दिल्ली में हुई भयानक हिंसा सीधे-सीधे एक तरफ इशारा करती है कि एक बड़े नरसंहार की तैयारी थी। चाहे ताहिर हुसैन के घर पर इकट्ठा बम और एसिड का जखीरा हो या मुस्तफाबाद में बड़ी बड़ी स्टील की प्लेट्स की आड़ में निकली दंगाइयों की भीड़ या फिर फिरोज खान के यहाँ निकला 60000 लीटर तेजाब हो या जाफराबाद, सीलमपुर, मुस्तफाबाद बाद में हुई सुनियोजित हिन्दू नेताओं की हत्याएँ – स्पष्ट था कि किन लोगों को मारना है, किनकी दुकान और घर जलाने हैं, उनकी मार्किंग पहले से की गई थी। दुकानों पर CAA विरोधी नारे ऐसे लिखे गए थे कि किसे नहीं जलाना है, उसकी पहचान हो जाए।
दो हफ्ते पहले से समुदाय विशेष के इलाकों में ईंटों के ढेर ऑर्डर करके मँगवाए गए थे। जनवरी से बार-बार दिल्ली पुलिस के द्वारा अवैध हथियारों का जखीरा पकड़ा जा रहा था। इन्हीं इलाकों से चार महीने पहले आतंकवादी भी पकड़े गए थे। दिसंबर में जामिया में अमानतुल्ला खान, सीलमपुर में अब्दुर्रहमान और जामा मस्जिद में शुएब इकबाल ने खुलेआम दंगाई भीड़ का नेतृत्व किया था। इन तीनों पर FIR दर्ज है और तीनों को केजरीवाल ने टिकट भी दिया।
उमर खालिद खुलकर एलान कर चुके थे कि ट्रम्प के सामने सड़कों पर बवाल करना है। मुस्तफाबाद के हिन्दू परिवार बताते हैं कि कैसे विधायक हाजी यूनुस दंगाइयों की मदद कर रहे थे। ट्रम्प के दिल्ली आने वाले दिन जामिया के स्टूडेंट्स ने नई दिल्ली में बड़े प्रदर्शन की घोषणा कर रखी थी। मालवीय नगर के हौजरानी में सुबह से बड़े-बड़े इस्लामिक जुलूस निकाल जा रहे थे। जाफराबाद, चाँद बाग, खुरेजी, इंद्रलोक, निज़ामुद्दीन, हौजरानी और शाहीन बाग में सड़के बंद करके मजहबी भीड़ खुलेआम खड़ी थी। दिल्ली के तीस हजारी, फिल्मिस्तान में लगभग 50,000 कट्टरपंथी सुबह से इकट्ठा होकर सड़कों पर घूम रहे थे।
भीड़ थी, हथियार थे और घेराव था। सब तैयार था लेकिन एक गड़बड़ हो गई। एक दिन पहले दोपहर एक बजे कपिल मिश्रा ने मौजपुर में आने की घोषणा कर दी। तीन बजे वहाँ सड़क बंद होने व बढ़ते तनाव से त्रस्त हिन्दू जनता इकट्ठा होने लगी। जाफराबाद और कबीरनगर की मजहबी भीड़ बेकाबू हो गई। जो कत्लेआम देर रात शुरू होने थे, उसका वेट किए बगैर जाफराबाद और कबीर नगर की हथियारों से लैस भीड़ मौजपुर में टूट पड़ी।
टीवी पर खबर चली और बाकी इलाकों में भी पथराव शुरू हो गए। लोग चौकन्ने हो गए और मोहल्लों में इकट्ठा होकर गश्त करने लगे।
जिस प्रकार से चांद बाग में CAA के विरोध में धरने पर बैठी मजहबी भीड़ ने भजनपुरा में पेट्रोल पंप में आग लगाई, वो अगर पंप की टंकियों तक पहुँच जाती तो कम से कम आधे किलोमीटर तक सब कुछ ख़त्म हो जाता।
जनता चौकन्नी हो चुकी थी, पुलिस तैनात और दंगाई एक्सपोज हो चुके थे। इन सबके बावजूद जिस तरह से अंकित शर्मा की निर्ममता से हत्या हुई, वो बताता है कि हत्यारे आतंकी सोच से भरे हुए थे। शायद जाने-अनजाने में कपिल मिश्रा ने मौजपुर में जो हिम्मत दिखाई, उससे एक बड़ी साजिश कामयाब नहीं हो पाई।
कपिल मिश्रा के एक कदम से एक बड़ा नरसंहार होने से बच गया।
NOTE: लेखक अपना नाम प्रकाशित नहीं करवाना चाहते हैं।
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