देश में बलात्कार के मामलों में कानूनी सीमाओं के दायरे को और बड़ा करते हुए केरल हाई कोर्ट ने बुधवार (4 अगस्त 2021) को ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने एक मामले में सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि अगर आरोपित को महिला के किसी भी अंग के साथ छेड़छाड़ करने से यौन संतुष्टि मिलती है तो ये भारतीय दंड संहिता के तहत बलात्कार माना जाएगा। फिर चाहे उसने लिंग को महिला योनि में प्रवेश कराया हो या नहीं।
हाई कोर्ट ने रेप की परिभाषा बताते कहा, “महिला के शरीर में अपनी यौन संतुष्टि के लिए किसी भी तरह का हेरफेर लिंग को उसके योनि में प्रवेश कराने के समान होता है।” जस्टिस विनोद चंद्रन और जस्टिस ज़ियाद रहमान ए ए की खंडपीठ ने नाबालिग से बलात्कार के आरोपित व्यक्ति द्वारा दायर आपराधिक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया है। दरअसल, बच्ची से बलात्कार के आरोपित ने कोर्ट में याचिका दायर कर अदालत से यह जाँचने की माँग की थी कि क्या बच्ची की दो जाँघों के बीच में लिंग रगड़ना बलात्कार हो सकता है?
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आईपीसी की धारा 375 में दी गई बलात्कार की परिभाषा में पीड़िता की जाँघों के बीच जननाँग को प्रवेश कराना यौन हमला है। हाई कोर्ट की खंडपीठ ने POCSO एक्ट के मामले में सुनवाई के बाद आदेश में कहा, “आईपीसी की धारा 375 में योनि, मूत्रमार्ग, गुदा और मुँह (मानव शरीर में ज्ञात छेद) में लिंग के प्रवेश के अलावा यौन संतुष्टि के लिए अगर आरोपित कल्पना करके पीड़िता के शरीर के अन्य अंगों को ऐसा आकार दे कि उसे लिंग के रगड़न से यौन सुख मिले और वीर्य स्खलन हो तो यह बलात्कार की श्रेणी में आएगा।”
अदालत ने आगे कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 (C) में किए गए उल्लेख के मुताबिक, ‘महिला के शरीर का कोई भी हिस्सा’ चाहे वह जाँघों के बीच की गई यौन क्रिया हो, बलात्कार की तरह है। अदालत ने कहा कि जब दो जाँघों को एक साथ जोड़कर उसके बीच में लिंग को प्रवेश कराया जाता है तो यह निश्चित रूप से आईपीसी की धारा 375 के तहत परिभाषित ‘बलात्कार’ के बराबर ही होगा।