Sunday, September 1, 2024
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RSS पर चर्च को रिपोर्ट करने आए इंडोनेशिया के पादरी रॉबर्ट बने संघ प्रचारक डा. सुमन: 8000 की करा चुके हैं ‘घर वापसी’

"मुझे भारत में भेजने से पहले बताया गया था कि संघ के लोग चर्च को तोड़ देते हैं। बाइबिल को जला देते हैं। पादरियों पर हमला करते हैं, लेकिन संघ की शाखा में जाने के बाद मुझे ऐसा कुछ भी नहीं दिखा।"

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक व हिन्दू जागरण मंच बिहार-झारखंड के क्षेत्रीय संगठन मंत्री डॉ. सुमन कुमार कभी पादरी थे, जो ईसाई धर्म का प्रचार करते थे। सुमन कुमार को लोग पहले पादरी राबर्ट सॉलोमन के नाम से जानते थे। ये लोगों का धर्मांतरण कराते थे। हालाँकि, जब वे आरएसएस की विचारधारा और संघ के अधिकारियों से मिले तो उनसे इतने प्रभावित हुए कि खुद का धर्म परिवर्तन कर अपना नाम बदलकर डॉ. सुमन कुमार रख लिया और संघ के प्रचारक बन गए।

आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में आर्गेनिक रसायन में रिसर्च करने के दौरान ही वे पादरी बन गए थे। धर्मांतरण के काम को लेकर इनका भारत के दक्षिण राज्य तमिलनाडु के चेन्‍नई में 1982 से आना-जाना शुरू हो गया था। रिपोर्ट के मुताबिक, संघ की गतिविधियों को नजदीक से समझने के लिए ईसाई मिशनरियों ने 25 वर्ष की उम्र में यानी साल 1984 में इन्हें भारत भेजा था। वे यहाँ दो वर्षों में संघ के कामों और हिंदू चिंतन व दर्शन से इतने प्रभावित हुए की खुद हिंदू धर्म को ही अपना लिया। इन्होंने 1986 में धर्मांतरण के बाद आर्य समाज पद्धति से हिंदू सनातन धर्म स्वीकार कर लिया और उसी वर्ष संघ के प्रचारक बन गए। इस दौरान इन्हें हिंदू जागरण मंच के काम में लगा दिया गया।

बताया जाता है कि संघ ने नया प्रयोग करते हुए ईसाई होने के कारण इन पर विश्‍वास किया और वे भी संघ की विचारधारा में पूरी तरह रंग गए। सुमन कुमार ने भाषा की समस्या को दूर करने के लिए वर्तमान अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख स्वांत रंजन से काफी सहयोग लि‍या। आज वे हिंदू जागरण मंच के उत्तर पूर्व क्षेत्र (झारखंड-बिहार) के संगठन मंत्री का दायित्व निभा रहे हैं और संघ के तृतीय वर्ष में प्रशिक्षित हैं।

सुमन कुमार सबसे पहले बुंदेलखंड के उरई जिला में संघ के संपर्क में आए थे। उन्होंने बताया कि मैं वहीं पास में संघ की शाखा में जाने लगा। यह सभी वर्ग के लोगों के लिए शुरू से ही खुला है। मैंने यहाँ स्वयंसेवकों के कामों को करीब से देखा और बेहद प्रभावित हुआ। हालाँकि, उस दौरान मेरे समक्ष भाषा की समस्या आड़े आ रही थी। मुझे हिंदी नहीं आती थी। इसके बावजूद मुझे संघ की अंग्रेजी में पुस्तकें उपलब्ध कराई गईं। मैंने स्वामी विवेकानंद की पुस्तकों को पढ़ा। फिर संघ के कामों को देखने के बाद मैंने तीन माह में ही मिशनरी को अपनी रिपोर्ट भेज दी।

मुझे बताया गया था कि संघ के लोग चर्च को तोड़ देते हैं, बाइबिल को जला देते हैं

उन्होंने अपनी रिपोर्ट में लिखा, “मुझे भारत में भेजने से पहले बताया गया था कि संघ के लोग चर्च को तोड़ देते हैं। बाइबिल को जला देते हैं। पादरियों पर हमला करते हैं, लेकिन संघ की शाखा में जाने के बाद मुझे ऐसा कुछ भी नहीं दिखा।” उन्होंने मिशनरियों को भेजी गई अपनी रिपोर्ट में आगे लिखा कि जिनका आप धर्मांतरण कराते हैं उनका राष्ट्रांतरण हो जाता है। ये लोग पादरियों को परेशान नहीं करते हैं। संघ विध्वंसक काम नहीं करता है। ये लोग भारत को कर्म भूमि, देव भूमि मानते हैं। इनका कहना है कि ईसा मसीह का प्रचार करो, लेकिन धर्मांतरण मत करो। भारत में रहना है तो भारत को समझिए, भारत को जानिए और भारतीयता में रंगिए।

8000 लोगों की घर वापसी करवा चुके हैं

उस समय के सरकार्यवाहक और वर्तमान में सरसंघचालक मोहन भागवत ने उन्हें 2004 में झारखंड भेजा था। वे अब तक 8000 लोगों की घर वापसी करवा चुके हैं। आज झारखंड के सभी जिलों में हिंदू जागरण मंच का काम चल रहा है। वे 2015 से झारखंड-बिहार के क्षेत्र संगठन मंत्री हैं। बता दें कि दैनिक जागरण में प्रकाशित डॉ. सुमन कुमार की दिलचस्प कहानी को सुनने के बाद हर कोई अपने जीवन में एक बार आरएसएस की विचारधारा को करीब से जानना चाहेगा।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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