछले साल कोविड से भी संक्रमित हुए थे। बॉम्बे हाईकोर्ट में उनकी बेल याचिका की सुनवाई के समय स्वामी के वकील मिहिर देसाई ने यह जानकारी दी।
BREAKING : Father Stan Swamy passes away, counsel informs Bombay High Court when the Court took up his bail plea.#StanSwamy https://t.co/GuLikkz7Q7
— Live Law (@LiveLawIndia) July 5, 2021
इससे पहले खबर आई थी कि रविवार रात तक, 84 वर्षीय फादर स्टेन स्वामी जीवन रक्षक प्रणाली पर थे। 28 मई से उनका इलाज होली फैमिली हॉस्पिटल में चल रहा था।
Father Stan Swamy passed away! #StanSwamy #BombayHighCourt pic.twitter.com/EPgP0G0gxL
— Bar & Bench (@barandbench) July 5, 2021
फादर स्टेन स्वामी का पक्ष रख रहे सीनियर एडवोकेट मिहिर देसाई ने सुनवाई की शुरुआत में कहा, “इससे पहले कि मैं कुछ भी कहूँ, मेडिकल डायरेक्टर डॉ. डिसूजा कुछ कहना चाहेंगे।” इसके बाद डिसूजा ने कोर्ट को स्वामी के निधन की जानकारी दी। डिसूजा ने कहा, “शनिवार को सुबह 4.30 बजे उन्हें कार्डियक अरेस्ट आया, हम उन्हें बचा नहीं सके।”
Matter to be taken up at 2.30 pm.
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In the praecipe for urgent production, Father Swamy's lawyers have said he had to be revived after administering CPR and his condition is extremely critical. #BombayHighCourt #StanSwamy
बता दें कि भीमा कोरेगाँव मामले में स्टेन स्वामी को राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) ने 8 अक्टूबर को हिरासत में लिया था। फादर स्टेन स्वामी पर दो साल पहले महाराष्ट्र के भीमा कोरेगाँव में हुई हिंसा व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश रचने में संलिप्तता का आरोप था। उनके विरुद्ध भीमा कोरेगाँव मामले में एनआईए ने उन पर आतंकवाद निरोधक क़ानून (यूएपीए) की धाराएँ भी लगाई गई थीं।
हालाँकि केरल के मूल निवासी और कथित मानवाधिकार कार्यकर्तास्टेन स्वामी (Father Stan Swamy) ने पूरे मामले में संलिप्तता से इनकार किया था। कोरेगाँव भीमा मामले की जाँच कर रही एनआईए की एक टीम ने नामकुम स्टेशन परिसर में फादर स्टेन स्वामी को गिरफ्तार किया था।
फादर स्टेन स्वामी ख़ुद को एक सामाजिक कार्यकर्ता बताते थे और आदिवासी क्षेत्रों में वह अक्सर सक्रिय रहता थे। पिछले कई दशकों से वह आदिवासियों के बीच सक्रिय थे। वह मानवाधिकार की बातें भी करते थे और इसे लेकर सरकारों को घेरते थे। वह नक्सलियों के प्रखर समर्थक थे और ख़ुद दावा करते थे कि लगभग 3000 निर्दोष लोगों को जेल में नक्सली बता कर बंद रखा गया है और उसके लिए उन्होंने अदालत में पीआईएल दाखिल कर रखी थी। भीमा कोरेगाँव मामले में पुलिस ने कई नक्सलियों व उनके समर्थकों को गिरफ़्तार किया था। इनमें कई ऐसे थे, जो ख़ुद को सामाजिक कार्यकर्ता बताते हैं।