केरल सरकार ने इसरो के पूर्व वैज्ञानिक नाम्बी नारायणन को 1.3 करोड़ रुपए का मुआवजा देने की सैद्धांतिक रूप से मंजूरी दे दी है। तिरुवनंतपुरम उप अदालत में नारायणन की गैरकानूनी गिरफ्तारी के खिलाफ दायर मामले का निपटारा करने के लिए यह मुआवजा मंजूर किया गया। नाम्बी नारायणन ने तिरुवनंतपुरम उप अदालत में अपनी गैरकानूनी गिरफ्तारी के खिलाफ मामला दायर किया था।
Kerala state cabinet today gave in-principle approval to give Rs 1.3 crore compensation to former ISRO scientist S Nambi Narayanan, to settle a case he filed in Thiruvananthapuram Sub Court against his unlawful arrest. (file pic) pic.twitter.com/ii0redpmvL
— ANI (@ANI) December 26, 2019
वैज्ञानिक नाम्बी नारायणन को नवंबर 1994 में गिरफ्तार किया गया था। उस समय नारायणन के साथ दो अन्य वैज्ञानिकों डी शशिकुमारन और के चंद्रशेखर को भी गिरफ्तार किया गया था। गिरफ्तारी के समय नारायणन इसरो में क्रायोजनिक प्रॉजेक्ट के डायरेक्टर थे। इन तीन वैज्ञानिकों के अलावा रूसी स्पेस एजेंसी का एक भारतीय प्रतिनिधि एसके शर्मा, एक लेबर कॉन्ट्रैक्टर और फौजिया हसन नामक एक व्यक्ति की भी गिरफ्तारी हुई थी। इन सभी पर पाकिस्तान को इसरो के रॉकेट इंजन की सीक्रेट जानकारी देने के आरोप लगाए गए थे।
पूरे मामले की जाँच के दौरान नाम्बी नारायणन को 50 दिनों तक हिरासत में रखा गया था और उन्हें काफी यातनाएँ दी गई थीं। लेकिन पूरी कहानी में ट्विस्ट आया 1996 में। सीबीआई ने अप्रैल 1996 में चीफ जूडिशल मैजिस्ट्रेट को बताया कि यह पूरा मामला फर्जी है, जो भी आरोप लगाए गए हैं, उसके पक्ष में कोई सबूत नहीं है। इसके बाद कोर्ट ने तब के चर्चित इसरो जासूसी केस में गिरफ्तार किए गए सभी आरोपितों को रिहा कर दिया था।
लेकिन नाम्बी नारायणन को रिहाई से संतुष्टि नहीं थी। वो अपने ऊपर लगा गद्दारी का दाग धोना चाहते थे। और इसके लिए उन्होंने लंबी कानूनी लड़ाई की ओर जाने का फैसला किया। उनकी यह लड़ाई चली भी सच में बहुत लंबी – 24 साल, सुप्रीम कोर्ट तक। देश की सर्वोच्च न्यायालय ने 14 सितंबर 2018 को कहा कि नारायणन को केरल पुलिस ने बेवजह गिरफ्तार किया और उन्हें मानसिक प्रताड़ना दी। तब सुप्रीम कोर्ट ने नारायणन को 50 लाख रुपए का मुआवजा देने का आदेश भी दिया था।
लेकिन कोर्ट-कचहरी से परे भी नाम्बी नारायणन की एक कहानी है। कहानी राजनीति और साजिश वाली। उस कहानी के अनुसार पूर्व रॉ अधिकारी ने भारत के उप-राष्ट्रपति रहे हामिद अंसारी पर कई गंभीर आरोप लगाए। यह तब हुआ जब एक पत्रकार चिरंजीवी भट ने पूर्व रॉ अधिकारी एनके सूद से बातचीत की, जिसमें उन्होंने हामिद अंसारी के क़रीबी द्वारा वैज्ञानिक नाम्बी नारायणन को बदनाम करने और उनका करियर तबाह करने की बात का खुलासा किया। (आप पूरे इंटरव्यू को हूबहू यहाँ पढ़ सकते हैं) पूर्व रॉ अधिकारी ने पत्रकार चिरंजीवी भट से बात करते हुए कहा:
“रतन सहगल नामक व्यक्ति हामिद अंसारी का सहयोगी रहा है। आपने नाम्बी नारायणन का नाम ज़रूर सुना होगा। उन पर जासूसी का आरोप लगा था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनके ख़िलाफ़ लगे सारे आरोपों को निराधार पाया था। वे निर्दोष बरी हुए। लेकिन, किसी को नहीं पता है कि उनके ख़िलाफ़ साज़िश किसने रची? ये सब रतन सहगल ने किया। उसने ही नाम्बी नारायणन को फँसाने के लिए जासूसी के आरोपों का जाल बिछाया। ऐसा उसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि बिगाड़ने के लिए किया। रतन जब आईबी में था तब उसे अमेरिकन एजेंसी सीआईए के लिए जासूसी करते हुए धरा जा चुका था। अब वह सुखपूर्वक अमेरिका में जीवन गुजार रहा है। वह पूर्व-राष्ट्रपति अंसारी का क़रीबी है और हमें डराया करता था। वह हमें निर्देश दिया करता था।”
जिस वैज्ञानिक नाम्बी नारायण की यह कहानी है, उन्हें 25 जनवरी 2019 को पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। अफ़सोस की बात है कि उन्हें सत्ता और सियासत के षड्यंत्र का शिकार बनाया गया। जिस व्यक्ति को राष्ट्रीय अलंकरण देकर सम्मानित किया जाना चाहिए था, उसे ही जेल की सलाखों के पीछे बन्द कर दिया गया। उन्हें देश का गद्दार करार दिया गया।
‘हामिद अंसारी के क़रीबी ने वैज्ञानिक नाम्बी नारायणन के ख़िलाफ़ साज़िश रच उनका करियर तबाह किया’
अगर ‘JNU कांडियों’ और नम्बी नारायणन में से आप सिर्फ़ पहले वालों को जानते हैं, तो समस्या आपके साथ है
कहानी वैज्ञानिक नाम्बी नारायणन की जिन्हें केरल की राजनीति ने बर्बाद किया