पूरे देश में भला कौन ऐसा भलमानुष नहीं होगा, जिसका हृदय पालघर में दो साधुओं की भीड़ द्वारा हत्या के बाद व्यथित न हुआ हो। इसे ईसाई मिशनरी का दुष्प्रचार कहिए, महाराष्ट्र पुलिस का निकम्मेपन या फिर हिन्दुओं के खिलाफ चल रहे व्यापक षड्यंत्र का नतीजा, इसकी कीमत उन साधुओं और उनके साथ जा रहे एक ड्राइवर को चुकानी पड़ी। शुक्रवार (अप्रैल 16, 2021) को इस दुःखद हत्याकांड के 1 साल पूरे हो गए।
घटना कुछ यूँ है कि कल्पवृक्ष गिरी महाराज (70) और सुशील गिरी महाराज (35) अपने ड्राइवर नीलेश तलगाडे (30) के साथ पालघर के गढ़चिंचले गाँव से गुजर रहे थे, तभी लगभग 500 की भीड़ ने उन्हें घेर लिया। ये इलाका दहानु तहसील में पड़ता है। नासिक के रहने वाले ये दोनों साधु श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा से सम्बन्ध रखते थे, जिसका मुख्यालय वाराणसी में है। ये साधुओं के सबसे बड़े अखाड़ों में से एक है।
अब थोड़ा इस घटना का बैकग्राउंड समझ लेते हैं। इसके कुछ दिनों पहले ही गाँव में अफवाह फैली थी कि आसपास कुछ मानव तस्कर घूम रहे हैं, जो किडनियों की चोरी और खरीद-बेच का कारोबार करते हैं, खासकर वो बच्चों की किडनियों को ब्लैक मार्किट में बेच देते हैं। इसके बाद ग्रामीण रात को भी चौकन्ने रहने लगे। साधुओं और उनके ड्राइवर को अपहरणकर्ता समझ कर हमला किया गया। ये घटना कासा पुलिस थाने के अंतर्गत हुई।
सबसे बड़ी बात तो ये कि वहाँ मौजूद पुलिसकर्मियों के सामने ये सामूहिक हत्याकांड हुआ लेकिन उन्होंने भीड़ से इन निर्दोष साधुओं को बचाने का प्रयास तक नहीं किया, उलटा उन्हें भीड़ को सौंप दिया। यहाँ सवाल उठता है कि क्या एक अफवाह की आड़ में जानबूझ कर हिन्दू साधुओं को निशाना बनाया गया? वहाँ ईसाई मिशनरियों की गतिविधियों और नक्सली हरकतों को देख कर लगता है कि भगवाधारियों के प्रति घृणा पहले से पल रही थी।
एक पूर्व जज के नेतृत्व में घटना की पड़ताल करने गई स्वतंत्र फैक्ट-फाइंडिंग कमिटी ने भी यही पाया। तब महाराष्ट्र ‘महा विकास अघाड़ी (MVA)’ सरकार को सत्ता में आए 4 महीने से कुछ ही ज्यादा दिन हुए थे। उद्धव ठाकरे की पार्टी शिवसेना ने वैचारिक रूप से हमेशा अपने विपरीत रहे कॉन्ग्रेस-NCP को न सिर्फ अपना साथी बनाया, बल्कि अब भी उनकी मदद से सरकार चला रहे थे। चुनाव बाद शिवसेना ने भाजपा को धोखा दिया था।
हिंदूवादी होने का दम भरने वाली एक पार्टी के सत्ता में रहते ये सब हुआ तो उससे सवाल भी पूछे गए। ये घटना ऐसे समय में हुई, जब देश भर में लॉकडाउन लगा हुआ था और महाराष्ट्र में तो कोरोना की स्थिति शुरू से ही बदतर रही है। जहाँ 5 लोगों से ज्यादा के जुटने पर पाबंदी थी, घर से बिना काम निकलने पर प्रतिबंध था, वहाँ 500 की हत्यारी भीड़ कैसे खुलेआम निकल गई? हमेशा की तरफ उद्धव सरकार डैमेज कंट्रोल में लगी रही।
गाँव की जनसंख्या के आँकड़ों को भी समझिए। 2011 की जनगणना के हिसाब से इस गाँव में 1300 लोग रहते हैं, जिनमें से 93% SC/ST समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। ये गाँव महाराष्ट्र और केंद्र शासित प्रदेश दादर एवं नगर हवेली की सीमा पर स्थित है। और वो साधु बिना काम के नहीं घूम रहे थे। उनके गुरु महंत श्रीराम गिरी का निधन हो गया था। ये दो लोग अपने ड्राइवर के साथ उनके अंतिम संस्कार में शामिल होने जा रहे थे।
इस मामले की जाँच CID को दी गई थी। कुल 251 आरोपितों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें 13 नाबालिग भी थे। अभी इनमें से मात्र 70 ही हिरासत में हैं और बाकी किसी तरह जमानत लेने में कामयाब रहे हैं। चार्जशीट दायर हो चुकी है और सुनवाई चल रही है। आरोपितों के खिलाफ वरिष्ठ वकील सतीश मानशिंदे पब्लिक प्रोसिक्यूटर हैं, जबकि आरोपितों ने अमृत अधिकार और अतुल पाटिल को अपना वकील बनाया है।
आनन-फानन में उस समय इलाके के कई पुलिस अधिकारियों का ट्रांसफर हुआ था और कइयों को हटाया गया था, लेकिन न्याय की उम्मीद अभी भी धूमिल ही नजर आ रही है। राज्य के तत्कालीन गृह मंत्री अनिल देशमुख 100 करोड़ की वसूली के मामले में CBI की पूछताछ का सामना कर रहे हैं। वो पद से इस्तीफा दे चुके हैं। पालघर का उबाल अभी ठंडा नहीं हुआ है। दलितों और नाबालिगों को हथियार बनाने वाले लोग कौन थे, उनका नाम अब तक सामने नहीं आया है।
लेकिन, लोगों को नहीं भूलना चाहिए कि अनिल देशमुख ने किस तरह से तब आरोपितों के नामों की सूची सोशल मीडिया पर शेयर करके दावा किया था कि इस घटना के नाम पर सांप्रदायिक तनाव पैदा करने की कोशिश की जा रही है, लेकिन आरोपितों में एक भी मुस्लिम नहीं हैं। इस घटना के पीछे अफवाह होने की बात तो कही गई, लेकिन इसका निशाना हमेशा भगवाधारी ही क्यों बने? इलाके में ऐसी और भी घटनाएँ हुईं।
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— Shehzad Jai Hind (@Shehzad_Ind) April 16, 2021
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नांदेड़ में मई 2020 में शिवाचार्य नामक साधु को मार डाला गया। मई 2020 के अंत में मंदिर लूटे जाने और पुजारियों पर हमले की घटना हुई। वसाई तालुका के बलिवाली में कुछ हथियारबंद लोग घुस गए और जागृत महादेव मंदिर को लूट लिया। मंदिर के महंत शंकरानंद सरस्वती और उनके अनुयायी पर हमले हुए। क्या किसी क्षेत्र में इस तरह की घटनाओं के बार-बार दोहराए जाने के पीछे हिन्दू धर्म के प्रति घृणा नहीं माना जा सकता?
पालघर में ईसाई मिशनरियों द्वारा हिन्दू धर्म व देवी-देवताओं का अपमान किए जाने का पुराना इतिहास रहा है। इसी तरह की एक घटना के दौरान कुछ हिन्दुओं ने मिशनरियों को घेर कर उनसे आपत्ति भी जताई थी। हनुमान जी को ‘बंदर’ और भगवान गणेश को ‘हाथी’ कहा गया था। ईसाई धर्मांतरण के लिए प्रलोभन देने हेतु मिशनरियों ने एक कार्यक्रम में ऐसा किया था। इससे कुछ दिन पहले मुंबई के विरार में छात्रों को जबरन ईसाई बनाए जाने की बात सामने आई थी।
घृणा का बीज पहले से अंकुरित हो रहा था। लेकिन, इस मामले में लिबरल गिरोह और मीडिया ने सरकार से सवाल पूछना तो दूर की बात, न्याय के लिए एक माँग तक न उठाई और न ही इस हत्याकांड की निंदा की। तबरेज अंसारी की मौत पर जिस तरह साल भर नैरेटिव चलाया गया था, वैसा कुछ नहीं हुआ। मरने वाले मुस्लिम हो तो उसके गुनाह छिपा लिए जाते हैं और कारण कुछ और हो फिर भी बदनाम हिन्दुओं को ही किया जाता है।
वकील, रिटायर्ड जज, पत्रकार, एक्टिविस्ट और रिटायर्ड पुलिस अधिकारियों की स्वतंत्र फैक्ट-फाइंडिंग कमिटी ने कहा था कि वहाँ उपस्थित पुलिसकर्मी अगर चाहते तो इस हत्याकांड को रोक सकते थे लेकिन उन्होंने हिंसा की साजिश में शामिल होने का रास्ता चुना। उनकी रिपोर्ट के अनुसार, झारखण्ड में पत्थलगड़ी की तर्ज पर ही पालघर में भी आंदोलन चल रहा है। आदिवासियों को वामपंथी भड़का रहे हैं कि वो क़ानून, सरकार और संविधान का सम्मान न करें।