उत्तराखंड में रविवार (फरवरी 7, 2021) की सुबह पानी के हाहाकार के बाद घंटों तक एक अंधेरी टनल में लोहे की रॉड पर लटके 12 लोगों के लिए 2 मिनट का मोबाइल कनेक्शन जीवनदान साबित हुआ।
तपोवन-विष्णुगढ़ एनटीपीसी हाइडल पावर प्रोजेक्ट में जिन 12 लोगों को निर्माणाधीन टनल से बचाया गया उन्होंने जीवन का नया सवेरा देख कहा कि उन सबने जीने की उम्मीद छोड़ दी थी, लेकिन 2 मिनट के मोबाइल कनेक्शन ने उनकी जिंदगी बचाई।
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार रविवार दोपहर टनल से बचाए गए 26 साल के बसंत बहादुर ने कहा, “टनल में आमतौर पर मोबाइल नेटवर्क नहीं होते। हमें केवल 2 मिनट के लिए यह नेटवर्क मिला जो हमारे अधिकारी को कॉल करने के लिए काफी था।”
टनल से रेस्क्यू हुए लोगों में एक जियोलॉजिस्ट भी शामिल थे। इनकी पहचान के श्रीनिवास के तौर पर हुई है। श्रीनिवास कहते हैं, “दो दिनों की बारिश और बर्फबारी के बाद रविवार को मौसम साफ था, और ऐसा नहीं था कि बहुत बारिश हुई थी। हमने कभी इसका अनुमान नहीं लगाया। हमने लोगों को पुकारते सुना, हमें बाहर निकलने के लिए कहा गया। हमने बाहर भागने की कोशिश की लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। पानी और मलबा अंदर आ गया था और हम सभी 12 लोग फँस गए थे। हमने लोहे की सलाखों को पकड़ कर खुद को बचाने की कोशिश की।”
टनल में फँसे इन लोगों की मानें तो सुरंग 3 मीटर चौड़ी और 6 मीटर ऊँची थी। जहाँ पानी भरने लगा था और कुछ ही देर में उनके नीचे कम से कम 2 मीटर ऊँचा बर्फ का ठंडा पानी था। उन सबके पास लटके रहने के सिवा कुछ और चारा नहीं था। कुछ समय बाद उन्होंने महसूस किया कि जल स्तर स्थिर हो गया और सुरंग के मुहाने की ओर बढ़ने लगा। ठंडे पानी ने उनके जूतों को पानी से भर दिया था और इतने लंबे समय तक लोहे की सलाखों पर लटके रहने के बाद सबके हाथ सख्त हो गए थे।
बसंत बताते हैं कि वह तपोवन में तीन साल से काम कर रहे हैं। उस दिन भी उन्होंने 8 बजे से काम शुरू किया और साढ़े 10 बजे उन्हें एक भयानक आवाज सुनाई दी। उन्हें भागने का मौका भी नहीं मिला। पानी और मलबा तेजी से आया। बस एक उम्मीद थी वो था मोबाइल नेटवर्क। जैसे ही उन्होंने अपने सुपरवाइजर को फोन किया। करीब 2-3 घंटे में उन्हें बचा लिया गया। राहतकर्मी खुदाई वाली मशीन के साथ आए और रस्सियों के उपयोग से सबको बाहर निकाल लिया गया।
डॉ ज्योति खंबारा के अनुसार, “12 में से किसी को भी ज्यादा चोटें नहीं आई हैं। लेकिन हाँ, शरीर पर कुछ खरोंच के निशान थे और सबके शरीर बहुत ठंडे थे। उन्हें कोई ज्यादा चोट नहीं आई। मगर वे एक बहुत भारी मानसिक तनाव से गुजरे हैं। हम जो कर सकते हैं, वो कर रहे हैं।”