केंद्र की मोदी सरकार द्वारा प्रस्तावित वक्फ संशोधन बिल के विरोध में मुस्लिमों का साथ ईसाई संगठनों ने दिया है। वहीं, केरल में ईसाई और हिंदुओं की आबादी वाली 404 एकड़ पर वक्फ बोर्ड द्वारा दावा करने के बाद लोग इस संशोधन बिल के संसद में पास होने के लिए ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं। इस तरह की प्रार्थना सिर्फ केरल ही नहीं, बल्कि कर्नाटक एवं तमिलनाडु सहित कई राज्यों के हजारों परिवार कर रहे हैं, क्योंकि उनकी जमीनों पर वक्फ के दावों से उनके सामने जीवन का संकट उत्पन्न हो गया है।
दरअसल, ईसाई सांसदों के एक वर्ग ने भारत के कैथोलिक बिशप सम्मेलन (CBCI) से वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 पर मुस्लिम समुदाय के साथ खड़े होने के लिए कहा है। विपक्षी ईसाई सांसदों ने कैथोलिक चर्चों का प्रतिनिधित्व करने वाली CBCI से कहा कि चर्च को अल्पसंख्यक अधिकारों का समर्थन करने के अपने उसी रुख को अपनाना चाहिए, जो संविधान में दिए गए हैं। इस संबंध में CBCI ने दिल्ली में एक बैठक भी की।
बैठक में भाग लेने वाले एक सांसद ने कहा कि चर्च के नोटिस में ये बात लाई गई कि वक्फ संशोधन विधेयक संवैधानिक मूल्यों पर उल्लंघन करता है। एर्नाकुलम जिले के मुनम्बम तट में 404 एकड़ पर वक्फ के दावे जैसे व्यक्तिगत मामलों के बावजूद इसका विरोध किया जाना चाहिए। दरअसल, जिस जगह पर केरल वक्फ बोर्ड ने दावा किया है, वहाँ कुछ 600 ईसाई और हिंदू परिवारों पीढ़ियों से रहते आ रहे हैं।
इस विवाद में मुख्य रूप से मुनम्बम, चेराई, और पल्लिकाल द्वीप के इलाके शामिल हैं, जो कई दशकों से इन परिवारों की संपत्ति रही है। अब यह इलाका वक्फ बोर्ड की नज़र में है, जिससे इन परिवारों को अपनी जमीन खोने का डर सताने लगा है। करीब पाँच साल पहले साल 2019 वक्फ बोर्ड ने दावा किया कि मुनम्बम, चेराई और पल्लिकाल के इलाके उनकी संपत्ति हैं।
यह इलाका न केवल केरल के 600 से अधिक परिवारों का घर है, बल्कि यहाँ विभिन्न धर्मों के लोग रहते हैं। इन लोगों के पास 1989 से जमीन के वैध कागजात हैं। इसके बावजूद, वक्फ बोर्ड ने इस इलाके पर अपना दावा ठोक दिया। इन परिवारों ने अपनी जमीन को वैध रूप से खरीदा था, लेकिन अब उन्हें जबरन खाली करने के आदेश दिए जा रहे हैं, जो उनके संवैधानिक अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है।
साल 1902 तक जाती है विवाद की जड़
दरअसल, 1341 ईस्वी में केरल में भयानक बाढ़ आई। इस दौरान वाइपिन आईलैंड के ऊतरी हिस्से पर मुनम्बम बना। साल 1503 में पुर्तगालियों ने यहाँ हमला किया और 1663 में डचों ने इस पर कब्जा कर लिया। यह डचों के अधिकार में लंबे समय तक रहा। इसके बाद 1789 ईस्वी में डचों ने मुनम्बम को त्रावणकोर के महाराजा को बेच दिया। इसके बाद विवाद की शुरुआत होती है।
साल 1902 में त्रावणकोर के महाराजा ने गुजरात से आए एक किसान अब्दुल सत्तार मूसा हाजी सैत को यहाँ की 404 एकड़ जमीन और 60 एकड़ जल क्षेत्र पट्टे पर दिया था। उस समय, यह जमीन मछुआरों के लिए अलग रखी गई थी, जो वहाँ कई वर्षों से रह रहे थे। 1948 में सेठ के उत्तराधिकारी एवं दामाद सिद्दीक सैत ने यह जमीन अपने नाम पर पंजीकृत करवा ली।
इस जमीन का एक बड़ा हिस्सा समुद्री कटाव के कारण खो गया और साल 1934 की भारी बारिश ने पांडरा समुद्र किनारे की जमीन को पूरी तरह नष्ट कर दिया था। हालाँकि, सिद्दीक सैत द्वारा पंजीकृत जमीन में मछुआरों के रहने वाले इलाके भी शामिल हो गए। साल 1950 में सिद्दीक सैत ने यह जमीन फरूख कॉलेज को उपहार में दे दी, जो मुस्लिमों को शिक्षित करने के लिए 1948 में बनाया गया था।
इसके साथ ही सिद्दीकी सैत ने शर्त रखी थी। शर्त यह थी कि कॉलेज केवल शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए ही इसका उपयोग करेगा। अगर कभी कॉलेज बंद हो जाता है तो जमीन वापस सिद्दीकी सैत के वंशजों को लौटा दी जाएगी। हालाँकि, दस्तावेजों में गलती से या जानबूझकर ‘वक्फ’ शब्द लिख दिया गया, जिससे अब यह विवाद खड़ा हो गया है। कहा जाता है कि 1 नवंबर 1950 को कोच्चि के एडापल्ली में उप-पंजीयक कार्यालय में एक वक्फ पंजीकृत किया गया था। इसमें सैत ने फारूक कॉलेज के अध्यक्ष के पक्ष में पंजीकृत कराया था।
विवाद की शुरुआत और आयोग का गठन
फारूख कॉलेज के प्रबंधन को करीब एक दशक बाद जमीन का मालिकाना हक मिल गया। साल 1960 के दशक के आखिर में जमीन पर कब्जा करने वालों के बीच कानूनी लड़ाई शुरू हो गई। कॉलेज प्रबंधन यहाँ रहने वाले लोगों को बेदखल करना चाहता था। कैथोलिक ईसाई और दलित हिंदू समुदाय के ये लोग पीढ़ियों से वहाँ रह रहे थे, लेकिन उनके पास स्वामित्व साबित करने के लिए कानूनी दस्तावेज नहीं थे।
आखिरकार, अदालत के बाहर समझौते में कॉलेज प्रबंधन ने बाजार दर पर जमीन को अपने कब्जेदारों को बेचने का फैसला किया। दस्तावेजों से पता चलता है कि बिक्री के कामों में कॉलेज प्रबंधन ने यह उल्लेख नहीं किया कि विचाराधीन भूमि वक्फ संपत्ति थी, जिसे शिक्षा के उद्देश्य से कॉलेज प्रबंधन समिति के अध्यक्ष को दिया गया था। इसके बजाय उन्होंने कहा कि यह संपत्ति 1950 में गिफ्ट डीड में मिली थी।
निसार आयोग और नया विवाद: केरल राज्य वक्फ बोर्ड के खिलाफ कई शिकायतों मिलने के बाद वीएस अच्युतानंदन के नेतृत्व वाली सीपीआई (एम) सरकार ने 2008 में एक आयोग गठित किया। यह आयोग सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश एमए निसार के नेतृत्व में नियुक्त किया गया। आयोग का काम बोर्ड द्वारा परिसंपत्तियों के नुकसान के लिए जिम्मेदारी तय करना था।
इसके अलावा, अयोग को इन परिसंपत्तियों की वसूली के लिए कार्रवाई की सिफारिश करना भी शामिल था। आयोग ने साल 2009 में अपनी रिपोर्ट दी। इस रिपोर्ट में आयोग ने मुनंबम में जमीन को वक्फ संपत्ति माना और कहा कि कॉलेज प्रबंधन ने बोर्ड की सहमति के बिना इसकी बिक्री को मंजूरी दे दी थी। इसने इसकी वसूली के लिए कार्रवाई की सिफारिश की थी।
वक्फ बोर्ड ने घोषित कर दी वक्फ संपत्ति: इसके बाद साल 2019 में वक्फ बोर्ड ने खुद ही मुनंबम भूमि को वक्फ अधिनियम 1995 की धारा 40 और 41 के अनुसार वक्फ संपत्ति घोषित कर दी। बोर्ड ने राजस्व विभाग को निर्देश दिया कि वह भूमि के वर्तमान कब्जेदारों (जो कई वर्षों से कर का भुगतान कर रहे थे) से भूमि कर स्वीकार ना करे।
राजस्व विभाग को दिए गए इस निर्देश को राज्य सरकार ने साल 2022 में खारिज कर दिया। इसके बाद बोर्ड ने राज्य सरकार के फैसले को केरल हाई कोर्ट में उसी साल चुनौती दी। न्यायालय ने फिलहाल राज्य सरकार के फैसलों पर रोक लगा दी है। वर्तमान में, इस विवाद को लेकर भूमि के कब्जेदारों के साथ-साथ वक्फ संरक्षण समिति की ओर से एक दर्जन से अधिक अपीलें न्यायालय में लंबित हैं।
हालात को लेकर असमंजस में लोग
केरल के एर्नाकुलम जिले में कोच्चि से लगभग 38 किलोमीटर दूर अरब सागर के किनारे मुनम्बम स्थित है। यहाँ 610 परिवारों रहते हैं, जिनमें 510 कैथोलिक ईसाई और 100 हिंदू परिवार हैं। इन लोगों कहना है कि इन लोगों ने फारूख कॉलेज के मैनेजमेंट से यह जमीन खरीदी थी। इसको लेकर वे पिछले 60 साल से कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। वहीं, साल 2019 में वक्फ ने इसे अपनी संपत्ति घोषित कर दी।
भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक, मुनम्बम में रहने वाले समर समिति (एक्शन काउंसिल) के संयोजक जोसेफ बेनी ने बताया कि यहाँ पर अधिकतर मछुआरा समुदाय के लोग रहते हैं। वे पीढ़ियों से यहाँ रह रहे हैं और सालों से भूमि कर भर रहे हैं। बेनी का कहना है कि साल 2022 में उन्हें बताया गया था कि वे टैक्स नहीं भर पाएँगे और ना ही जमीन बेच या गिरवी रख सकते हैं।
लगभग 68 साल की ओमाना यायी का कहना है कि वह पिछले 50 साल से मुनम्बम में रह रही हैं। उनकी शादी यहीं से हुई थी। उन्होंने कहा कि जब कॉलेज वालों से जमीन खरीदी गई थी, तब यहाँ पानी भरा हुआ था। उन्होंने कहा, “हम आधी रात को मछली पकड़ने जाते थे और लौटते समय सिर पर रेत लेकर आते थे। रेत भर-भरकर जमीन ऊँचा किया, तब यह जमीन रहने लायक हुई। इसमें वक्फ कहाँ से आ गया?”