Sunday, December 22, 2024
Homeराजनीतिसरकार की दो टूक- रद्द नहीं होंगे कृषि कानूनः किसान नेताओं ने दी धमकी...

सरकार की दो टूक- रद्द नहीं होंगे कृषि कानूनः किसान नेताओं ने दी धमकी तो कहा- सुप्रीम कोर्ट ही करेगा फैसला

कृषि सुधार क़ानून वापस नहीं लिए जा सकते हैं बल्कि बेहतर यही होगा कि अब इस मुद्दे पर देश की सबसे बड़ी अदालत फैसला ले। सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए कहा है कि वह क़ानूनों में संशोधन पर ज़िम्मेदारी ले सकती है या माँगों पर विचार कर सकती है लेकिन क़ानून रद्द करने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता है।

कृषि सुधार क़ानूनों का विरोध लगातार दूसरे महीने भी जारी है, जिसमें ज़्यादातर किसान संगठन पंजाब के हैं। जहाँ एक तरफ किसान अपनी माँग पर अड़े हुए हैं कि उन्हें किसी भी तरह का संशोधन स्वीकार नहीं है वहीं दूसरी तरफ सरकार ने भी किसानों के ब्लैकमेलिंग पर समर्पण करने से साफ़ मना कर दिया है। 

सरकार ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि कृषि सुधार क़ानून वापस नहीं लिए जा सकते हैं बल्कि बेहतर यही होगा कि अब इस मुद्दे पर देश की सबसे बड़ी अदालत फैसला ले। सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए कहा है कि वह क़ानूनों में संशोधन पर ज़िम्मेदारी ले सकती है या माँगों पर विचार कर सकती है लेकिन क़ानून रद्द करने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता है। 

किसान संगठनों के पास ऐसी सूरत में दो ही विकल्प बचते हैं, या तो वह बेहतर सुझाव के साथ आगे आएँ या फिर सुप्रीम कोर्ट को अंतिम फैसला लेने दें। पिछली सुनवाई में इस मुद्दे पर टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक समिति के गठन की बात कही थी। जिसमें सिर्फ पंजाब, हरियाणा या पश्चिमी यूपी ही नहीं बल्कि देश के अन्य किसान संगठन शामिल हों। सुप्रीम कोर्ट सोमवार को इस मामले से जुड़ी अगली सुनवाई करेगा। 

ज़रूरत पड़ी तो सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ जाएँगे

केंद्र सरकार की तरफ से मिली यह तीखी प्रतिक्रिया प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों के गले नहीं उतरी। उन्होंने इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की तरफ से दखल दिए जाने की बात पर प्रतिरोध जताया। इस पर महिला किसान अधिकार मंच की कविता कुरुगांती ने कहा, “यह लोकतंत्र के लिए निराशा भरा दिन है। एक चुनी हुई सरकार बातचीत के बीच में सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटा रही है और चाहती है कि न्यायालय इस मुद्दे का हल निकाले।” सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपनी माँग के धुंधले होने के डर से किसान संगठनों ने यह कहना शुरू कर दिया कि उनका आंदोलन जारी रहेगा। अगर सुप्रीम कोर्ट भी उन्हें पीछे हटने के लिए कहता है फिर भी वह पीछे नहीं हटेंगे। 

भारतीय किसान यूनियन एकता उग्रहन के अध्यक्ष जोगिंदर सिंह उग्रहन ने भी वही राग अलापा। टाइम्स ऑफ़ इंडिया से बातचीत में उन्होंने कहा, “हमें इस बैठक से कोई उम्मीद नहीं थी। सरकार इन क़ानूनों को वापस लेने के लिए तैयार नहीं है लेकिन हम इससे कम कुछ भी स्वीकार नहीं करने वाले हैं।” इसी तरह क्रांतिकारी किसान यूनियन के अध्यक्ष दर्शन पाल ने कहा, “हम अपना मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में नहीं रखेंगे। अगर सुप्रीम कोर्ट ने हमें प्रदर्शन रोकने का आदेश दिया तो हम उनकी बात भी नहीं मानेंगे और अपना आंदोलन जारी रखेंगे।” 

किसान संगठनों की दलील ये है कि मुद्दा नीतिगत मामलों से जुड़ा हुआ है इसमें न्यायपालिका के हस्तक्षेप का कोई मतलब नहीं है। जबकि केंद्र सरकार का कहना है कि विरोध उन क़ानूनों का हो रहा है जो संवैधानिक प्रक्रिया के अंतर्गत पारित किए गए हैं। इसलिए इस मुद्दे पर देश की सबसे बड़ी अदालत ही फैसला ले तो बेहतर होगा।       

केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए कृषि सुधार क़ानूनों को लेकर किसानों और भारत सरकार के बीच शुक्रवार (8 जनवरी 2021) को आठवें दौर की बैठक ख़त्म हुई थी। इस बैठक में भी कोई नतीजा निकल कर नहीं आया। एक तरफ किसान अपनी माँग पर अड़े हुए हैं तो दूसरी तरफ केंद्र सरकार ने भी स्पष्ट कर दिया है कि वह कृषि सुधार क़ानून वापस नहीं लेगी। 15 जनवरी 2021 को किसान और सरकार के बीच अगली बैठक होनी है। 

कोई नतीजा निकल कर नहीं आया

वहीं सरकार का पक्ष रखते हुए कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने कहा, “हम एक लोकतांत्रिक देश के नागरिक हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था में अगर कोई क़ानून लोकसभा और राज्यसभा में पारित होता है तो सुप्रीम कोर्ट के पास उसका विश्लेषण करने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे पर सुनवाई हो भी रही है। आज की बैठक भी कृषि सुधार क़ानूनों पर चर्चा हुई है लेकिन उसका कोई परिणाम निकल कर नहीं आया है।”

सरकार का कहना है कि किसान तीनों क़ानूनों को वापस लेने के अलावा कोई और विकल्प दें तो उस पर विचार सम्भव है। लेकिन किसानों ने कोई अन्य विकल्प प्रदान नहीं किया। किसानों के साथ अगली बैठक 15 जनवरी को तय की गई है। वहीं भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के राकेश टिकैत ने कहा, “जब तक सरकार तीनों कृषि क़ानून वापस नहीं लेती है तब तक हमारा आंदोलन जारी रहेगा। हम सरकार द्वारा तय की 15 जनवरी की बैठक में शामिल होंगे, हम यहीं हैं। सरकार संशोधन की बता कह रही है लेकिन हमारी सिर्फ एक ही माँग है कि क़ानून रद्द किए जाएँ।”        

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

ऑपइंडिया स्टाफ़
ऑपइंडिया स्टाफ़http://www.opindia.in
कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

8 दिन पीछा कर पुलिस ने चोर अब्दुल और सादिक को पकड़ा, कोर्ट ने 15 दिन बाद दे दी जमानत: बाहर आने के बाद...

सादिक और अब्दुल्ला बचपने के साथी थी और एक साथ कई घरों में चोरियों की घटना को अंजाम दे चुके थे। दोनों को मिला कर लगभग 1 दर्जन केस दर्ज हैं।

बाल उखाड़े, चाकू घोंपा, कपड़े फाड़ सड़क पर घुमाया: बंगाल में मुस्लिम भीड़ ने TMC की महिला कार्यकर्ता को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा, पीड़िता ने...

बंगाल में टीएमसी महिला वर्कर की हथियारबंद मुस्लिम भीड़ ने घर में घुस कर पिटाई की। इस दौरान उनकी दुकान लूटी गई और मकान में भी तोड़फोड़ हुई।
- विज्ञापन -