रेलमंत्री पिछले कुछ दिनों से राज्य सरकारों से अन्य ट्रेनों को स्वीकृति देने की अपील कर रहे हैं ताकि फँसे हुए श्रमिकों को उनके गंतव्य तक पहुँचाया जा सके। उन्होंने राजस्थान, झारखंड और बंगाल से खासतौर से अपील की है।
रेल मंत्रालय की तरफ से कहा गया है कि श्रमिक ट्रेन चलाने के लिए दो राज्यों के बीच सहमति आवश्यक है। उदाहरण के लिए श्रमिक ट्रेन को पश्चिम बंगाल से गुजरात और गुजरात से पश्चिम बंगाल जाने के लिए दोनों राज्यों की सहमति चाहिए होती है।
मगर बेहद अफसोस की बात है कि कुछ राज्य अपने प्रवासियों को ले जाने वाली श्रमिक ट्रेनों को स्वीकृति नहीं दे रही है, जिसकी वजह से कई प्रवासी मजदूर सड़कों पर पैदल चलने को मजबूर हैं तो कई मजदूर माल से लदे ट्रक जैसे असुरक्षित वाहनों से अपने गृह राज्य जाने के लिए मजबूर हैं। इस सबके बीच सोशल डिस्टेंसिंग की भी धज्जियाँ उड़ रही हैं, जिसका पालन करना फिलहाल बेहद आवश्यक है।
रेल मंत्रालय के अनुसार अभी तक उत्तर प्रदेश ही एकमात्र राज्य है, जिसने सबसे अधिक ट्रेनों को अपने राज्य में आने की अनुमति दी है। उत्तर प्रदेश ने अब तक 800 श्रमिक ट्रेनों को राज्य में आने की स्वीकृति प्रदान की है।
वहीं दूसरी तरफ, पश्चिम बंगाल, जहाँ प्रवासियों की संख्या काफी अधिक है, ने अब तक मात्र 19 श्रमिक ट्रेनों को मंजूरी दी है।
ओडिशा ने भी चक्रवात की वजह से तटीय क्षेत्रों की ट्रेनों को स्थगित कर दिया है।
कई अन्य भी ऐसे राज्य हैं, जहाँ भारी मात्रा में प्रवासी रह रहे हैं, मगर इसके बावजूद उन्होंने अभी तक काफी कम ट्रेनों को अनुमति दी है। जैसे छत्तीसगढ़ ने सिर्फ 19 ट्रेनें, राजस्थान ने मात्र 33 ट्रेनें और झारखंड ने केवल 72 ट्रेनों को मंजूरी दी है।
गौरतलब है कि श्रमिक ट्रेन विशेष आग्रह पर शुरू की गई स्पेशल ट्रेन है। इन्हें प्रवासी मजदूरों को उनके घरों/ राज्यों तक भेजने के लिए स्टार्ट किया गया है। इन ट्रेनों को केंद्र सरकार ने राज्य सरकार की माँग और मजदूरों के प्रदर्शन को देखकर चालू करवाने का फैसला किया है। इन ट्रेनों की यही खासियत है कोरोना के समय में चालू की गई ये ट्रेनें सार्वजनिक रूप से सबको सेवा देने के लिए नहीं है। ये राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वे अपने राज्य में पंजीकृत मजदूरों को चिह्नित करें, उनकी स्क्रीनिंग कर उन्हें ट्रेन से गृहराज्य भेजें।
श्रमिक ट्रेन की शुरुआत की घोषणा के साथ ही विवाद शुरू हो गया और इस विवाद को शुरू किया कॉन्ग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने। सोनिया गाँधी ने दावा किया कि केंद्र सरकार प्रवासियों को घर पहुँचाने के लिए पैसे ले रही है। कई मीडिया हाउस ने भी इस भी इस झूठी और गलत खबर को खूब भुनाया।
दरअसल, मजदूरों को घर भेजने के लिए खर्च होने वाले लागत का 85% केंद्र सरकार (रेलवे) द्वारा वहन किया जा रहा है और 15% राज्य सरकार द्वारा वहन किया जाता है। ये राज्य सरकार पर निर्भर करता है कि वो ये पैसे अपने सरकारी फंड से दे या फिर किसी NGO या किसी अन्य माध्यम से एकत्र कर करती है। केंद्र सरकार और रेलवे यात्रियों से सीधा शुल्क नहीं ले रही है और उस 15% का भुगतान राज्य सरकार पर छोड़ दिया गया है।
उल्लेखनीय है कि पश्चिम बंगाल, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे राज्य अपने स्वयं के प्रवासी श्रमिकों को स्वीकार करने से ज्यादा तवज्जो अपने राज्य के प्रवासियों को भेजने को दे रहे हैं।