जफरुल इस्लाम ने एक बार फिर अपनी हिंदू घृणा का प्रदर्शन किया है। उन्होंने मथुरा को लेकर हिंदुओं को नमकहराम बताने की कोशिश की है। साथ ही कहा है कि मथुरा में हिंदुओं को उनका हिस्सा मिल चुका है। ध्यान रहे कि ये वही इस्लाम हैं जिन्हें दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार ने अल्पसंख्यक आयोग का चेयरमैन बनाया था। इसी पद पर रहते हुए उन्होंने हिंदुओं को अरब की धौंस दिखाई थी। वे ‘मिली गैजेट (Milli Gazette)’ नाम से एक मीडिया संस्थान भी चलाते हैं। इसके वे संस्थापक संपादक हैं। यह संस्थान गोधरा में रामभक्तों को ट्रेन में ज़िंदा जलाए जाने वाली घटना को भी जायज बताने की कोशिश कर चुका है।
जफरुल इस्लाम ने उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या का हवाला देते हुए एक ट्वीट किया है। इसमें मौर्या के उस ट्वीट का जिक्र हैं जिसमें उन्होंने कहा था, “अयोध्या, काशी में भव्य मंदिर निर्माण जारी है। मथुरा की तैयारी है।” साथ ही इस्लाम ने लिखा है, “यह धोखा है। हिंदुओं ने पहले ही ईदगाह की जमीन में अपना हिस्सा ले लिया है और एक समझौते के तहत मथुरा में एक भव्य मंदिर का निर्माण किया है।”
अयोध्या काशी भव्य मंदिर निर्माण जारी है
— Keshav Prasad Maurya (@kpmaurya1) December 1, 2021
मथुरा की तैयारी है #जय_श्रीराम #जय_शिव_शम्भू #जय_श्री_राधे_कृष्ण
अपने ट्वीट के साथ उन्होंने मिली गैजेट पर 8 अगस्त 2020 को प्रकाशित एक लेख का लिंक भी साझा किया है। यह लेख मथुरा पर हिंदुओं के दावे को खारिज करता है। इस लेख में शाही ईदगाह ट्रस्ट और श्री कृष्ण जन्मस्थान सेव संघ के बीच समझौते का जिक्र किया गया है।
UP Dy CM Mauriya tweets: “A grand temple in Ayodhya and Kashi is under construction; preparations are on for Mathura”. This is perfidy. Hindus have already taken their share of the Eidgah land & built a magnificent temple in Mathura under solemn agreement.https://t.co/NvrhI0nfi8
— Zafarul-Islam Khan (@khan_zafarul) December 1, 2021
इस समझौते का हवाला देकर एक तरह से हिंदुओं से कहने की कोशिश की गई है कि तुम सन् 1670 की बात मत करो। इसी साल औरंगजेब ने मथुरा पर हमला कर केशवदेव मंदिर को ध्वस्त कर दिया था और उसके ऊपर शाही ईदगाह मस्जिद बनवा दी थी। इस जगह के कृष्ण जन्मभूमि होने के तमाम साक्ष्य हैं। लेकिन इन साक्ष्यों को उसी तरह नजरंदाज किया जा रहा जैसा अयोध्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने तक होता रहता था।
गौरतलब है कि मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि की 13.37 एकड़ जमीन पर बने शाही ईदगाह मस्जिद पर हिन्दुओं का दावा नया नहीं है और न यह अभी केशव मौर्य के कहने से शुरू हुआ है। राम मंदिर मुक्ति आंदोलन के साथ ही काशी और मथुरा को भी मुक्त कराने की बात चली थी। यहाँ तक कि आजादी के पहले 1935 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने काशी राज को मथुरा में जन्मभूमि के अधिकार सौंपे थे। जहाँ बाद में 1951 में ‘श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट’ बना और यहाँ भव्य मंदिर के निर्माण का संकल्प लिया गया।
आगे चलकर 1958 में ‘श्रीकृष्ण जन्म सेवा संघ’ का गठन हुआ। कानूनी तौर पर इस संस्था को जमीन पर मालिकाना हक हासिल नहीं था लेकिन इसने ट्रस्ट के लिए तय सारी भूमिकाएँ निभानी शुरू कर दीं। इसके ठीक 10 साल बाद 8 अगस्त 1968 का वह कथित समझौता हुआ जिसका हवाला मिली गैजेट के लेख में दिया गया है।
दरअसल, श्रीकृष्ण जन्म सेवा संघ ने 1964 में पूरी जमीन पर नियंत्रण के लिए एक सिविल केस दाखिल किया था। लेकिन 1968 की तत्कालीन परिस्थितियों में शाही ईदगाह कमिटी और श्री कृष्णभूमि ट्रस्ट के बीच एक समझौता हो गया। इसके अनुसार, जमीन ट्रस्ट के पास रहेगी और मस्जिद के प्रबंधन का अधिकार मुस्लिम कमिटी को दे दिए गए। उसमें मुस्लिमों को शाही ईदगाह मस्जिद के प्रबंधन के अधिकार दे दिए गए। अब इसी समझौते को आधार बनाकर दावा किया जा रहा है कि ईदगाह मस्जिद पर पुनः दावा करने का कृष्ण भक्त हिन्दुओं को कोई अधिकार नहीं, बल्कि यह समझौते का उल्लंघन करते हुए धोखा है।