Sunday, November 17, 2024
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राजस्थान: पुजारी ने मरने से पहले बताया जलाने वाले का नाम, फिर भी आत्मदाह बताती रही पुलिस; जमीनी विवाद को जातीय रंग देने की कोशिश

दैनिक भास्कर' की खबर के अनुसार, प्रशासन इस मामले को शुरुआत में 'आत्मदाह' बताती रही। पुजारी ने मौत से पहले ही आरोपित कैलाश का नाम ले लिया था, बावजूद इसके उसे गिरफ्तार करने में पुलिस ने 24 घंटे का समय लगा दिया। लोगों की माँग है कि इस मामले के जाँच अधिकारी को भी हटाया जाए।

राजस्थान के करौली जिला स्थित सपोटरा तहसील के बूकना गाँव में पुजारी बाबूलाल वैष्णव की मौत के मामले ने प्रदेश में हलचल मचा दी है। मामला वैसे तो सिर्फ एक जमीन से जुड़े विवाद का है, लेकिन यह मामला जिस जातीय विवाद की ओर जाता दिख रहा है, उसे रोका नहीं गया तो बात बिगड़ सकती है। जातीय विद्वेष की आग कई जगह फैलाने की कोशिशें चल रही है। ऐसे में यह मामला बाहरी तत्वों के हाथ में ना जाए- इसकी जिम्मेदारी स्थानीय प्रशासन और पुलिस की ही नहीं, वहाँ के स्थानीय जनप्रतिनिधियों की भी है।

हालाँकि पूरे मामले में पुलिस-प्रशासन की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। ‘दैनिक भास्कर’ की खबर के अनुसार, प्रशासन इस मामले को शुरुआत में ‘आत्मदाह’ बताती रही। पुजारी ने मौत से पहले ही आरोपित कैलाश का नाम ले लिया था, बावजूद इसके उसे गिरफ्तार करने में पुलिस ने 24 घंटे का समय लगा दिया। लोगों की माँग है कि इस मामले के जाँच अधिकारी को भी हटाया जाए। शाम 6 बजे पुजारी का शव गाँव पहुँचा, जिसके बाद पीड़ित परिजनों ने दाह संस्कार से इनकार कर दिया।

करौली की सपोटरा तहसील का बूकना गाँव करीब 5000 की आबादी वाला है। यहाँ एक राधाकृष्ण का मंदिर है, जो करीब 200 साल पुराना बताया जाता है। गाँव में 70 प्रतिशत लोग मीणा हैं। गाँव की पंचायत में भी इस इस समुदाय के कई लोग शामिल हैं। बूकना गाँव के इस मंदिर की सेवा पूजा काफी वर्षों से बाबूलाल वैष्णव ही करते आ रहे थे। यह मंदिर इस गाँव का ही नहीं, बल्कि आसपास के कई गाँवों की आस्था का केन्द्र है।

बूकना के पुजारी की गुजर-बसर के लिए गाँव के ही लोगों ने कुछ जमीन मंदिर के नाम कर रखी थी। इसी जमीन से सटती हुई कुछ जमीन और है, जो कुछ समय पहले तक एक पहाड़ी जैसी थी। मंदिर के पुजारी को वह जमीन उपयोगी लगी तो उन्होंने उसे समतल करवा लिया और गाँव की पंचायत बुला कर यह जमीन भी मंदिर के नाम कराने की सहमति ले ली। गाँव की पंचायत ने एकमत हो कर यह जमीन मंदिर के नाम करवा देने की सहमति दे दी।

पंचायत में कैलाश मीणा के परिवार ने इस फैसले का विरोध किया, लेकिन पंचों ने पुजारी के पक्ष में फैसला दिया। सात अक्टूबर को कैलाश मीणा और उसके परिवार के कुछ लोग जब इस समतल की हुई जमीन पर कब्जा करने पहुँचे तो पुजारी ने इसका विरोध किया और कहा कि पंचायत जमीन मंदिर को दे चुकी है तो अब तुम कब्जा क्यों कर रहे हो। इस बात को लेकर दोनो के बीच विवाद हुआ और गर्मागर्मी में ही कैलाश मीणा और इसके साथियों ने बाबूलाल वैष्णव पर पेट्रोल छिड़क कर आग लगा दी।

पुजारी के परिवार वालों और गाँव वालो ने उन्हें अस्पताल पहुँचाया, जहाँ से उन्हें जयपुर रेफर कर दिया गया और शुक्रवार यानी नौ अक्टूबर को उपचार के दौरान पुजारी की मौत हो गई। इस घटना के एक तथ्य में असमंजस है कि पुजारी ने स्वयं आत्मदाह किया अथवा कैलाश और उसके समर्थकों ने जलाया या कैलाश मीणा जो छप्पर बना रहे थे, बाबूलाल वैष्णव उसको आग लगाने गए और उसमें झुलस गए ।

गाँव से जुड़े लोग बताते हैं कि यह घटना सिर्फ एक जमीनी विवाद है और बिल्कुल अचानक हुई है। आरोपित कैलाश का परिवार भी गाँव का दबंग या रसूखदार परिवार नहीं है, बल्कि एक सामान्य परिवार है। परिवार या आरोपित का कोई अपराधिक रिकॉर्ड भी नहीं बताया जाता है। आरोपित कैलाश मीणा पुलिस की गिरफ्त में आ भी गया है और जिले के पुलिस अधीक्षक मृदुल कच्छावा का कहना है कि पहले मामला धारा 307 में दर्ज किया गया था, लेकिन पीड़ित की मृत्यु के बाद धारा 302 के तहत मामला दर्ज किया गया है। बाकी आरोपितों को पकड़ने के लिए पुलिस की छह टीमें लगाई गई हैं और वे भी जल्द ही पकड़ में आ जाएँगे।

कानून-व्यवस्था की दृष्टि से तो यह मामला निश्चित रूप से सरकार की विफलता को दिखाता है और कहीं ना कहीं यह सामने आता है कि लोगों में कानून का डर खत्म होता जा रहा है। प्रदेश की प्रतिपक्षी पार्टी भाजपा इसी को मुद्दा भी बना रही है। पिछले कई दिनों से प्रदेश में जिस तरह से अपराधिक मामले सामने आ रहे हैं, उसी कड़ी में इस मामले ने भाजपा को सरकार के खिलाफ एक और बड़ा मुददा दे दिया है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनियाँ, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, नेता प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया और उपनेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ ही नहीं, केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर और BJP के राष्ट्रीय प्रवक्ता राज्यवर्धन सिंह राठौड़ तक ने इस मामले पर सरकार को घेरा है।

पार्टी की ओर से एक जाँच दल भी गठित कर घटनास्थल पर भेजा गया है। वहीं खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी इस मामले में हस्तक्षेप किया है और कहा है कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। राजनीतिक आरेाप-प्रत्यारोप अपनी जगह हो सकते हैं, लेकिन सामाजिक दृष्टि से देखा जाए तो यह बहुत नाजुक मामला है। गाँव के लोग आरोपित के जाति से भले ही हैं, लेकिन पूरा गाँव और गाँव की पंचायत पुजारी के साथ दिख रही है। बूकना के सरपंच और अन्य पंच पुजारी के परिवार को मुआवजा देने और आरोपितों पर कड़ी कार्रवाई की माँग कर रहे है।

स्थानीय विधायक रमेश मीणा ने भी इस घटना की निंदा की है और पीड़ित परिवार को सहायता देने की बात कही है। ऐसे में पुलिस और प्रशासन ही नहीं, बल्कि स्थानीय जनप्रतिनिधियो और स्वयं ग्रामीणों का इस बात का ध्यान रखना बहुत जरूरी है कि यह मामला ग्राम स्तर पर ही निपट जाए। मामले की निष्पक्ष जाँच हो और पीड़ित परिवार की सुरक्षा व मुआवजे की पूरी व्यवस्था कर दी जाए।

इस मामले में बाहरी तत्वों का हस्तक्षेप हो गया तो यह मामला गलत दिशा में चला जाएगा। प्रदेश जातीय विद्वेष की आग को हाल में डूंगरपुर में देख चुका है। ऐसे तत्व पूरे देश में इन मामलों अलग-अलग तरह से हवा दे रहे हैं। ऐसे में प्रशासन और स्थानीय समाज की सतर्कता बहुत जरूरी है। विशेषकर युवाओं के बीच ऐसे तत्व सक्रिय ना हों, इसका ध्यान रखना बेहद जरूरी है।

इसमें कोई शक नहीं है कि पुजारी बाबूलाल वैष्णव की बहुत दुःखद मौत हुई है, इसलिए उनके परिवार की जो सहायता चाहिए, वह जरूर मिले, लेकिन यह मामला इससे आगे नहीं बढ़े, अन्यथा स्थितियाँ भविष्य के लिए गम्भीर हो सकती हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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