सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस रंजन गोगोई पर यौन शोषण के आरोप लगे। ये आरोप सुप्रीम कोर्ट की पूर्व महिला कर्मचारी ने लगाए। ये महिला जस्टिस गोगोई के आवास स्थित कार्यालय में कार्यरत थी। लेकिन, क्या आपको पता है कि देश की न्यायिक व्यवस्था के शीर्ष पद पर बैठे व्यक्ति के ऊपर इस तरह से यौन शोषण का आरोप लगाने के पीछे कुछ ऐसी बातें हैं, जो इस मामले को एक टेढ़ी खीर बनाती है। इस मामले की पृष्ठभूमि में कुछ ऐसा खेल चल रहा है, जो इतना जटिल एवं पेचीदा है कि एक आम आदमी की नज़रों से आसानी से छिप जाता है और सामने आता भी है तो भ्रम पैदा करता है। ऐसा सिर्फ़ हमारा ही नहीं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के वकीलों का भी मानना है। वकीलों की छोड़िए, ख़ुद सीजेआई रंजन गोगोई ने कहा है कि इसके पीछे कुछ बड़ी शक्तियाँ काम कर रही हैं।
जब देश का मुख्य न्यायाधीश यह कहता है कि न्यायपालिका गंभीर ख़तरे का सामना कर रही है, तब इसका विश्लेषण होना चाहिए। ये बड़ी शक्तियाँ कौन हैं? क्या कोई बड़ा राजनीतिक दल है? क्या कोई बड़ा आतंकतवादी गिरोह है? या फिर कोई बड़ा उद्योगपति घराना है? या फिर, इन तीनों का कोई ऐसा नेक्सस है जो मिलजुल कर देश की न्यायिक व्यवस्था को अपने इशारे पर नचाना चाह रहा है? यहाँ हम इन सभी बातों की पड़ताल करेंगे, लेकिन सबसे पहले आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के जजों के आंतरिक पैनल ने सीजेआई गोगोई को क्लीन चिट दे दी है। गंभीर आरोप लगाने वाली महिला ने कहा कि उसे इस प्रक्रिया पर विश्वास नहीं है और वह जजों के सामने पेश नहीं होंगी। यहाँ सवाल उठता है कि अगर पीड़िता को जजों के सामने पेश होने से इनकार ही करना था तो फिर उसने 22 जजों से शिकायत ही क्यों की थी?
क्या कहता है बार काउन्सिल ऑफ इंडिया?
सबसे पहले बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) के बयान से शुरू करते हैं। बार काउंसिल जस्टिस गोगोई के पीछे खड़ा हो गया है, वो भी पूरी मज़बूती से। बीसीआई ने सभी वकीलों व न्यायिक बिरादरी के लोगों को लिखे पत्र में साफ़-साफ़ कहा है कि सीजेआई को फँसाने के लिए कोई बड़ी साजिश चल रही है। बीसीआई के अध्यक्ष मनन मिश्रा का मानना है कि देश की जनता मुर्ख नहीं है और वो समझती है कि सीजेआई के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज कराने वाली महिला कोई साधारण महिला नहीं है, उसके पीछे एक बहुत बड़ा तंत्र खड़ा है। बीसीआई का मानना है कि जिस तरह से उस महिला ने पुलिस स्टेशन में दावा किया कि उसके पास सबूत के रूप में मोबाइल रिकॉर्डिंग है और जिस तरह से वह अदालत, सीबीआई, आईबी, पुलिस सहित अन्य संस्थाओं से डील कर रही है, उससे लगता है कि इसके पीछे कुछ न कुछ तो बड़ी गड़बड़ी है।
बार काउन्सिल सुप्रीम कोर्ट के पैनल द्वारा जस्टिस गोगोई को क्लीन चिट देने का जिक्र करते हुए कहता है कि पैनल ने एकदम सही प्रक्रिया के तहत कार्य किया, सभी उपलब्ध साक्ष्यों को गहनता से परखा और सावधानी से छानबीन के बाद यह निर्णय लिया। बीसीआई के कुछ सवाल जाएज हैं। इनपर बहस होनी चाहिए। बीसीआई पूछता है कि जब उस महिला ने एफआईआर दर्ज कराने की बजाए सुप्रीम कोर्ट के जजों से ही शिकायत की थी, फिर उन्हीं जजों से उसे बाद में दिक्कत क्यों हो गई? जिन जजों से उसने शिकायत की, उन्हीं के सामने पेश होने से इनकार क्यों कर दिया? आख़िर अपनी शिकायत के निवारण के लिए पीड़िता ने ही तो ये मंच चुना था, फिर बाद में इसी से समस्या क्यों हुई?
पीड़िता ने 22 जजों से शिकायत की, सुप्रीम कोर्ट ने जजों के अंतरिम पैनल का गठन किया, जाँच शुरू हुई और महिला ने पैनल के समक्ष पेश होने से इनकार कर दिया (एक बार पेश होने के बाद)। बता दें कि महिला ने इसके पीछे कोई ठोस कारण भी नहीं दिया हैं। उसने सीधा कह दिया कि चूँकि पैनल का वातावरण बहुत ही भयावह है और उसे जजों से न्याय की उम्मीद नहीं है। अगर उसे जजों पर विश्वास नहीं था तो शिकायत इस मंच पर क्यों की गई? पुलिस से शिकायत की जा सकती थी, राष्ट्रपति या क़ानून मंत्रालय को पत्र लिखा जा सकता था लेकिन महिला ने जजों के मंच को ही चुना और फिर बाद में उसे नकार भी दिया। ज्ञात हो कि उस पैनल में 2 महिला जज भी थीं। जब पैनल में महिलाओं का बहुमत था, तब पीड़िता ने भय का वातावरण क्यों कहा, वो भी बिना किसी ठोस कारण के?
दाउद-गोयल-जेट एयरवेज कनेक्शन
भगोड़ा आतंकी दाऊद इब्राहिम मुंबई में सीरियल बम विस्फोट सहित कई आतंकी मामलों का दोषी है। एक वकील ने सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल दाखिल कर इस कनेक्शन के बारे में कुछ बड़ा दावा किया। हालाँकि, इसमें कितना सत्य है और कितना झूठ, ये नहीं पता, लेकिन इसका विश्लेषण तो होना ही चाहिए। उत्सव बैंस ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी याचिका में कहा कि उनसे एक बड़े दलाल ने संपर्क किया और जस्टिस गोगोई के ख़िलाफ़ प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कुछ ख़ास आरोप लगाने को कहा। जब न्यायिक इतिहास में प्रेस कॉन्फ्रेंस की बात आएगी तो उस प्रेस कॉन्फ्रेंस की बात भी की जाएगी जिसमें सुप्रीम कोर्ट के चार सीनियर जजों ने लोकतंत्र के ख़तरे में होने की बात कही थी। उत्सव द्वारा किए गए सारे ख़ुलासों को यहाँ पढ़ें।
इन चार जजों में मौजूदा सीजेआई रंजन गोगोई भी शामिल थे। इसमें जस्टिस चेलमेश्वर भी शामिल थे। इन जजों ने तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा पर आरोप लगाए थे। उन पर जजों को मामले आवंटित करने से लेकर कई आरोप लगाए गए थे। उस समय पूरे देश में इसे लेकर घमासान मचा था और मीडिया में इस प्रेस कॉन्फ्रेंस को लेकर केंद्र सरकार सहित जस्टिस दीपक मिश्रा पर कई सवाल दागे गए थे। विपक्ष ने भी जस्टिस मिश्रा के ख़िलाफ़ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी कर ली थी। चार जजों के प्रेस कॉन्फ्रेंस पर बिना टिप्पणी किए यहाँ सवाल यह उठता है कि क्या एक वकील से प्रेस कॉन्फ्रेंस करा कर न्यायपालिका को अस्थिर करने की साज़िश रची गई थी? इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि एक वकील से प्रेस कॉन्फ्रेंस कराने के बाद कुछ अन्य वकीलों को उसके साथ खड़ा कर दिया जाता और फिर से कुछ वैसा ही घमासान मचती!
वह कौन सा दलाल था, जिसनें उत्सव बैंस को ऐसा करने को कहा था? उत्सव ने ख़ुद को ज़हर देकर मारे जाने की आशंका जताते हुए कहा कि इस पूरे नेक्सस में जेट एयरवेज के संस्थापक नरेश गोयल और दाऊद इब्राहिम भी शामिल है। उन्होंने पुलिस जाँच पर अविश्वास जताते हुए कहा कि इस मामले में उन्हें राजनीतिक नियंत्रण में आने वाली संस्थाओं पर भरोसा नहीं है। अदालत में उनकी याचिका स्वीकार हुई और कुछ सबूतों के पेश करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस, आईबी और सीबीआई के प्रमुखों को पेश होने को कहा। एक अन्य वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया कि उत्सव ने ये ख़ुलासा करने से पहले जस्टिस गोगोई से 2 बार मुलाक़ात की थी।
उत्सव और भूषण एक-दूसरे को पहले से जानते हैं और भूषण ने कहा है कि उत्सव ने उन्हें मिलकर अपनी बात कहनी चाही थी लेकिन वो लोग नहीं मिल पाए। प्रशांत भूषण ने यहाँ तक दावा किया कि 19 अप्रैल की रात उत्सव ने जस्टिस गोगोई से मुलाक़ात की थी। उत्सव ने भूषण पर उनकी पीठ में छूरा घोंपने का आरोप लगाया। प्रशांत भूषण और अरुंधति रॉय सीजेआई मामले में पहले ही ‘स्वतंत्र जाँच’ की माँग कर चुके हैं। प्रशांत भूषण ने नीना गुप्ता के हवाले से कहा कि उन्होंने बैंस को अदालत परिसर के अंदर ये कहते हुए सुना था उन्हें सर (जस्टिस गोगोई) ने बुलाया है। भूषण ने लम्बे चौड़े दावे तो कर दिए लेकिन उनकी बातें झूठ निकल गईं। नीना गुप्ता ने ‘द वायर’ से संपर्क कर साफ़ कहा कि प्रशांत भूषण ने उन्हें लेकर झूठ बोला।
आख़िर इस मामले में कूदने वाले प्रशांत भूषण का इससे क्या हित सध रहा है? प्रशांत भूषण किसे बचाने के लिए मीडिया में झूठ बोल रहे हैं? जब सुप्रीम कोर्ट के एक सक्रिय और वरिष्ठ वकील इस तरह से झूठ बोलता फिरे, तो बीसीआई की बातें सही नज़र आती दिखती है कि इसके पीछे कोई बड़ा तंत्र कार्य कर रहा है।
दाऊद इब्राहिम की भारतीय इंडस्ट्री पर पकड़
‘द हिन्दू’ के राष्ट्रीय सुरक्षा सम्पादक रह चुके जोसी जोसेफ ने अपनी पुस्तक में दाऊद की भारतीय इंडस्ट्री में पकड़ का उल्लेख किया है। अपनी पुस्तक ‘A Feast of Vultures: The Hidden Business of Democracy in India‘ में खोजी पत्रकार जोसेफ लिखते हैं कि आईबी के जॉइंट डायरेक्टर अंजन घोष ने गृह मंत्रालय की ज्वाइन सेक्रटरी संगीता गैरोला को दिए एक पत्र में लिखा था, “नरेश गोयल के शेखों के साथ आत्मीय रिश्ते और क़रीबी व्यापारिक रिश्ते पिछले 2 दशकों से हैं। इन नजदीकियों का इस्तेमाल उन्होंने न सिर्फ़ अपनी कम्पनी में निवेश आकर्षित करने के लिए किया बल्कि अवैध रुपयों की हेराफेरी के लिए भी किया। इसमें से अधिकतर रुपए तस्करी, वसूली और अन्य अवैध धंधों से हासिल किए गए।”
बता दें कि जेट एयरवेज कंगाली की ओर है और ऋण से डूबी कम्पनी के निवेशकों में हड़कंप मचा हुआ है। नरेश गोयल जब वोट देने आए तो उन्होंने पत्रकारों के सवाल का जवाब नहीं दिया। वरिष्ठ अधिकारियों ने तत्कालीन गृह मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी से मुलाक़ात कर नरेश गोयल के शकील अहमद और दाऊद इब्राहिम से सम्बन्ध होने की बात कही थी। उन्होंने गोयल और आतंकियों के बीच टेलीफोन बातचीत होने की भी बात कही। जोसफ इसके लिए लाल कृष्ण आडवाणी द्वारा की गई ढिलाई को भी कहीं न कहीं ज़िम्मेदार मानते हैं, जिसके कारण गोयल अधिकारियों से लेकर राजनेताओं तक के चहेते बन गए। कंधार ऑपरेशन के बाद जेट एयरवेज को मिले सिक्योरिटी क्लीयरेंस को लेकर भी काफ़ी विवाद हुआ था।
ये मामला बहुत बड़ा है, जिसकी हमने सिर्फ़ एक झलक पेश की है। इसके बाद में विस्तारपूर्वक आप ऊपर दिए गए पुस्तक के हाइपरलिंक (साभार: आउटलुक) पर क्लिक कर के पढ़ सकते हैं। यहाँ हम सीजेआई पर लगे यौन शोषण के आरोप एवं नरेश गोयल-दाऊद कनेक्शन की बात कर रहे हैं, जोसी जोसफ के हवाले से। अभी हाल ही में आरबीआई ने एक समय-सीमा तय कर बैंकों के लिए 180 दिन के अंदर मामला सुलझाने या फिर इस समयावधि के बाद कम्पनी को ‘Insolvency Proceedings’ में भेजने की बात कही थी। लेकिन, अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने इस सर्कुलर को निरस्त कर दिया। इसके बाद उधारदाता भी संशय में है, कि अब क्या किया जाए?
क्या राफेल से भी जुड़ता है कोई तार?
राफेल मामले पर सुप्रीम कोर्ट मोदी सरकार को क्लीन चिट दे चुका है। इसके बाद तमाम तरह की समीक्षा याचिकाएँ दाखिल की गईं, जिसमें मीडिया रिपोर्ट्स को भी आधार बनाया गया। सुप्रीम कोर्ट में इस बहुचर्चित सुनवाई को लेकर क्या कोई जाँच प्रभावित करने की कोशिश कर रहा है? जैसा कि जस्टिस गोगोई ने अंदेशा जताया है कि न्यायपालिका ख़तरे में है, क्या उनके हाथ में जो मामले हैं उन्हें प्रभावित करने के लिए ये सब किया जा रहा है? पूर्व सीजेआई दीपक मिश्रा के समय भी कुछ ऐसा ही हंगामा हुआ था, अब उसका स्तर और भी ज़्यादा बढ़ गया है।
राफेल मामले से पहले सीबीआई के अंदर मचे घमासान के दौरान भी प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को लेकर एक अनर्गल ट्वीट किया था, जिसके बाद उन्हें कोर्ट से फटकार मिली थी। अगर पिछले कुछ दिनों के घटनाक्रम को देखें तो अदालत के बाहर वो तमाम तरह की बातें की जा रही है, जिससे सुनवाई को प्रभावित किया जा सके। फिलहाल जस्टिस गोगोई को क्लीन चिट मिल चुका है और मीडिया रिपोर्ट्स में ये चर्चाएँ चल रही हैं कि पीड़िता के पास अन्य विकल्प क्या है? लेकिन, मुख्य न्यायाधीशों पर आरोप और दबाव का यह चलन कहाँ से निकला है और इसके पीछे कौन है, ये अभी भी एक राज़ बना हुआ है।