पालघर मॉब लिंचिंग को लेकर एक चौंकाने वाली बात ये पता चली है कि इस क्षेत्र में शराब माफियाओं का बोलबाला है। शराब का व्यापार धड़ल्ले से चलता है। सामाजिक सेवा में लगे लोग और साधु-संत इन चीजों का विरोध करते हैं। शराब माफिया ऐसे लोगों को दुश्मन समझते हैं।
पालघर में सक्रिय सामाजिक संस्थाओं ने बताया कि पिछले कई महीनों से ये क्षेत्र धर्मान्तरण और ईसाई मिशनरियों के दुष्प्रचार का गढ़ बन गया है। हिन्दू संगठन इसका विरोध करते हैं और इसलिए साधुओं से वे दुश्मनी पालते हैं।
पालघर मॉब लिंचिंग: प्रत्यक्षदर्शी ने बताई सच्चाई
महाराष्ट्र के पालघर में दो साधुओं की भीड़ द्वारा निर्मम हत्या से कई अनसुलझे सवाल उठ खड़े हुए हैं। महाराष्ट्र पुलिस इस घटना में संलिप्त लोगों को गिरफ़्तार कर लेने की बात कही है। अब इस हत्याकांड के पीछे बड़ी साज़िश का पता चला है। धनुआ क्षेत्र के गढ़-चिंचले गाँव की सरपंच चित्र चौधरी ने इस घटना के बारे में बहुत कुछ बताया है। बता दें कि वो इस घटना की प्रत्यक्षदर्शी भी हैं। 16 अप्रैल के दिन वो घटनास्थल पर सबसे पहले पहुँची थीं और अपनी आँखों से सब कुछ देखा था।
‘ज़ी न्यूज़’ ने अपनी ग्राउंड रिपोर्टिंग के दौरान सरपंच से बात की। उन्हें घटना वाले दिन शाम 8:30 में पता चला कि चेकपोस्ट पर एक गाड़ी को रोका गया है। वे 15 मिनट के भीतर वहाँ पहुँचीं तो पता चला कि गाड़ी के अंदर एक ड्राइवर और दो साधु हैं। उन तीनों ने सरपंच का अभिवादन भी किया। वे उन तीनों से बात कर रही थीं, तभी अचानक से एक बड़ी भीड़ वहाँ जमा हो गई। बदमाशों ने गाड़ी की टायरों को पंक्चर कर दिया और गाड़ी को धक्का मार पलट दिया।
चित्रा ने बताया कि उन्होंने लोगों को समझाने की भरसक कोशिश की। वे पुलिस के आने तक लोगों को रोकना चाहती थीं लेकिन भीड़ उन पर ही गुस्सा हो गई। सरपंच ने बताया कि वो कम से कम 3 घंटे तक उग्र भीड़ को रोकने की कोशिश करती रहीं। पुलिस घटनास्थल पर लगभग रात 11 बजे पहुँची। गाड़ी में से दो लोग किसी तरह पुलिस की गाड़ी में बैठने में सफल रहे। लेकिन, जैसे ही वृद्ध साधु पुलिस का हाथ पकड़ कर बाहर निकले, भीड़ अचानक से बेख़ौफ़ हो गई और उन पर हमला कर दिया।
चित्रा ने बताया कि इस घटना में उन्हें भी चोटें आईं और वो किसी तरह भाग कर अपने घर पहुँचने में कामयाब रहीं। जब वे रात 12 बजे फिर से चेकपोस्ट के पास पहुँचीं तो उन्होंने देखा कि वहाँ दोनों साधुओं और ड्राइवर की लाशें पड़ी हुई थी। प्रत्यक्षदर्शी के बयान के बाद ये सवाल तो खड़ा होता ही है कि अचानक से भीड़ को किसने भड़काया था कि वो साधुओं को मार डाले? सरपंच का कहना है कि उन तीनों की हत्या के पीछे कोई राजनीतिक साजिश है।
ईसाई मिशनरी और उन्हें मिलता राजनीतिक संरक्षण
उग्र भीड़ के साथ एनसीपी का काशीनाथ चौधरी भी खड़ा था। कहा जा रहा है कि यहाँ के ईसाई मिशनरियों को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है और एनसीपी नेता का वहाँ होना इस बात की पुष्टि करता है। सीपीएम के नेता भी उस भीड़ में शामिल थे। वामपंथियों का हिन्दू-विरोधी चेहरा किसी से छिपा नहीं है। इससे पता चलता है कि कल्पवृक्ष गिरी महाराज और सुशील गिरी महाराज को राजनीतिक कारणों से मारा गया है। साधुओं की हत्या के लिए बच्चा-चोर की अफवाह तो बस असली साज़िश छुपाने का आवरण है।
पालघर के इस क्षेत्र में रावण की पूजा भी होती आई है। यहाँ इससे पहले भी कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जब रावण का महिमामंडन किया गया और उसकी पूजा के लिए कार्यक्रम आयोजित किए गए। इसके कारण भी ट्राइबल समूहों और हिंदूवादी समूहों में झड़प की कई ख़बरें आई थीं। यहाँ से कई कोण निकलते हैं, जैसे- असुरों का महिमामंडन, ईसाई मिशनरियों का प्रभाव, उन्हें मिलता राजनीतिक संरक्षण और शराब माफियाओं का खेल। हिन्दू संगठनों ने भी कहा है कि इसके पीछे बड़ी साजिश है।
घटना को छिपाने की पुलिस ने की थी कोशिश
जैसा कि हमें पता है, इस घटना को लेकर तीन दिन बाद लोगों को पता चला, जब वीडियो वायरल हुआ। न सिर्फ़ मीडिया बल्कि पालघर पुलिस ने भी मामले को दबाने की भरसक कोशिश की। अगर ऐसा नहीं होता तो घटना के तीन दिन बाद वीडियो वायरल होने पर पुलिस और प्रशासन हरकत में नहीं आता। पालघर पुलिस ने मॉब लिंचिंग को दबाने के लिए बार-बार बयान भी बदले। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने भी तभी बयान दिया, जब इसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ और जनाक्रोश थमने का नाम नहीं ले रहा था।