राम जन्मभूमि मामले में याचिकाकर्ता रहे इकबाल अंसारी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद राज्य सरकार द्वारा धन्नीपुर में आवंटित भूमि पर बनाई जा रही मस्जिद के डिजाइन को अस्वीकार करते हुए इसका विरोध किया है। अंसारी का कहना है कि मस्जिद का डिजाइन विदेशों की तर्ज पर है। और हम भारतीय शैली पर बनी मस्जिद को स्वीकार करेंगे।
इकबाल अंसारी ने कहा कि मस्जिद शो-ऑफ के लिए नहीं है और यह साधारण होना चाहिए। उन्होंने कहा कि एक मस्जिद का प्राथमिक उद्देश्य नमाज पढ़ना है। इसके अलावा उन्होंने मस्जिद के ट्रस्ट पर भी नाराजगी व्यक्त की। उनका कहना है कि 70 साल से मस्जिद के लिए लड़ाई लड़ी गई, लेकिन आज अयोध्या के किसी भी पक्षकार से कोई सलाह नहीं ली गई।
वहीं बाबर के नाम से मस्जिद के नामकरण करने के विचार का भी उन्होंने विरोध किया है। इकबाल अंसारी ने कहा कि मस्जिद को बाबर के नाम से नहीं जाना जाना चाहिए क्योंकि वह देश के मुसलमानों का मसीहा नहीं था।
गौरतलब है कि बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी (बीएमएसी) के संयोजक और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के कार्यकारी सदस्य जफरयाब जिलानी ने भी मस्जिद के डिजाइन पर नाराजगी जताई थी। दरअसल, उन्होंने इस मस्जिद के जारी ब्लूप्रिंट को शरियत (इस्लामी कानून) के खिलाफ बताया था।
जिलानी ने कहा, “वक्फ अधिनियम के तहत मस्जिद या मस्जिद की ज़मीन किसी दूसरी चीज़ के बदले में नहीं ली जा सकती। अयोध्या में प्रस्तावित मस्जिद इस कानून का उल्लंघन करती है। यह शरियत कानून का उल्लंघन करती है क्योंकि वक्फ अधिनियम शरियत पर आधारित है।”
यह मुद्दा पहली बार अक्टूबर में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की कार्यकारी समिति की बैठक के दौरान उठाया गया था, जिसमें असदुद्दीन ओवैसी ने कहा था कि वैकल्पिक भूमि पर मस्जिद का निर्माण वक्फ अधिनियम के खिलाफ है।
बता दें प्रस्तावित मस्जिद के ब्लूप्रिंट में गुंबद नहीं है। मस्जिद के अलावा परिसर में एक म्यूजियम, अस्पताल, लाइब्रेरी और कम्युनिटी किचन बनाया जाएगा। मस्जिद की इमारत ढाँचा आकार में गोल होगा। इस मस्जिद को अगले दो साल में बनाकर पूरा करने का लक्ष्य है। इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन (आईआईसीएफ) नक्शा पास होने और स्वायल टेस्टिंग के हिसाब से मस्जिद निर्माण की तारीख तय करेगा।