समर्थकों के लिए ‘धरती पुत्र’ रहे उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और देश के रक्षा मंत्री रहे मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) का सोमवार (10 अक्टूबर 2022) को इंतकाल हो गया। उसके बाद उनका पार्थिव शरीर अंतिम दर्शन के लिए उनके पैतृक गाँव सैफई लाया गया। यही उनका अंतिम संस्कार होना है। लेकिन रामभक्त कोठारी बंधु का पार्थिव शरीर उनके घर लौट नहीं पाया था। गोली मारकर उनकी हत्या तब की गई थी, जब मुलायम सिंह यूपी के सीएम हुआ करते थे।
UP | People turn out in large numbers to pay their tributes to Samajwadi Party supremo and former CM Mulayam Singh Yadav at his ancestral home in Saifai
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) October 11, 2022
Several CMs and other leaders are expected to attend the last rites to be held today pic.twitter.com/CkLVHVnCfK
खत आया, भाई न आए
साल था 1990 और महीना था दिसंबर। पहले हफ्ते के एक दिन डाकिया आज के कोलकाता और तब के कलकत्ता के खेलत घोष लेन स्थित एक घर में पोस्टकार्ड लेकर पहुॅंचता है। बकौल पूर्णिमा कोठारी, “चिट्ठी देख मैं बिलख पड़ी। उसने माँ और बाबा का ध्यान रखने को लिखा था। साथ ही कहा था कि चिंता मत करना हम तुम्हारी शादी में पहुँच जाएँगे।” यह पत्र था पूर्णिमा के भाई शरद कोठारी का जो अपने बड़े भाई रामकुमार के साथ अयोध्या में 2 नवंबर को ही बलिदान हो चुके थे। चिट्ठी बलिदान से कुछ घंटों पहले ही लिखी गई थी।
वादा जो पूरा न हुआ
22 साल के रामकुमार और 20 साल के शरद कोलकाता में अपने घर के करीब बड़ा बाजार में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की शाखा में नियमित रूप से जाते थे। दोनों द्वितीय वर्ष प्रशिक्षित थे। कई अन्य स्वयंसेवकों की तरह ही राम और शरद ने भी विहिप की कार सेवा में शामिल होने का फैसला किया। 20 अक्टूबर 1990 को उन्होंने अयोध्या जाने के अपने इरादे के बादे में पिता हीरालाल कोठारी को बताया। उसी साल दिसंबर के दूसरे हफ्ते में बहन पूर्णिमा की शादी होनी तय थी। पिता ने कहा- कम से कम एक भाई तो घर पर रुको ताकि शादी के इंतजाम हो सके। पर दोनों भाई इरादे से पीछे नहीं हटे।
बकौल पूर्णिमा, “आखिर में एक शर्त पर पिता राजी हुए। उनसे हर रोज अयोध्या से खत लिखते रहने को कहा। अयोध्या के लिए निकलने से पहले उन्होंने ढेर सारे पोस्टकार्ड खरीदे ताकि चिट्ठियाँ लिख सके। मुझे जब पता चला कि भाई अयोध्या जा रहे हैं तो मैं दुखी हो गई। उन्होंने वादा किया कि वे मेरी शादी तक जरूर लौट आएँगे।” दिसंबर के पहले हफ्ते में पूर्णिमा को जो चिट्ठी मिली वो इनमें से ही एक पोस्टकार्ड पर लिखा गया था। पूर्णिमा की शादी भी उसी साल दिसंबर में हो गई। लेकिन, बहन से किया वादा पूरा करने दोनों भाई घर लौट नहीं पाए।
घर न लौटने की वह यात्रा
राम और शरद ने 22 अक्टूबर की रात कोलकाता से ट्रेन पकड़ी। हेमंत शर्मा ‘युद्ध में अयोध्या’ में लिखते हैं- बनारस आकर दोनों भाई रुक गए। सरकार ने गाड़ियाँ रद्द कर दी थी तो वे टैक्सी से आजमगढ़ के फूलपुर कस्बे तक आए। यहाँ से सड़क रास्ता भी बंद था। 25 तारीख से कोई 200 किलोमीटर पैदल चल वे 30 अक्टूबर की सुबह अयोध्या पहुँचे। 30 अक्टूबर को विवादित जगह पहुँचने वाले शरद पहले आदमी थे। विवादित इमारत के गुंबद पर चढ़कर उन्होंने पताका फहराई। दोनों भाइयों को सीआरपीएफ के जवानों ने लाठियों से पीटकर खदेड़ दिया। शरद और रामकुमार अब मंदिर आंदोलन की कहानी बन गए थे। अयोध्या में उनकी कथाएँ सुनाई जा रही थी।
दोनों भाइयों के साथ कोलकाता से अयोध्या के लिए निकले राजेश अग्रवाल के मुताबिक वे 30 अक्टूबर को तड़के 4 बजे अयोध्या पहुँचे। वे बताते हैं कि विवादित ढाँचे की गुंबद पर भगवा ध्वज फहरा कोठारी बंधुओं ने उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे मुलायम सिंह यादव की दावे की हवा निकाल दी थी। मुलायम ने कहा था, “वहाँ परिंदा भी पर नहीं मार सकता।”
घर से खींच मारी गोली
फिर आया 2 नवंबर का दिन। ‘युद्ध में अयोध्या’ के अनुसार दोनों भाई विनय कटियार के नेतृत्व में दिगंबर अखाड़े की तरफ से हनुमानगढ़ी की ओर बढ़ रहे थे। जब सुरक्षा बलों ने फायरिंग शुरू की तो दोनों पीछे हटकर एक घर में जा छिपे। सीआरपीएफ के एक इंस्पेक्टर ने शरद को घर से बाहर निकाल सड़क पर बिठाया और सिर को गोली से उड़ा दिया। छोटे भाई के साथ ऐसा होते देख रामकुमार भी कूद पड़े। इंस्पेक्टर की गोली रामकुमार के गले को भी पार कर गई। दोनों ने मौके पर ही दम तोड़ दिया। उनकी अंत्येष्टि में सरयू किनारे हुजूम उमड़ पड़ा था। बेटों की मौत से हीरालाल को ऐसा आघात लगा कि शव लेने के लिए अयोध्या आने की हिम्मत भी नहीं जुटा सके। दोनों का शव लेने हीरालाल के बड़े भाई दाऊलाल फैजाबाद आए थे और उन्होंने ही दोनों का अंतिम संस्कार किया था।