इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने केंद्र सरकार के अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान में रह रहे गैर मुस्लमों को देश की नागरिकता देने के फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है।
गृह मंत्रालय ने नागरिकता अधिनियम 1955 और 2009 में कानून के तहत बनाए गए नियमों के तहत इस आदेश के तत्काल कार्यान्वयन के लिए अधिसूचना जारी की है। जबकि, यह नियम 2019 में सीएए (CAA) के तहत बनाए गए थे।
इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग की ओर से एडवोकेट हारिस बीरन और एडवोकेट पल्लवी प्रताप ने केंद्र सरकार के फैसले का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट को बताया कि केंद्र ने पहले कहा था कि नागरिकता संशोधन अधिनियम पर रोक लगाने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि नागरिकता संशोधन अधिनियम के नियम नहीं बनाए गए हैं।
आईयूएमएल ने केंद्र सरकार पर धार्मिक आधार पर भेदभाव करने का आरोप लगाते हुए विदेशी आदेश, 1948 के आदेश 3A और पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) नियम, 1950 के नियम 4(ha) के बीच संविधान के अनुच्छेद 14, 15,21 और संविधान के बेसिक स्ट्रक्चर का उल्लंघन करने को लेकर केंद्र के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
आईयूएमल का कहना है कि उसकी याचिका लंबित होने के बावजूद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने यह अधिसूचना जारी कर दिया, जो गैरकानूनी है।
पाँच राज्यों के 13 जिलों में रह रहे गैर मुस्लिम कर सकेंगे आवेदन
गृह मंत्रालय द्वारा शुक्रवार (28 मई 2021) को जारी इस अधिसूचना में गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, पंजाब और हरियाणा के 13 जिलों में रह रहे अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता का आवेदन करने का अधिकार दिया गया है। इससे पहले वर्ष 2016 में देश के 16 जिलाधिकारियों को नागरिकता अधिनियम,1955 के तहत नागरिकता के लिए आवेदन स्वीकार करने के लिए कहा गया था।
2019 में केंद्र सरकार लाई थी यह कानून
पड़ोसी देशों में शोषित अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता देने के लिए केंद्र सरकार यह कानून 2019 में लाई थी। इसे 10 जनवरी, 2020 से केंद्र सरकार ने देश में प्रभावी करने का ऐलान किया था।