मध्य प्रदेश में अब किसी और धर्म की प्रेमी-प्रेमिका से शादी करने के लिए होने वाले धर्म परिवर्तन की सूचना अधिकारियों को नहीं देनी पड़ेगी। प्रदेश की जबलपुर हाईकोर्ट ने किसी और धर्म में शादी करने से पहले जिलाधिकारी को सूचना देने की बाध्यता खत्म करते हुए इस कानून को संवैधानिक तौर पर गलत माना है।
उच्च न्यायालय के मुताबिक बालिग युवा अपनी मर्जी से न सिर्फ शादी करने बल्कि धर्म भी चुनने के लिए स्वतंत्र हैं। निर्णय देने वाले न्यायाधीशों ने राज्य सरकार के इस कानून को युवाओं को परेशान करने वाला नियम बताया है। हाईकोर्ट से यह आदेश सोमवार (14 नवम्बर 2022) को जारी हुआ है।
जबलपुर हाईकोर्ट से यह आदेश न्यायमूर्ति सुजॉय पॉल और न्यायमूर्ति पीसी गुप्ता की खंडपीठ ने दिया। दोनों जजों ने अंतर्धामिक शादी में जिलाधिकारी को पहले सूचना देने के नियम को बालिगों के संवैधानिक अधिकारों का हनन माना है। उच्च न्यायालय ने अगले आदेश तक मामले में सरकार को कोई कड़ी कार्रवाई न करने के आदेश दिए हैं। फिलहाल कोर्ट ने सभी 7 याचिकाकर्ताओं को अंतरिम राहत दे दी है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक जबलपुर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को इस मामले में अपना पक्ष रखने के लिए 3 सप्ताह का समय दिया है। यह बहस मध्य प्रदेश शासन द्वारा लागू फ्रीडम ऑफ़ रिलिजन एक्ट- 2021 की धारा 10 पर हुई। इस कानून को तोड़ने वालों पर 1 लाख रुपए का जुर्माना और 10 साल की सजा का प्रावधान है।
#ExpressFrontPage | The Jabalpur bench of the Madhya Pradesh High Court was hearing seven petitions filed by activists and social workers demanding a stay on the Madhya Pradesh Freedom of Religion Act, 2021.https://t.co/qGiIntChhO
— The Indian Express (@IndianExpress) November 19, 2022
मध्य प्रदेश शासन द्वारा लागू फ्रीडम ऑफ़ रिलिजन एक्ट- 2021 के खिलाफ कुल 7 याचिकाएँ दायर हुईं थीं। ये 7 याचिकाएँ अमृतांश नेमा, सुरेश कार्लटन, एलएस हार्डेनिया, आज़म खान, रिचर्ज जेम्स, आराधना भार्गव और सैमुअल डेनियल द्वारा लगाई गई हैं। इन याचिकाकर्ताओं के वकील मनोज शर्मा, काजी फर्ख़रूद्दीन, संध्या रजक और हिमांशु मिश्रा हैं। अगली सुनवाई पर कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को भी पूरी तैयारी के साथ आने के लिए कहा है।