साल 1990 मे कश्मीर घाटी में हिंदुओं की निर्मम हत्याओं की अंतहीन कहानियाँ आपको द कश्मीर फाइल्स के रिलीज के बाद से पढ़ने को मिल रही होंगी। इस बीच आपने शायद कश्मीरी पंडित टीका लाल टपलू का नाम भी सुना हो। पंडित टीका लाल टपलू की हत्या 1990 में नहीं हुई थी बल्कि वह तो वो पहले शख्स थे जिन्हें इस्लामी आतताइयों ने 1989 में अपना निशाना बनाकर पूरे नरसंहार की शुरुआत की थी।
पेशे से वकील व भाजपा उपाध्यक्ष टीका लाल टपलू की हत्या को 14 सितंबर 1989 को अंजाम दिया गया। वह कश्मीरी पंडितों में सबसे जाना माना चेहरा थे। लोग उन्हें लालाजी यानी बड़ा भाई कहते थे। आतंकी उन्हें मारने के लिए लंबे समय से साजिशें रच रहे थे जिसका टपलू को कहीं न कहीं एहसास था। इसीलिए कट्टरपंथियों से परिवार को बचाने के लिए उन्होंने अपने परिवार को अपने से दूर दिल्ली लाकर छोड़ दिया और वापस अपने लोगों के बीच लौट गए अपने कश्मीर।
8 सितंबर 1989 को वह जब दिल्ली से वापस अपने चिंकराल मोहल्ला स्थित घर पहुँचे तो आतंकियों को उनकी आवाज को दबाने का एक मौका मिल गया, जिसका फायदा उठाते हुए 12 सितंबर 1989 को उनके घर पर उन्हें डराने के लिए हमला किया गया और फिर 14 सिंतबर को उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया। घटना से पहले टीका लाल क्या कर रहे थे, कहाँ थे…ये सब बातें मीडिया में मौजूद हैं।
वह सुबह सामान्य सुबह थी। टीका लाल कट्टरपंथ के मंसूबों से वाकिफ थे और जानते थे कि आतंकी उन पर कभी भी हमला बोल सकते हैं। लेकिन बावजूद इसके वह उस दिन अपने घर से बाहर निकल गए। कारण था घर के बाहर एक बच्ची का तेज-तेज रोना। टपलू जब उसके पास गए तो उसकी माँ से पूछा कि वह क्यों रो रही है। माँ ने बताया कि बच्ची के स्कूल में कोई फंक्शन है और उसके पास पैसा नहीं है, इसलिए वह रो रही है।
टीका लाल टपलू ने बच्ची की माँ की सारी बातें सुनीं और अपनी जेब से 5 रुपए निकालकर जैसे ही उन्होंने बच्ची को पकड़ाए, तभी सामने से आतंकी बंदूक लेकर आए और उन्हें गोलियों से भून दिया। इस हत्या से आतंकियों के दो काम पूरे हुए थे। एक तो उनके रास्ते से टीका लाल हमेशा के लिए हट गए थे और दूसरा निजाम-ए-मुस्तफा का जो संदेश वो कश्मीरी पंडितों तक पहुँचाना चाहते थे वो हर पंडित के घर पहुँच गया था। इस एक हत्या से हालात इतने तनावपूर्ण हो गए थे कि लोगों ने अपने बच्चों को स्कूल भेजने से मना कर दिया था और कई दिन घरों में बंद रहे थे। आतंकियों ने नारा दिया था:
यहाँ क्या चलेगा, निजाम ए मुस्तफा
ला शरकिया ला गरबिया, इस्लामिया इस्लामिया;
जलजला आया है कुफ्र के मैदान में
लो मुजाहिद आ गए हैं मैदान में