संसद में कार्यवाहक वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने आज अंतरिम बजट 2019 पेश किया। इस मौके पर जहाँ सरकार ने मजदूर, गरीब और किसानों को राहत देने की घोषणाएँ की, तो वहीं दूसरी ओर कॉन्ग्रेस समेत तमाम विपक्षी नेता बजट को लेकर मातम मनाते नज़र आए। दरअसल, सरकार ने ‘प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि’ के जरिए 2 हेक्टेयर तक भूमि वाले छोटी जोत के किसान परिवारों को ₹6,000 प्रति वर्ष की दर से प्रत्यक्ष आय सहायता उपलब्ध कराने की बात कही, जिसके बाद विपक्ष से अजीबोगरीब प्रतिक्रियाएँ आनी शुरू हो गईं।
इसके बाद जैसे-तैसे होश संभालते हुए कॉन्ग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गाँधी समेत कई अन्य नेताओं ने इसकी आलोचना इस बात का तर्क देते हुए किया कि ₹6 हजार में किसानों का क्या होगा? लेकिन शायद इन्हें 2013 में अपनी ₹5, ₹12 में खाना खिलाने वाली बात याद नहीं आई जिसमें यूपी के प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर ने गरीबों को ₹12 में भरपेट खाना मिलने की बात कही थी। इसके अलावा पार्टी के नेता ने रशीद मसूद ने यहाँ तक दावा कर दिया था कि दिल्ली में ₹5 में भरपेट खाना मिलता है।
कंज़ंप्शन एक्सपेंडिचर सर्वे से उड़ी थी कॉन्ग्रेस की नींद
दरअसल, 2013 में यूपीए सरकार के दौरान कंज़ंप्शन एक्सपेंडिचर सर्वे में गरीबी के नए आँकड़ों के बचाव में राज बब्बर ने ऐसा कहा था। रिपोर्ट में कॉन्ग्रेस के ‘गरीबी हटाओं’ के नारे की पोल खुली थी। रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ था कि पिछले 12 सालों में अमीर और गरीब के बीच की खाई बढ़ी। रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि 2000 से 2012 के बीच अमीर तबके के ख़र्च करने की क्षमता 5 से 60% बढ़ी थी, वहीं गरीब की इन 12 सालों में ख़र्च करने की ताकत 5 से 30% तक ही बढ़ पाई थी।
यह हास्यास्पद है कि गरीबों के वोटबैंक की चाह लेकर उनके द्वार जाने वाली कॉन्ग्रेस मोदी सरकार के साल में ₹6 हजार यानी महीने में ₹500 देने की बात का मज़ाक उड़ा रही है। शायद कॉन्ग्रेसी नेता यह भूल गए हैं कि उनके ₹5 में भरपेट खाना खिलाने में रोज के 5X365= ₹1825 ही आते थे।
वैसे भी, इन पैसों से किसान खेती करेगा, क्योंकि उन्हें थोड़ी मदद मिल जाए, बीज-खाद के पैसे मिल जाएँ, तो वो फसल उगा लेंगे, और खाना भी खा लेंगे। जब किसान लगातार सूद और महाजन के जंजाल में फँसकर आत्महत्या करते हैं, तो उसका समाधान एक बार की क़र्ज़माफ़ी नहीं, बल्कि सतत प्रयासों से उसके जीवन में स्वाबलंबन लाना है। किसी को भी मुफ़्तख़ोरी अच्छी नहीं लगती, ख़ासकर उस किसान को तो बिलकुल ही नहीं जिसका जीवन सरकार, तंत्र, मौसम और पैसों की किल्लत से लड़ते हुए जीने में कट जाती है।
कॉन्ग्रेसी और विपक्षी नेताओं का प्रलाप उनकी घबराहट को दर्शाता है
सरकार द्वारा ‘सबका साथ, सबका विकास’ के तर्ज़ पर पेश किए गए इस बजट पर विपक्षी नेताओं का ऊल-जूलूल बोलना उनकी घबराहट को भी दर्शाता है। शायद राहुल गाँधी इस आँकड़े और ₹5 में खाना खिलाने वाली स्कीम भूल गए तभी उन्होंने सरकार के किसानों को ₹6 हजार देने की बात का यह कहते हुए विरोध किया कि ₹17 दिए जाने का प्रावधान करना किसानों का अपमान है।
Dear NoMo,
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) February 1, 2019
5 years of your incompetence and arrogance has destroyed the lives of our farmers.
Giving them Rs. 17 a day is an insult to everything they stand and work for. #AakhriJumlaBudget
राहुल गाँधी को अब यह बात कौन समझाए कि किसानों के लिए एक-एक पैसे कि कितनी महत्ता है। राहुल गाँधी भूल गए कि यह रकम उनके हाथ में न आकर सीधे बैंक खाते में जाएगी।किसान यह समझता है, भले ₹13 का ऋण माफ़ी देने वाले राहुल न समझें, कि ये पैसे उनकी बीड़ी के लिए नहीं है। वो जानते हैं कि इतने पैसों में बुआई के समय वो खेत में बीज रोप सकते हैं। अगर सरकार की हर योजना का लाभ उन्हें मिले, तो यह मदद बड़ी मदद है।
S Tharoor, Congress: The whole exercise has turned out to be a damp squib. We’ve seen one good thing that is tax exemption for the middle class. Rs 6000 in income support for farmers boils down to Rs 500 per month. Is that supposed to enable them to live with the honour&dignity? pic.twitter.com/kZDRhkKSWi
— ANI (@ANI) February 1, 2019