JNU में पिछले दो महीने से छिड़े आंदोलन ने बीते दिनों हिंसक रूप ले लिया था जिसके बाद से वहाँ का माहौल बिलकुल बदल गया है। हालाँकि 5 जनवरी 2020 को हुई हिंसा पर वामपंथी और अज्ञात हिंसक छात्रों के खिलाफ FIR दर्ज की गई है और हिंसा सहित सर्वर रूम को डैमेज करने की जाँच जारी है। कल ही कुलपति ने अपने बयान इस जाँच और उस दिन हुई हिंसा से सम्बंधित JNU में आगे क्या हो रहा है साझा किया था।
JNU VC @mamidala90 took me to the server room which was vandalised by students who were protesting against Uni’s hostel fee hike. There’s no condoning Sunday’s violence, but forcibly stopping students from registering for the winter session is plain wrong. Let students study. pic.twitter.com/f7IJgeY4Bh
— Rahul Kanwal (@rahulkanwal) January 8, 2020
इस सबसे अलग अगर वहाँ के उन छात्रों की बात करें जो केवल पढ़ना चाहते हैं जिनकी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं है। जो रजिस्ट्रेशन करा कर पढ़ना चाहते हैं। कई बहुत ही गरीब पृष्ठभूमि से आते हैं। उन्हें भी लगातार वहाँ के वामपंथी छात्रों द्वारा उन्हें परेशान किया जा रहा है। उन्हें रजिस्ट्रेशन करने से रोकने के लिए हर संभव कोशिश की जा रही है। यहाँ तक कि लगातार आम छात्रों पर दबाव बनाया जा रहा है कि वे वामपंथी छात्रों की बात मान लें और रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया रोकने और व्यवस्था बिगाड़ने में सहयोग दें।
JNU में किस तरह से आम छात्रों को प्रताड़ित किया जा रहा है इसकी झलक वहाँ के एक छात्र विकास सिंह गौतम ने ट्विटर पर भी साझा किया, “मैंने यह सोचकर जेएनयू में प्रवेश लिया कि मैं यहाँ बहस और चर्चा के माहौल में रहूँगा। लेकिन मुझे यहाँ बिल्कुल अलग संस्कृति देखने को मिली है। यहाँ के लोग अपने विचार आपके ऊपर थोपने से बेहतर कुछ और नहीं जानते। मैं इसे अब हिंसा की संस्कृति ही कहूँगा।”
I took admission into JNU thinking that , I’ll get to be in an environment of debate and discussion. But I’ve got to see a totally different culture here. People here don’t know anything better than imposing their views on you. I’ll rather call it a culture of violence now.
— Vikas Singh Gautam (@vikasgautamjnu) January 9, 2020
गौतम ने बताया, “जेएनयू के सभी सामाजिक, छात्रावास और शैक्षणिक व्हाट्सअप ग्रुपों से मेरा बहिष्कार किया जा रहा है। फिलॉसॉफी के ग्रुप से भी मुझे बाहर कर दिया गया है। मेरे खिलाफ इस तरह का भेदभाव इसलिए किया जा रहा है क्योंकि मैंने इस शैक्षणिक सत्र के लिए पंजीकरण करने की कोशिश की थी। वामपंथियों द्वारा दलितों को दबाने का यह सिर्फ एक उदाहरण है।”
यह केवल एक स्टूडेंट की व्यथा नहीं है। वहाँ के कई आम छात्र जो पढ़ना चाहते हैं। जो रजिस्ट्रेशन कराना चाहते हैं ऐसे सभी छात्रों को उनके अधिकारों से रोकने के लिए वामपंथी छात्रों द्वारा उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है। उनके साथ गालीगलौज से लेकर उनके साथ छात्रावास और मेस में भेदभाव किया जा रहा है। जो भी छात्र वामपंथियों के एजेंडे में शामिल नहीं है या उनका साथ नहीं दे रहा है, उस पर मानसिक दबाव बनाया जा रहा है। ये सारी बातें ऑपइंडिया से बात करते हुए वहाँ के कई छात्रों ने बताई।
ऐसे ही एक छात्र अलोक झा जो वहाँ शोध कर रहे हैं ने ऑपइंडिया को वहाँ के तेजी से बदलते माहौल के बारे में विस्तार से बताया।
अलोक झा ने कहा, “मैं पहले लेफ्ट के संघर्षो को देखकर यह सोचता था कि कितने संघर्षशील हैं ये लोग। हमेशा छात्रहितों के लिए डटे रहते हैं। लेकिन अफ़सोस कभी भी इन लोगों के संघर्ष का कोई परिणाम आते नहीं देखा। मुद्दा चाहे कोई भी हो हंगामा, पब्लिसिटी और राजनीति मुख्य एजेंडा रहा। चाहे सीट कट का मुद्दा हो, AC रीडिंग रूम का मुद्दा हो या फीस वृद्धि का मुद्दा हो, हर बार इन लोगों ने मीडिया में आकर अपना पब्लिसिटी बटोरकर प्रोटेस्ट बंद कर दिया। या केवल व्यवस्था बिगाड़ने में व्यस्त रहे। हमेशा हमारे कुछ दोस्त कहते थे। ये आंदोलन के नाम पर ढोंग के सिवाय और कुछ नहीं करते है, कभी विश्वास नहीं किया। परन्तु आज मैंने इन वामपंथी लोगों के सारे ढोंग को देख लिया कि किस तरह ये आम छात्र को बेवकूफ बनाते हैं। और उनका अपनी राजनीतिक और वैचारिक महत्वाकांक्षा के लिए इस्तेमाल करते हैं।”
किस तरह से छात्रों पर दबाव बनाते हुए उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा उन सभी तरीकों पर ऑपइंडिया ने वहाँ के कई और आम छात्रों से बात की। कई लोगों ने वामपंथी छात्रों के आतंक और उनके द्वारा किए जा रहे भेदभाव की चर्चा तो की लेकिन अपने नाम का उल्लेख करने से मना कर दिया, “अभी यहीं कई साल और पढ़ना है ये लोग यहाँ शांति से रहने नहीं देंगे। हमें मेस में प्रताड़ित किया जा रहा है यहाँ तक की वामपंथी विचारधारा के कई प्रोफ़ेसर भी हम पर तंज कसते हैं। मजाक उड़ाते हैं। यहाँ तक कि हिंसा की घटना वाले दिन के बाद से चुन-चुन कर उन छात्रों को वामपंथी छात्र निशाना बना रहे हैं जिन पर इन्हें ABVP का सपोर्टर होने का शक है या जो इनके आंदोलन या विरोध प्रदर्शन में साथ न देकर यहाँ पढ़ना चाहते हैं।”
अलोक झा ने तो कहा कि मैं नहीं डरता किसी से जो सत्य है वह कह रहा हूँ। उनको और उनके जैसे कई अन्य छात्रों को भी वामपंथी छात्र परेशान कर रहे हैं। उन्होंने हमसे बात करते हुए बताया, “मैं साबरमती हॉस्टल में रहता हूँ। हॉस्टल के सभी निवासियों का एक व्हाट्सअप ग्रुप था। जिसके द्वारा हॉस्टल से जुड़ी सूचनाएँ छात्रों को मिलती थी। सभी रेजिडेंट इस ग्रुप में थे। 5 जनवरी के घटना के बाद देख रहा था कि ये वामपंथी विचारधारा के छात्र कितने नीचे गिरे हुए हैं और इसकी बुद्धि कितनी तुच्छ है कि अब आम छात्रों को ही आपस में उलझाना चाहते हैं। उनके बीच फूट डाल रहे हैं। चुन-चुन कर उन छात्रों को वामपंथी छात्र निशाना बना रहे हैं जो या तो पढ़ना चाहते हैं, जो किसी के भी साथ नहीं हैं, जो रजिस्ट्रेशन करा लिए हैं या कराना चाहते हैं। या वामपंथी छात्रों को शक है कि ये छात्र-छात्राएँ ABVP से सहानुभूति रखते हैं।”
जब ऑपइंडिया ने अलोक झा से जानना चाहा कि आपको क्यों हॉस्टल के ग्रुप से बाहर निकाला गया तो उन्होंने बताया, “मैं किसी पार्टी विशेष से ताल्लुक नहीं रखता हूँ। हाँ ABVP के प्रति सहानुभूति अवश्य है। क्योंकि मेरी दृष्टि में विद्यार्थी परिषद एक ऐसी पार्टी है जिनकी ईश्वर में निष्ठा है। मैं आस्तिक हूँ ईश्वर में दृढ़ विश्वास रखता हूँ। इस दृष्टि से विद्यार्थी परिषद की विचारधारा मेरे विचार से अवश्य मेल खाती है। अतः आप हमें उनसे सहानुभूति रखने वाला कह सकते हैं। परन्तु मैंने कभी ABVP के समर्थन कोई पोस्ट नहीं किया। कभी ABVP के पक्ष में मेस में वाद-विवाद नहीं किया। ABVP के रैलियों में नहीं गया। मेरी यात्रा हॉस्टल से लाइब्रेरी और हॉस्टल से सेंटर तक ही सीमित थी। जिस समय इनलोगों को, हॉस्टल में जो भय का माहौल है उसे शांत करना चाहिए था। उस समय ये लोग इस प्रकार की नौटंकी कर रहे है कि छात्र आपस में लड़ जाएँ तथा भय का माहौल बढ़े और ये लोग इस हिंसा के बल पर पब्लिसिटी बटोर लें।”
उन्होंने ऑपइंडिया को कई स्क्रीनशॉट भी भेजा, “आप यह स्क्रीन शार्ट देखिए कि किस प्रकार मुझे और मेरे जैसे और भी सामान्य स्टूडेंट्स को चिह्नित करके कहा जा रहा है कि ये ‘ABVP Goons’ हैं, इन्हें बाहर निकालो। मैं नक्सल और goons पर नहीं जाऊँगा क्योंकि राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप होते रहते है। लेकिन इस प्रकार आम छात्रों को चिन्हित करके क्या चाहते हो भाई? सभी जेएनयू छोड़कर चले जाएँ और आप जेएनयू को केरल बना दें?
ऐसे काई छात्रों ने हमसे बात करते हुए बताया कि यहाँ के छात्रों को देशविरोधी ताकतों या जो अमन-शांति नहीं चाहते, जिनका बात बे बात आंदोलन और विरोध प्रदर्शन ही मकसद हो चुका है। जो यहाँ के वामपंथी प्रोफेसरों का शय पाकर इस पूरे JNU को वामपंथ का अभेद गढ़ बनाने का सपना पाले हैं, वो अब पूरा नहीं होने वाला। हम छात्रों को अब आपका सेलेक्टिव विरोध-प्रदर्शन समझ आ रहा है। यहाँ के वामपंथी छात्रों को समाधान से कोई मतलब नहीं है जैसे ही समस्या का समाधान नजदीक आता है ये नई समस्या खड़ी कर उसका राजनीतिकरण करना शुरू कर देतें हैं। और ये सिलसिला सालों चलता रहता है। और आपके इस राजनीति का शिकार होते हैं यहाँ के आम गरीब छात्र जिनकी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं है जो केवल पढ़ना चाहते हैं। अपना भविष्य बनाना चाहते हैं।
JNU के एक किसान परिवार से आने वाले बेहद निम्न आर्थिक स्थिति के छात्र ने बताया, “यहाँ विचारधारा थोपने का काम होता है, हेल्दी डिबेट की कोई बात ही नहीं बची है। सभी को वामपंथी विचार को ही अपना विचार बनाने के लिए दबाव बनाया जाता है। आप उनसे अलग रहेंगे तो वामपंथी छात्र और यहाँ के कई वामपंथी प्रोफ़ेसर आपका यहाँ रहना मुश्किल कर देंगे।”
JNU के सामान्य छात्रों ने यह भी कहा कि किसी भी शिक्षण संस्थान में एक ही विचार का वर्चस्व गलत है ये कहीं से भी लोकतांत्रिक नहीं है। और वामपंथी विचारधारा के लोग केवल अपने विचार और वर्चस्व को ही यहाँ लोकतंत्र की तरह पेश करते हैं। और कहीं न कहीं जब पूरे विश्व में इनकी विचारधारा ख़ारिज हो रही है तो यह JNU को ही एक बार फिर वामपंथ का गढ़ बनाना चाहते हैं जो सालों से इन्हें दरकता नजर आ रहा है।
अलोक झा ने तो साफ़ कहा कि यह बात सिर्फ मैं नहीं बल्कि मेरे जैसे कई आम छात्रों का कहना है कि जब तक जेएनयू का अस्तित्व है यहाँ पढ़ने वाले छात्र हैं तब तक वामपंथियों का ये ख्वाब पूरा होने वाला नहीं है। उन्होंने अपील भी की, “अरे लेफ्ट वाले भाई थोड़ी सी भी तुम्हारी सकारात्मक सोच होती तो तुम समाधान की बात करते। इस तरह से छात्रों को प्रताड़ित कर, उनके बीच ग़लतफ़हमी पैदा कर, और उनके साथ अस्पृश्यता का व्यवहार कर आप लोग जो कर रहे हो, अच्छा ही किया। आम छात्रों ने एक बार फिर वामपंथ का दोहरा चरित्र देख लिया।”
Jawaharlal Nehru University Vice Chancellor M. Jagadesh Kumar: I would like to ask all those great personalities coming to support agitators, what about thousands of students&teachers who are deprived of their rights of doing research and teaching? Why can’t you stand with them? pic.twitter.com/aQcV1l7c7r
— ANI (@ANI) January 8, 2020
बता दें कि कुलपति ने भी वहाँ के आम छात्रों के अधिकारों की मीडिया में कोई चर्चा नहीं होने पर खुद ही सवाल किया कि क्या जो विरोध कर रहे हैं उन्हीं का लोकतान्त्रिक अधिकार है? जो छात्र और प्रोफ़ेसर पढ़ना, पढ़ाना और रिसर्च करना चाहते हैं उनका कोई अधिकार नहीं है? आखिर उनका क्या कसूर है? मीडिया में इस पर चर्चा क्यों नहीं हो रही है?
MJ Kumar, Vice-Chancellor, JNU: Today after making JNU communication&info systems functional, number of students who have paid fees for winter semester registration rose to 3552. Registration date extended to 12 Jan. University will help every JNU student who wants to register. pic.twitter.com/BI5hrxwqQV
— ANI (@ANI) January 7, 2020
इसके आलावा उन्होंने 3500 से अधिक छात्रों के रजिस्ट्रेशन कराने की जानकारी दी। यह आँकड़ा संभवतः तब का है जब वामपंथी नकाबपोशों द्वारा सर्वर डैमेज नहीं किया गया था। दोबारा से रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया शुरू होने के बाद यह संख्या और बढ़ गई होगी। ये वह आँकड़ा भी है जो पढ़ना चाहते हैं जिन्हें वामपंथी छात्रों द्वारा हिंसा की हद तक प्रताड़ित किया जा रहा है। ऐसे छात्रों को टारगेट कर उन्हें निशाना बनाया जा रहा है। उन्हें छात्रों द्वारा विभिन्न क्रियाक्रलापों के लिए बनाए व्हाट्सअप समूहों से निकाला जा रहा। आखिर मीडिया और देश के जागरूक नागरिकों को क्या उनके अधिकारों की चिंता नहीं होनी चाहिए?
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