अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर भूमिपूजन के साथ ही अब मथुरा में 14 राज्यों के 80 संतों के साथ श्रीकृष्ण जन्मभूमि निर्माण न्यास की स्थापना की गई है। अयोध्या के बाद अब मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि को मुक्त कराने के लिए आंदोलन की रणनीति पर चर्चा जोरों पर है। रिपोर्ट्स के अनुसार, ट्रस्ट के प्रमुख आचार्य देवमुरारी बापू ने कहा, “हमने 23 जुलाई को ‘हरियाली तीज’ के अवसर पर पंजीकरण कराया और वृंदावन से 11 संत आए, जो ट्रस्ट का हिस्सा हैं।”
आचार्य ने आगे कहा कि श्रीकृष्ण जन्मभूमि की आजादी के लिए अन्य संतों और साधुओं को जोड़ने के लिए जल्द ही एक हस्ताक्षर अभियान शुरू किया जाएगा। उन्होंने कहा, “हस्ताक्षर अभियान के बाद, हम इस मुद्दे पर एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू करेंगे। हमने फरवरी में अभियान शुरू किया था, लेकिन हम लॉकडाउन के कारण आगे नहीं बढ़े।”
ट्रस्ट में वृंदावन के 11 पदाधिकारी नियुक्त किए गए हैं। इसके अलावा 14 राज्यों के 80 संत, महामंडलेश्वर को जोड़ा गया है। राष्ट्रीय कार्यकारिणी की घोषणा कर दी गई है, जिसमें निर्णय लिया गया है कि ट्रस्ट में वृंदावन के संत और महंतों को जोड़ने के लिए हस्ताक्षर अभियान चलाया जाएगा।
मथुरा में शाही ईदगाह है विवाद का विषय
श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामले में मुख्य विवाद का विषय शाही ईदगाह है, जो मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर के निकट स्थित है। श्रीकृष्ण जन्मभूमि निर्माण न्यास पहले से ही मस्जिद के बगल में साढ़े चार एकड़ भूमि पर दावा कर रहा है और चाहता है कि इसे और मंदिर के अधिकारियों द्वारा आयोजित धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यों के लिए ‘रंग मंच’ के रूप में इस्तेमाल किया जाए।
अयोध्या के बाद अब मथुरा और काशी
वर्ष 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद से विश्व हिंदू परिषद (VHP) दावा करती रही है कि मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि और वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर को ‘स्वतंत्र’ करना उसके एजेंडे में है।
उल्लेखनीय है कि मथुरा के शाही ईदगाह को ‘प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट’ के तहत संवैधानिक प्रोटेक्शन मिलता है। दिसंबर 6, 1992 को बाबरी विध्वंस के बाद धीरे-धीरे ‘अयोध्या तो एक झाँकी है, काशी-मथुरा बाकी है’ के नारे राजनीतिक परिदृश्यों के चलते काशी और मथुरा ठंडे बस्ते में चले गए थे।
लेकिन बहुमत के साथ सत्ता में आते ही अयोध्या श्रीराम मंदिर पर केंद्र सरकार ने तत्परता से काम किया है। हालाँकि, इस बारे में अभी बिल्कुल साफ-साफ कहना जल्दबाज़ी होगी कि बीजेपी, काशी और मथुरा के मुद्दों को अयोध्या की तरह प्राथमिकता देगी या नहीं।
विश्व हिंदू परिषद का कहना है कि मथुरा में ठीक मस्जिद के स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था और वह मस्जिद नहीं बल्कि हमारी ज़मीन है। विहिप ने कहा था – “वह मस्जिद है ही नहीं, वह हमारी ज़मीन है।” इस मंदिर परिसर के ठीक बाहर मथुरा का सबसे पुराना मंदिर है, जिसका नाम है केशव देव जी महाराज मंदिर!
ऐतिहासिक तथ्यों से पता चलता है कि जनवरी 1670 में रमजान के महीने में औरंगजेब ने मथुरा के एक बहुत प्रसिद्ध मंदिर को तोड़ने का आदेश दिया था। इस मंदिर का नाम केशव राय मंदिर था, जिसे ओरछा के राजा बीर सिंह बुंदेला ने उस दौर में 33 लाख रुपए में बनवाया था।
इतिहासकार डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल ने कटरा केशवदेव को ही श्रीकृष्ण जन्मभूमि माना है। विभिन्न अध्ययनों और साक्ष्यों के आधार पर मथुरा के राजनीतिक संग्रहालय के दूसरे कृष्णदत्त वाजपेयी ने भी स्वीकारा कि कटरा केशवदेव ही कृष्ण की असली जन्मभूमि है।
इतिहासकारों के अनुसार, सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य द्वारा बनवाए गए इस भव्य मंदिर पर महमूद गजनवी ने सन 1017 में आक्रमण कर इसे लूटने के बाद तोड़ दिया था।