मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा है कि दफ्तर के भीतर किसी को ‘चमार’ कहना अपराध नहीं है, क्योंकि यह एक सार्वजनिक स्थान नहीं है। यह निर्णय देते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने दो व्यक्तियों को दोषमुक्त करार दे दिया।
वर्ष 2010 में एक व्यक्ति ने शहडोल के जैतपुर पुलिस थाने में यह मामला दर्ज करवाया था कि कमलेश शुक्ला और आशुतोष तिवारी ने एक स्कूल के स्टाफ रूम में एक मीटिंग के दौरान उसे ‘चमार’ कहा। इन दोनों के खिलाफ SC/ST अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया था। दोनों व्यक्तियों पर SC/ST एक्ट की धारा 3(1)x के तहत मामला दर्ज किया गया था।
दोनों व्यक्तियों ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में यह याचिका डाली थी कि उनके विरुद्ध चल रहे इस मामले को खत्म कर दिया जाए। इस मामले की सुनवाई मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति विशाल धगट कर रहे थे। हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में सार्वजनिक और जगह की परिभाषा स्पष्ट करते हुए निर्णय दिया।
कोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक स्थान कोई ऐसा स्थान होता है, जहाँ जनता आ जा सकती है। स्कूल का स्टाफ रूम कोई ऐसी जगह नहीं है, जहाँ आम जनता आ-जा सके। ऐसे में यह एक सार्वजनिक स्थान नहीं है। हाईकोर्ट ने कहा कि इसके सार्वजनिक स्थान ना होने के कारण मामला भी नहीं बनता और यहाँ यदि चमार कहा गया है तो यह अपराध की श्रेणी में नहीं आता।
कोर्ट ने कहा कि अश्लील गाने या कृत्य यदि सार्वजनिक स्थान पर नहीं हुए हैं तो उन पर भी दंड नहीं दिया जा सकता। ऐसे में दोनों व्यक्तियों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 294 के तहत मामला भी नहीं बनता है। इन दोनों व्यक्तियों पर आरोप था कि उन्होंने स्टाफरूम में अश्लील गाने बजाए हैं।
इन दोनों व्यक्तियों पर मामला दर्ज करवाने वाले ने यह भी कहा था उसे धमकी दी गई। कोर्ट ने इस पर कहा कि धमकी से ना ही शिकायतकर्ता को कोई नुकसान पहुँचा और ना ही वह चिंतित हुआ ऐसे में यह मामला भी नहीं बनता है।