Friday, November 15, 2024
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मास्टर अब्दुल रहमान… इसलिए जयपुर में कोरोना संक्रमण पर बेअसर है ‘भीलवाड़ा मॉडल’

निश्चित रूप से भीलवाड़ा मॉडल कोरोना संक्रमण पर काबू पाने का एक बेहतरीन मॉडल साबित हो सकता है। लेकिन इसके लिए उसी तरह की सख्ती, नागरिकों में कानूनों का पालन करने की प्रवृति और प्रशासन में कानून का पालन करवाने की इच्छा शक्ति की जरूरत होती है।

कोरोना वायरस से मुकाबले के लिए इन दिनों देश में राजस्थान के ‘भीलवाड़ा मॉडल’ की चर्चा हो रही है। यह निश्चित रूप से भीलवाड़ा प्रशासन की बड़ी कामयाबी है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी कोरोना वायरस पर लगाम लगाने के लिए प्रभावित जिलों में तत्काल प्रभाव से भीलवाड़ा मॉडल को लागू करने के लिए निर्देश दे रहे हैं। इसके बावजूद जयपुर कोरोना वायरस का हॉटस्पॉट बना हुआ है। तमाम प्रयासों के बावजूद संक्रमण की दर को रोकने में चिकित्सा विभाग और जिला प्रशासन विफल हो रहा है।

आखिर क्यों जयपुर में कोरोना वायरस का एपिसेंटर बने रामगंज में भीलवाड़ा मॉडल विफल हो रहा है? इसे समझने के लिए आपको एक घटना को बारीकी से देखना होगा। बाड़मेर के पहले कोरोना पॉजीटिव अब्दुल रहमान के मामले पर गौर करना होगा।

जयपुर के रामगंज का रहने वाले अब्दुल रहमान बाड़मेर जिले के धोरीमन्ना तहसील के भलीसर विद्यालय में बतौर प्रधानाचार्य तैनात है। लॉकडाउन के दौरान ही वह एक दिन अपने ‘प्रबंधन’ से निजी वाहन से जयपुर चला गया। उसकी कार्यशैली से वाकिफ कुछ ग्रामीणों ने प्रशासन को उसकी इस हरकत से अवगत करवाया। साथ ही उसके लौटने की संभावना भी जताई।

छह अप्रैल तक बाड़मेर राजस्थान के उन जिलों में शामिल था, जो कोरोना से पूरी तरह मुक्त था। लेकिन अब्दुल रहमान रामगंज के महाकर्फ्यू को तोड़ते हुए छह अप्रैल को बाड़मेर पहुॅंच गया। बड़ा सवाल यह है कि कैसे कर्फ्यूग्रस्त रामगंज से वह छह जिलों की सीमाओं को पार करता हुआ तीन अन्य लोगों के साथ अपने निजी वाहन से बाड़मेर लौट आया?

एक नर्सिंगकर्मी के संदेश के आधार पर उसकी जॉंच हुई और वह जिले का पहला कोरोना पॉजीटिव निकला। अभी और कितने निकलेंगे, कहा नहीं जा सकता। मगर सबकी सुरक्षा के लिए उसकी ट्रेवल हिस्ट्री जानना बहुत जरूरी हो गया है। फिलहाल उसके खिलाफ बाड़मेर जिला प्रशासन ने प्राथमिकी दर्ज कर ली है।

अब भीलवाड़ा मॉडल की चर्चा करते हैं। अठारह मार्च को शून्य कोरोना संक्रमण वाला भीलवाड़ा 30 मार्च तक कोरोना वायरस का एपिसेंटर बन गया था। एक चिकित्सक के जरिए लोगों में फैला कोरोना वायरस कई लोगों को संक्रमित कर चुका था। पूरे जिले में भय का माहौल बन गया। जिला प्रशासन ने तत्काल पूरे जिले की सीमाएँ सील कर दी। घर-घर स्क्रीनिंग करते हुए महाकर्फ्यू लगा दिया। लाखों लोगों की स्क्रीनिंग की गई। लोगों को पूरी तरह घरों में बंद कर दिया गया। सबसे अच्छी बात यह कि जिले के लोगों ने कोरोना वायरस के खतरे को पूरी तरह भॉंपते हुए प्रशासन का भरपूर सहयोग दिया। लोगों के सहयोग से कोरोना वायरस को फैलने से रोक लिया गया। चिकित्सकों की कुशलता से जिले में 27 कोरोना पॉजीटिव में आधे से ज्यादा ठीक होकर घर को लौट चुके हैं।

अब रामगंज पर लौटते हैं। जयपुर में प्रदेश का पहला कोरोना मरीज दो मार्च को सामने आया था। वह विदेशी पर्यटक था और स्थानीय लोग उससे संक्रमित नहीं हुए थे। लेकिन रामगंज इलाके की रहमानिया मस्जिद के पास ओमान से आए एक व्यक्ति को जब 26 मार्च को कोरोना पॉजिटिव पाया गया तो हालात बिगड़ने लगे। हालात बिगड़ने के पीछे की बात की पड़ताल जरूरी है।

ओमान से आए उस व्यक्ति की स्वास्थ्य विभाग ने जॉंच की। लक्षण नहीं पाए जाने पर उसे क्वारंटाइन में रहने को कहा। वह नहीं माना। बाहर निकलता रहा। सामूहिक नमाज में जाता रहा। रिश्तेदारों से मिलता रहा।

फिर आए तब्लीगी जमातियों ने सरकार के तमाम प्रयासों पर पानी फेर दिया। उन्होंने अनेक लोगों को संक्रमित किया। फिर इस इलाके के लोगों की सामूहिक मानसिकता ने इसे और भी बढ़ा दिया। इस सामूहिक मानसिकता को समझना बहुत मुश्किल है। जब इन इलाकों में लॉकडाउन बेअसर हो गया तो प्रशासन को जबरन यहा पहले कर्फ्यू और फिर महाकर्फ्यू लगाना पड़ा। हालात इतने मुश्किल हो गए कि 27 मार्च को परकोटे के सात थाना क्षेत्रों में कर्फ्यू लगा दिया गया। परकोटे में किसी भी तरह की एंट्री बंद कर दी गई।

इस इलाके में ढाई लाख से ज्यादा लोग रहते हैं। इनमें नब्बे फीसदी से ज्यादा मुस्लिम समुदाय के हैं। दस अप्रैल सुबह नौ बजे जयपुर में कोरोना पॉजीटिव के कुल 168 मरीज सामने आए थे। स्वास्थ्य विभाग के अनुसार इनमें नब्बे फीसदी मरीज रामगंज और आसपास के इलाकों के हैं। हर दिन रामगंज से फैलता हुआ यह वायरस आसपास के कई इलाकों को अपनी चपेट में ले रहा है।

फिर से पहले सवाल की ओर आते हैं। तमाम प्रयासों के बावजूद रामगंज और परकोटे में भीलवाड़ा मॉडल काम क्यों नहीं कर पा रहा है? इसका जबाव थोड़ा कड़वा है। लोग उसमें सांप्रदायिकता भी ढूँढ सकते हैं। मगर कोरोना जैसे खतरनाक वायरस से मुकाबले के लिए किसी को भी अंधेरे में नहीं रहना चाहिए। भीलवाड़ा जिले में लोगों ने (जिले में बहुसंख्यक हिंदू समुदाय, लगभग 93%) ने स्वतः स्फूर्त कोरोना से लड़ने के लिए मुश्किलों के बावजूद प्रशासन का सहयोग किया। नियम-कायदों का पालन किया। नतीजतन, यह जिला देश भर में एक मॉडल के तौर पर उभरा।

इधर रामगंज में लोग प्रशासन की सख्ती से पहले तक घर में रहने और नमाज नहीं पढ़ने के संबंध में निर्देशों के लिए शायद फतवे का इंतजार करते रहे। प्रशासन के निर्देशों को हवा-हवाई समझते रहे और आपस में मिलते-जुलते रहे। संक्रमण फैलाते रहे।

कोरोना के मामलों की रिपोर्ट में से तबलीगी जमात का कॉलम हटा लेने से सच नहीं छिप सकता। इतनी कड़ाई के बावजूद कोरोना वायरस का वाहक बनकर अब्दुल रहमान बाड़मेर तक पहुॅंच जाता है। सोचने की बात है कि यहाँ भीलवाड़ा मॉडल कैसे लागू किया जा सकता है?

निश्चित रूप से भीलवाड़ा मॉडल कोरोना संक्रमण पर काबू पाने का एक बेहतरीन मॉडल साबित हो सकता है। लेकिन इसके लिए उसी तरह की सख्ती, नागरिकों में कानूनों का पालन करने की प्रवृति और प्रशासन में कानून का पालन करवाने की इच्छा शक्ति की जरूरत होती है। अब उम्मीद करनी चाहिए कि जयपुर प्रशासन द्वारा इच्छा शक्ति दिखाते हुए भीलवाड़ा मॉडल की तर्ज पर जल्द ही जयपुर में भी कोरोना को काबू कर लिया जाएगा।

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