मुस्लिम लड़कियों के निकाह की उम्र को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा है कि इस्लामी कानून के अनुसार, लड़की अगर 18 साल से कम भी है तो भी उसे अधिकार है कि वो अपने अम्मी-अब्बू की मर्जी के बगौर निकाह कर ले।
जस्टिस जसमीत सिंह ने एक मुस्लिम दंपत्ति की याचिका पर सुनवाई के दौरान अपनी यह टिप्पणी दी। रिपोर्ट्स के अनुसार, इस दंपत्ति ने इसी साल मार्च में एक दूसरे से निकाह किया था और परिवार के डर से कोर्ट में याचिका दी थी कि उन्हें सुरक्षा प्रदान की जाए।
दरअसल लड़की के परिजन इस निकाह के खिलाफ थे। उन्होंने धारा 363 के तहत केस भी दर्ज करवाया था। इसमें आईपीसी की धारा 375 और पॉक्सो की धारा 6 भी बाद में जोड़ी गई थी। जबकि, लड़की ने अपने बयान में कहा कि उसके माता पिता उसे हमेशा मारते थे। वह अपनी मर्जी से शादी के लिए भागी है।
कोर्ट में पेश दस्तावेजों के अनुसार, लड़की की जन्मतिथि 2 अगस्त 2006 की है। यानी लड़की की उम्र शादी के समय 15 साल 5 महीने की थी। परिवार की शिकायत के बाद उसे अप्रैल में शौहर के पास से वापस लाया गया और उसका दीन दयाल अस्पताल में मेडिकल चेक अप हुआ।
मेडिकल रिपोर्ट में सामने आया कि निकाह के बाद लड़की और उसके शौहर के बीच शारीरिक संबंध बने और अब लड़की माँ बनने वाली है। दंपत्ति ने परिवार से बचने के लिए कोर्ट में याचिका दी और कोर्ट ने मामले में सुनवाई करते हुए कहा,
“इस्लामी कानून के अनुसार अगर लड़की सयानी हो गई है तो वो अपने अम्मी-अब्बू की मर्जी के बगैर निकाह करके अपने शौहर के साथ अलग रह सकती है। चाहे उस समय वो 18 साल से कम या नाबालिग ही क्यों न हो।”
कोर्ट ने यह भी पाया कि इस केस में वो पॉक्सो कानून नहीं लगा सकते, क्योंकि ये यौन हिंसा का मामला नहीं है। इसमें दंपत्ति ने प्रेम में पड़कर निकाह किया और फिर शारीरिक संबंध बनाए। कोर्ट ने यह भी पाया कि लड़की ने शौहर से कानूनी ढंग से निकाह किया है और एक दूसरे के साथ रहना चाहते हैं।
बेंच ने कहा,
“अगर याचिकाकर्ताओं को अलग करते हैं तो ये याचिकाकर्ताओं और उनके आने वाले बच्चे के लिए ट्रॉमा होगा। राज्य का मकसद याचिकाकर्ता को संरक्षण देना है। अगर याचिकाकर्ता ने मर्जी से निकाह किया है और खुश है। तो कोई उनके निजी जीवन में घुसकर उन्हें अलग नहीं कर सकता।”
इसके बाद कोर्ट ने लड़की को अपने शौहर के साथ आराम से रहने को कहा और दंपत्ति की सुरक्षा के निर्देश दिए।