नागरिकता संशोधन कानून का समर्थन करने के कारण गैर मुस्लिम छात्रों को फेल करने का मामला जामिया मिलिया इस्लामिया से आया है। अबरार अहमद नाम के असिस्टेंट प्रोफेसर ने ट्वीट कर ऐसे 15 गैर मुस्लिम छात्रों को फेल करने का दावा किया था। मामले के तूल पकड़ने के बाद सफाई देते हुए उसने इसे मजाक बताया था। हालॉंकि यूनिवर्सिटी प्रशासन ने जॉंच पूरी होने तक उसे सस्पेंड कर दिया है।
जाकिर नायक के फैन अबरार के कट्टरपंथी विचारों और कारनामों को लेकर ऑपइंडिया ने विस्तार से रिपोर्ट की थी। इसके बाद सोशल मीडिया में कई लोग जामिया की अपनी आपबीती लेकर सामने आ रहे हैं। आधिकारिक तौर पर इनकी ऑपइंडिया पुष्टि नहीं करता। लेकिन, इससे संकेत मिलता है कि जामिया में गैर मुस्लिम छात्रों के साथ भेदभाव का सिलसिला पुराना है।
Fate of Non-Muslims in any Muslim majority space: ‘Jamia professor fails 15 non-Muslims students for supporting the Citizenship Amendment Act’. Please speak up @ShekharGupta https://t.co/3THoVIWeKb via @OpIndia_com
— Sanjay Dixit at home ಸಂಜಯ್ ದೀಕ್ಷಿತ್ संजय दीक्षित (@Sanjay_Dixit) March 25, 2020
खुद को जामिया का पूर्व छात्रा बताने वाली शिवांगिनी पाठक ने बताया है उन्हें उनके नाम के कारण कभी पसंद नहीं किया गया। हमेशा उन प्रोफेसर्स ने उन्हें कम नंबर दिए जिनका झुकाव नक्सलियों की ओर था।
I did my MA from Jamia, I topped the 1st year with 67% but I was always rebuked by a hijabi director who did not like me for my name, I got lesser marks by another prof who leaned towards naxals. The nexus of jihadi naxals is very close.
— शिवांगिनी पाठक। (@shivanginipatha) March 25, 2020
दरअसल, संजय दीक्षित ने इस मामले पर ऑपइंडिया की खबर को शेयर करते हुए लिखा कि गैर मुस्लिमों की मुस्लिम बहुल आबादी में ये किस्मत होती है। शिवांगिनी ने इस पर रिप्लाई करते हुए आपबीती बताई है। उन्होंने लिखा, “मैंने जामिया से MA किया है। प्रथम वर्ष में 67% अंकों के साथ टॉप भी किया था। लेकिन हिजाब वाली एक डायरेक्टर मुझे हमेशा नीचा दिखाती थी, क्योंकि उन्हें मेरा नाम नहीं पसंद था। नक्सलियों के प्रति झुकाव रखने वाले एक अन्य प्रोफेसर ने मुझे हमेशा कम नंबर दिए। जिहादी नक्सलियों की सॉंठगॉंठ काफी मजबूत है।”
शिवांगिनी के इस अनुभव को कई लोगों ने रीट्वीट करते हुए कहा है कि अगर शिवांगी द्वारा कही गई आधी बातें भी सच हैं, तो ये एक गंभीर विषय है। हमें इस नफरत भरे रवैए पर चिंता करनी चाहिए। क्या ऐसे प्रोफेसर यूनिवर्सिटी में पढ़ाने के लायक हैं?
Even if half of this is true, even then this is a serious issue and we must be worried for such hatred and outright communal prejudice! Do such Professor s or Universities deserve to even continue.
— RSRAWAT (@PeerRsr) March 25, 2020