द कश्मीर फाइल्स में हिंदुओं के साथ हुई बर्बरता की जो तस्वीर दिखाई गई उसे प्रोपेगेंडा साबित करने में जुटे वामपंथी इकोसिस्टम को पीएम मोदी द्वारा लताड़े जाने के बाद अब कश्मीरी पंडित व भारतीय स्तंभकार सुनंदा वशिष्ठ ने भी इस इकोसिस्टम को लेकर अपना गुस्सा उतारा है। उन्होंने कहा कि 1990 में जो कुछ भी कश्मीर में हुआ वो खुद उस दर्दनाक मंजर की चश्मदीद हैं। वह बताती हैं कि 1990 तक वह वहाँ अपने परिजनों के साथ रहती थीं। उन्होंने उस दौरान अपनी स्कूल बस को किडनैप होते भी देखा, 19 जनवरी 1990, 1 मार्च 1990 को जो हुआ वो भी देखा और ये भी देखा कि पूरा इकोसिस्टम कैसे सबके गुनाह को धो-पोंछने के लिए काम करता है।
I had never revealed this story before. But it is time to say it all. As it is https://t.co/hmIh0KWFO2
— Sunanda Vashisht (@sunandavashisht) March 15, 2022
उन्होंने बताया कि वे लोग अगस्त 1990 में कश्मीर से दिल्ली आए क्योंकि उनके पास कश्मीर से बाहर कोई और कमाई का जरिया ही नहीं था। वह बताती हैं, “दिल्ली आकर कुछ साल बाद मैंने सेंट स्टीफन कॉलेज में दाखिला लिया। वहाँ मैंने देखा कि हर कोई 1992 में हुए बाबरी मस्जिद विवाद पर बातें कर रहा था। वहाँ सब राजनीति से भरा माहौल था। उस माहौल में जब मैंने हमारे बारे में बात करनी चाही तो मुझे नीचे कर दिया गया और कभी मुझे ये अवसर नहीं मिला कि मैं अपनी बात रख सकूँ। ये पहली दफा है कि मैं टाइम्स नाऊ पर ये बातें बता रही हूँ। ये सब घाव हैं।”
मणिशंकर अय्यर ने उतार फेंकी जनेऊ
वह बोलीं, “कॉलेज में मणिशंकर अय्यर, सईद नकवी जैसे लोगों को बुलाया जाता था और ये लोग बातें क्या करते थे…मेरे पूर्वज भट्ट मजार पर उनके जनेऊ के लिए मार दिए गए। लेकिन मणिशंकर अय्यर मेरे कॉलेज आए। मैं पहली पंक्ति में बैठी थी। अय्यर ने कहा कि चूँकि 6 दिसंबर 1992 हुआ इसलिए मैंने अपना जनेऊ निकाल कर फेंक दिया। मैं इसे स्वीकारना नहीं चाहता। मैं हिंदू नहीं हूँ..।” सुनंदा इस घटना का जिक्र करते हुए कहती हैं, “मैं पहली पंक्ति में बैठी थी और कह रही थी सर इस देश में वो लोग भी हैं जो इसके लिए मर रहे हैं, इसकी वजह से मारे जा रहे हैं…क्या आपको ये नहीं दिखता। इसके बाद मुझे बाहर कर दिया गया।”
सईद नकवी ने हिंदू नरसंहार मानने से किया इनकार
वशिष्ठ ने सईद नकवी को लेकर कहा, “नकवी कॉलेज आए और बोले कि भारत 6 दिसंबर को भारत खत्म हो गया। मैंने पूछा कि 19 जनवरी 1990 में क्या हुआ था। तब मुझे कहा गया कि नहीं वो सच नहीं है, ऐसा कुछ हुआ ही नहीं था।”
सुनंदा वशिष्ठ का दर्द
कश्मीरी मूल की सुनंदा हैरानी जताते हुए कहती हैं कि इकोसिस्टम के लोग उनके सामने ही ये सारी बातें करते थे। वह कहती हैं, “मैं उस समय 18 साल की लड़की थी। मेरे पास कोई प्लेटफॉर्म नहीं था। मेरे पास एजेंसियाँ नहीं थीं। लेकिन मैंने इस इकोसिस्टम को काम करते हुए अपनी आखों के आगे देखा है। मैंने ये भी देखा है कि कैसे सेकुलरिज्म की आग में हमें जलाया गया।” वह एंकर से सवाल करती हैं, “आपको क्या लगता है कि क्यों कोई जाँच नहीं हुई? क्यों कोई निलंबन नहीं हुआ?… ये सिर्फ इसलिए नहीं था क्योंकि किसी पुलिसवाले ने जाँच से मना कर दिया हो या वो आतंकियों से डर गया….हालाँकि सच ये भी है कहीं न कहीं, लेकिन ये केस न होना, कार्रवाई न होना, जाँच न होना… ये सब जो किया गया वो उच्च कार्यालयों द्वारा किया गया था।”