मद्रास हाई कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कोर्ट इस बात ध्यान रखें कि शादी के वादे के सहारे रेप वाले मामलों का इस्तेमाल पुरुषों के खिलाफ ना हो। हाई कोर्ट ने कहा कि पुरुषों को महिलाओं से जुड़े दुष्ट लोगों से बचाना कोर्ट का कर्तव्य है। कोर्ट ने इसी के साथ ही ऐसे ही एक मामले में आरोपित राहुल गाँधी नाम के शख्स को निर्दोष करार दिया।
मद्रास हाई कोर्ट ने यह टिप्पणियाँ एक मामले की सुनवाई के दौरान की जिसमें एक महिला ने राहुल गाँधी नाम के एक शख्स (कॉन्ग्रेस नेता नहीं, अन्य) पर शादी का वादा करके रेप करने के आरोप लगाए थे। महिला का आरोप था की उससे शादी का वादा करके संबंध बनाने के लिए दबाव डाला गया था।
इस मामले में राहुल गाँधी के खिलाफ बलात्कार और धोखाधड़ी समेत अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया था। हाई कोर्ट ने सुनवाई के दौरान इन आरोपों को तथ्यपरक नहीं पाया और राहुल गाँधी को निर्दोष करार दिया। कोर्ट ने इस दौरान महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ भी की।
मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस एम धन्धापानी ने कहा, “इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि झूठे वादों के बहाने महिलाओं का गलत तरीके से शोषण किया जाता है। इसमें कभी उनकी सहमति से भी और कई मामलों में उनकी सहमति के खिलाफ या तो मीठी-मीठी बातों से या फिर दबाव से पुरुषों की यौन इच्छाओं को संतुष्ट करना भी शामिल है।”
कोर्ट ने आगे कहा, “लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता। यह नहीं कहा जा सकता कि केवल पुरुष ही महिलाओं का दुरुपयोग करते हैं बल्कि कई कानूनी मामलों में महिलाओं से जुड़े दुष्ट लोग भी अपने लाभ के लिए कानून का दुरुपयोग करते हैं। इसलिए इस तरह के मामलों में कोर्ट पर दोहरा कर्तव्य होता है कि न केवल यह देखे कि महिलाओं का दुरुपयोग न हो, बल्कि पुरुषों के खिलाफ भी कानून का दुरुपयोग न हो।”
कोर्ट ने कहा कि इस मामले में महिला को पहले ही पता था कि आरोपित शादीशुदा है, ऐसे में शादी नहीं हो सकती, तब फिर शादी के वादे का दावा नहीं टिकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि आरोपित को यह नहीं मालूम था कि पीड़िता मात्र शादी के भरोसे ही उसके साथ संबंध बना रही है। ऐसे में उसके खिलाफ रेप की सजा का मामला नहीं बनता।