महाराष्ट्र दो साधुओं सहित तीन लोगों की भीड़ द्वारा हुई निर्मम हत्या के मामले को न सिर्फ़ मीडिया बल्कि पालघर पुलिस ने भी दबाने की भरसक कोशिश की। अगर ऐसा नहीं होता तो घटना के तीन दिन बाद वीडियो वायरल होने पर पुलिस और प्रशासन हरकत में नहीं आता। पालघर पुलिस ने मॉब लिंचिंग को दबाने के लिए बार-बार बयान भी बदले।
मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने भी तभी बयान दिया, जब इसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ और जनाक्रोश थमने का नाम नहीं ले रहा था। यहाँ हम आपको बताएँगे कि वीडियो वायरल होने से पहले पुलिस कैसे इस मामले को दबाने के लिए अलग-अलग बातें बोल रही थी।
16 अप्रैल को हुई इस निर्मम घटना में महाराज कल्पवृक्ष गिरी और सुशिल गिरी महाराज की हत्या कर दी गई थी। इस खबर को स्थानीय और अंग्रेजी मीडिया द्वारा कवर किया गया। लेकिन ‘चोरी के शक में हत्या’ वाले एंगल के कारण लोगों का इस पर ध्यान ही नहीं गया।
अप्रैल 18 को ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में एक ख़बर आई थी, जिसमें कासा पुलिस थाने के असिस्टेंट पुलिस इंस्पेक्टर ने कहा था कि पुलिस ने पीड़ितों को बचाने की पूरी कोशिश की। लेकिन भीड़ उग्र और आक्रामक थी जिसकी वजह से पुलिस उन्हें बचा नहीं पाई। असिस्टेंट इंस्पेक्टर आनंदराव काले का कहना था कि भीड़ ने पुलिस पर भी हमला किया, पत्थरबाजी की।
हालाँकि, वीडियो में ठीक उसके उलट दृश्य दिख रहा है। पुलिस ने साधुओं को बचाने की कोई चेष्टा नहीं की। जब भीड़ ने उन साधुओं पर हमला किया तो आत्मरक्षा के लिए उन्होंने पुलिस का हाथ पकड़ा, लेकिन पुलिसकर्मियों ने उनका हाथ झटक दिया।
अब ‘पीटीआई’ में प्रकाशित काले के बयान को देखते हैं। इसमें उन्होंने कहा था कि जब तक पुलिस घटनास्थल पर पहुँची, तब तक तीनों की हत्या हो चुकी थी और उनके शव वहाँ पर पड़े हुए थे। साथ ही कहा गया कि उनकी गाड़ी भी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुकी थी। ये दावा भी झूठा है, क्योंकि वीडियो में पुलिस वाले वहाँ पर मौजूद दिख रहे हैं।
Read this statement by an asst police inspector quoted by HT in a report two days ago.
— Swati Goel Sharma (@swati_gs) April 19, 2020
“The mob was strong and we tried to save the passengers but it also targeted us…”
Does the video corroborate anything he is saying? Doesn’t seem so #palgharlynching pic.twitter.com/EuZtwyumJ5
वहीं ‘द हिन्दू’ में अलग ही किस्म की रिपोर्ट प्रकाशित हुई। इसमें कहा गया कि पुलिस जब वहाँ पहुँची तो सभी पीड़ित घायल अवस्था में वहाँ पड़े हुए थे। कासा पुलिस थाने ने कहा था कि जब उनकी पेट्रोलिंग गाड़ी वहाँ पर पहुँची तो पाया कि तीनों घायल अवस्था में पड़े हुए थे। फिर ग्रामीणों ने पुलिस की गाड़ी को घेर कर वहाँ पत्थरबाजी की, जिसके बाद जवानों को वहाँ से जान भगा कर भागना पड़ा। ये कासा थाने के हवाले से द हिन्दू ने कहा है।
मॉब लिंचिंग पर पालघर पुलिस के बार-बार बदलते बयान के बीच इस मामले की जाँच सीआईडी को सौंप दी गई है। महाराष्ट्र सरकार कह रही है कि आरोपितों में कोई भी मजहब विशेष से नहीं है। बॉम्बे हाईकोर्ट में एक पीआईएल दाखिल कर अधिवक्ता अलख आलोक श्रीवास्तव ने पूरी घटना की सीबीआई जाँच कराने की माँग की है।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने महाराष्ट्र के डीजीपी को एक नोटिस भेज कर पुलिसकर्मियों की असंवेदनशीलता पर जवाब-तलब किया है। अब तक 110 लोगों की गिरफ्तारी की ख़बर है, जिनमें से 101 आरोपितों को 30 अप्रैल तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है।
मॉब लिंचिंग के मामले में गिरफ्तार किए गए लोगों के परिजनों ने भाजपा सरपंच चित्रा चौधरी को पुलिस से मिलीभगत के शक में कथित तौर पर गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी है। मामले में गिरफ्तार किए गए आरोपितों के परिजनों को शक है कि सरपंच ने ही मामले की जानकारी पुलिस को दी थी।
इस मामले को लेकर शिवसेना नेता विजय कृष्ण ने लाइव डिबेट के दौरान पार्टी से इस्तीफा देने का खुलासा किया। उन्होंने महाराष्ट्र सरकार को खुली चुनौती दी। उन्होंने कहा कि सरकार हिंदुओं को कलंकित कर रही है और वह अपने द्वारा दिए गए बयानों को लेकर गिरफ्तार होने के लिए भी तैयार हैं।