दिल्ली में हुए हिंदू विरोधी दंगों के मद्देनजर अब रामायण और महाभारत का जिक्र भी कोर्ट में होने लगा है। गुरुवार (दिसंबर 18, 2020) को कोर्ट में पुलिस की ओर से कहा गया कि महाभारत के षड्यंत्र की तरह ये दिल्ली दंगे भी एक षड्यंत्र का नतीजा थे। वहीं आरोपित पक्ष ने अपनी रिहाई के लिए दलील दी और कहा कि यह मामला रामायण नहीं होने जा रहा है, जहाँ बाहर निकलने के लिए 14 साल का इंतजार करना पड़े।
जानकारी के मुताबिक, दिल्ली पुलिस ने कोर्ट में दिल्ली दंगों की आरोपित व पिंजड़ा तोड़ मुहिम की सदस्य नताशा नरवाल की जमानत याचिका पर बहस के दौरान उक्त दलीलें कोर्ट के समक्ष पेश की। दिल्ली पुलिस ने गुरुवार को कोर्ट में कहा कि ये कहानी बिलकुल वैसी ही है जैसे संस्कृत महाकाव्य ‘महाभारत’ षड्यंत्र की कहानी थी।
पुलिस ने कहा कि बिलकुल महाभारत की तरह उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगे भी कथित षड्यंत्र थे, जिसके ‘धृतराष्ट्र’ की पहचान किया जाना अभी बाकी है। इसके बाद आरोपित पक्ष की ओर से कहा गया कि यह पूरा मामला ‘रामायण’ नहीं होने जा रहा जहाँ उन्हें बाहर निकलने के लिए 14 साल का इंतजार करना पड़े। जो होगा यहीं और अभी होगा।
बता दें कि नताशा नरवाल को दंगों की पूर्वनियोजित साजिश में भाग लेने के आरोप में UAPA के तहत गिरफ्तार किया गया था। उनके वकील ने कोर्ट की सुनवाई में कहा कि नरवाल के विरुद्ध अभियोजन पक्ष ने एक ‘चक्रव्यूह’ की रचना की है और आरोपित महाभारत के अभिमन्यु की तरह इससे निकलने का प्रयास करेंगी।
नरवाल की ओर ये भी कहा गया कि उनके विरुद्ध दाखिल किया गया आरोप पत्र, महाभारत के बाद दूसरा सबसे बड़ा दस्तावेज है। जिसे सुन कर पुलिस की ओर पेश हुए विशेष लोक अभियोजन अमित प्रसाद ने दिल्ली प्रोटेस्ट सपोर्ट ग्रुप का उल्लेख किया और उसे एक ऐसे किरदार से जोड़ा जो धृतराष्ट्र को हर चीज सुनाता है। उन्होंने कहा, “इस षड्यंत्र का संजय डीपीएसजी है। संजय सब कुछ धृतराष्ट्र को सुना रहा था। यहाँ धृतराष्ट्र की पहचान अभी नहीं हो पाई है।”
आरोप पत्र को महाभारत के बाद सबसे बड़ा दस्तावेज कहने पर अभियोजक पक्ष की ओर से कहा गया,
“महाभारत 22,000 पृष्ठों का था और आरोप पत्र 17,000 पृष्ठों का है। मैं यह कहना चाहता हूँ कि महाभारत एक षड्यंत्र की कहानी थी और संयोगवश यह मामला भी एक षड्यंत्र का है। महाभारत में संजय था, जो (दूर बैठे ही) सब कुछ देख सकता था। इस षड्यंत्र का संजय DPSG है। संजय सब कुछ धृतराष्ट्र को सुना रहा था। यहांँ धृतराष्ट्र की पहचान अभी नहीं हो पाई है।”
उन्होंने अतिरिक्त सत्र के न्यायाधीश अमिताभ रावत को बताया कि इसी ग्रुप ने सभी प्रदर्शनस्थलों पर निगरानी की थी और सभी प्रदर्शन स्थलों की कमान सँभाली थी। पुलिस ने कहा कि इनका लक्ष्य विरोध प्रदर्शन करना नहीं था बल्कि चक्का जाम करना था जिसका अंत हिंसा के रूप में हुआ।