बॉलीवुड में कश्मीरी पंडितों की व्यथा दिखाने का दावा करने वाली बॉलीवुड के निर्माता और निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म शिकारा आखिरकार लम्बे इन्तजार के बाद रिलीज हो चुकी है। लेकिन शिकारा फिल्म रिलीज होने के पहले ही दिन यह विवादों के घेरे में आ गई है। इस फिल्म के नाम बदले जाने से लेकर इसमें कश्मीरी पंडितों की त्रासदी के नाम पर कश्मीरी पंडितों की भावनाओं का मजाक बनाने जैसे कारणों से बवाल खड़ा हो गया है।
विधु विनोद चोपड़ा की फ़िल्म ‘शिकारा’ के बारे में उन्होंने दावा किया था कि इस फ़िल्म में कश्मीरी पंडितों के विस्थापन के दर्द को दिखाया गया है। लेकिन दिव्या राजदान ऐसा नहीं मानती हैं। दिव्या राजदान एक कश्मीरी पंडित जनर्लिस्ट हैं, जो डिफेन्स मामलों पर लिखती हैं और रिसर्चर हैं। आज ही इस फिल्म के रिलीज के मौके पर PVR में दिव्या राजदान भी मौजूद थीं।
दिव्या राजदान ने यह फिल्म देखने के बाद PVR में ही इस फिल्म में दिखाए गए प्रपंच का खंडन करते हुए कहा कि कश्मीरी पंडित होने के नाते वो इस फिल्म का विरोध करती हैं। इसके बाद से दिव्या राजदान चर्चा में आ गई हैं और सोशल मीडिया पर शिकारा फिल्म का विरोध करते हुए उनका वीडियो भी शेयर किया जा रहा है।
I disown Shikara movie,it shows no reality of KashmiriHindu’s Genocide.I disown it because they saved radical Islam & depicted all Muslims good humans but Hindus play communaldivide. It shows Pandits supporting militant rather than Indian Army/India. @neelakantha @vivekagnihotri https://t.co/QrbB5xfi9h
— DIVYA RAZDAN (@ResearchBharat) February 7, 2020
दिव्या राजदान के इस वीडियो के सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद दिव्या राजदान से ऑपइंडिया ने सम्पर्क किया। ऑपइंडिया सम्पादक अजीत भारती से बातचीत में दिव्या राजदान ने बताया कि किस प्रकार से कश्मीरी पंडितों की व्यथा दिखाने के नाम पर इस फिल्म में कश्मीरी पंडितों को ही कट्टर और उनके ‘पलायन’ के लिए जिम्मेदार दिखाया गया है। दिव्या ने बताया कि फिल्म को मुस्लिम तुष्टिकरण का एक नमूना बनाकर पेश किया गया है और यह फिल्म सिर्फ यही सन्देश देती है कि कश्मीर में मुस्लिम तो इंसानियत रखते हैं लेकिन सिर्फ हिन्दू ही वहाँ की परिस्थितियों के लिए जिम्मेदार हैं।
दिव्या राजदान ने फिल्म के निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा पर आरोप लगाया है कि उन्होंने सिर्फ अपनी फिल्म की पब्लिसिटी के लिए कश्मीरी पंडितों की वास्तविकता बयान करने के बजाय एक ऐसी प्रेम कहानी बनाकर रख दिया जो उन पर थूकने जैसा है। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें इस फिल्म का विरोध करने पर इस फिल्म से जुड़े लोगों ने चुप रहने की भी राय दी।
ऑपइंडिया से बातचीत में दिव्या ने बताया कि वो खुद को कश्मीरी पंडित नहीं बल्कि कश्मीरी हिन्दू कहना पसंद करती हैं क्योंकि ये उन्हें अपनी वास्तविकता के ज्यादा करीब रखता है। उन्होंने कहा कि कश्मीरी पंडितों की जो त्रासदी उन्होंने महसूस की है वह सिर्फ कश्मीर को एक इस्लामी राज्य बना देने के मकसद से किया गया।
दिव्या ने कहा कि आज यह हकीकत बन चुकी है, और कोई भी इस बात को नकार नहीं सकता है कि कश्मीर का आज पूर्ण रूप से इस्लामीकरण कर दिया गया है। दिव्या ने अपनी बातचीत में बताया- “जब हमने सुना कि कोई निर्देशक आखिरकार हमारी त्रासदी को दिखा रहा है तो मेरी रूचि इसमें बढ़ी। ट्रेलर के समय हम लोगों के मन में कुछ सवाल उठे भी थे, फिर भी हमने सोचा कि फिल्म का इन्तजार करेंगे। आज हमने यह फिल्म देखी, मेरे साथ सुशील पंडित भी मौजूद थे। लेकिन फिल्म के पहले सीन से लेकर आखिरी तक कहीं भी कश्मीरी पंडितों के नरसंहार की बात नहीं थी। इसके बजाय इस फिल्म में सिर्फ एक प्रेमी जोड़े की बात थी। यह ठीक भी है क्योंकि यह आपकी फिल्म है और आपको ऐसा दिखाने का अधिकार है।”
“…लेकिन फिर इसे ‘कश्मीरी पंडित, एक अनकही कहानी’ कहने की क्या जरूरत थी। आपको स्पष्ट कहना चाहिए था कि हम कश्मीरी पंडितों का दर्द नहीं बल्कि सिर्फ मनोरंजन के लिए एक आम फिल्म बना रहे हैं। उन्हें कहना चाहिए था कि यह बस एक प्रेम कहानी है ना कि कश्मीरी पंडितों की व्यथा! ऐसा कर के उन्होंने हमारी भावनाओं के साथ मजाक किया है, लेकिन हम इसे मजाक बनने नहीं देंगे, इसलिए हम इस फिल्म का विरोध करते हैं।”
“मैं एक कश्मीरी संगठन की प्रवक्ता थी। फिल्म के ट्रेलर देखने के बाद मैंने सोचा क्यों न मैं सवाल पूछूँ, उनसे जो कि इस फिल्म को बना रहे हैं या फिर इससे जुड़े हुए हैं। इसी कारण मैंने फिल्म निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा से सवाल पूछा कि आप ऐसा भी कर सकते थे कि सिर्फ प्रेम कहानी इसे कह देते। और अगर यह कश्मीरी पंडितों की व्यथा है तो फिर आप लीड रोल में मुस्लिम को ही क्यों रख रहे हैं, हिन्दू को क्यों नहीं? स्पष्ट है कि वो लोग घाटी में हुए इस्लामिक रेडिकलाइजेशन को छुपाना चाहते हैं। फिल्म में जो दिखाया गया है वह हमारी दर्दनाक कहानी का मजाक था।”
“इन सवालों के बदले में मुझे ट्रोल किया गया, मुझे डिफेम करने की कोशिश की गई और अकेला कर दिया गया, मेरे ऑर्गेनाइजेशन ने भी मुझसे खुद से अलग कर दिया। इन लोगों ने खुद को मुझसे इस कारण अलग कर दिया क्योंकि उनका मानना था कि विधु विनोद चोपड़ा ने तो फिर भी अपना कुछ योगदान कश्मीरी पंडितों के लिए फिल्म बनाकर दिया भी है, लेकिन तुमने कश्मीरी पंडितों के लिए अपना कौन सा योगदान दिया है?”
दिव्या राजदान ने कहा कि उनकी आपत्ति इस बात को लेकर है कि इस फिल्म के निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा को प्रोपेगैंडा नहीं करना चाहिए था। उन्होंने कहा- “हम तीस साल पहले भी अपनी त्रासदी को समझ नहीं पाए थे और आज भी हमें नहीं समझने दिया जा रहा है। आप खुद इस फिल्म को देखिए और स्वयं से ही यह सवाल करना चाहिए कि क्या हमारे साथ छल नहीं किया गया है?”
अपने परिवार के कश्मीर से पलायन की कहानी बताते हुए दिव्या राजदान ने कहा- “जब घाटी में इस्लामिक रेडिकलाइजेशन शुरू हुआ तब हिट लिस्ट छपा करती थी। एक दिन मिलिटेंट्स AK 47 अपने शॉल में छुपाकर आए। उन्होंने मेरे पापा का नाम लेते हुए दरवाजा खटखटाया। मेरे पापा का नाम लेकर उन्होंने कहा कि उन्हें बाहर बुलाइए। लेकिन चरमपंथियों की आवाज सुनकर पापा घर के पीछे के दरवाजे से निकल गए। यह पड़ोस में रहने वाले मुस्लिम परिवार ने देख लिया। दरवाजा खोलने पर जब माँ ने कहा कि वो घर पे नहीं हैं तो पड़ोस के मुस्लिम परिवार ने उन आतंकियों से कहा कि वो अभी पीछे से भागकर गया है और उसे दौड़कर जल्दी से पकड़ लो….”
“..ईश्वर की कृपा से पापा और हम लोग उस दिन सुरक्षित बच पाए। रात को एक ट्रक में बैठकर हम कश्मीर घाटी से जम्मू आ गए थे। कुछ समय बाद हम लोग नंगे पैरों और खाली हाथ दिल्ली चले आए। हम लोग इतने बेबस थे कि उस समय अस्पताल में इलाज के लिए मेरी माँ को अपने गले की सोने की चेन डॉक्टर को देनी पड़ी थी। उस समय मेरी माँ ने सोने की चेन गिरवी रखकर इलाज करवाया था। उस समय का हिन्दू ऐसा था कि वो डॉक्टर एक हिन्दू होने के बावजूद और हमारी समस्या सुनने के बाद भी मुफ्त इलाज करने को राजी नहीं हुआ। आज भी इस तरह की बातें सुनने को मिलती हैं, कि तुम्हें उनसे लड़ना चाहिए था। लेकिन सवाल यह है कि एक इस्लामिक स्टेट की स्थापना करने वाले बंदूकों से लेस आतंकवादियों से क्या हम पत्थरों से लड़ते?”
पूरी बातचीत का वीडियो यहाँ देखे: