Monday, December 23, 2024
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‘RSS तमिलनाडु में निकाल सकता है रूट मार्च’: सुप्रीम कोर्ट ने स्टालिन सरकार की अपील खारिज की, मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को रखा बरकरार

इससे पहले, आरएसएस की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने कहा था कि अनुच्छेद 19(1)(बी) के तहत बिना हथियारों के शांतिपूर्ण तरीके से एकत्र होना मौलिक अधिकार है। किसी मजबूत आधार के अभाव में इस अधिकार को कम नहीं किया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने तमिलनाडु सरकार को जबरदस्त झटका देते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को पथ संचालन (RSS Root March in Tamil Nadu) की इजाजत दे दी। RSS ने राज्य में 47 जगहों पर पथ संचलन निकालना चाहती थी, लेकिन तमिलनाडु सरकार ने इसकी इजाजत नहीं दी।

सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार (11 अप्रैल 2023) को मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ तमिलनाडु सरकार की उस अपील को खारिज कर दिया, जिसमें RSS को राज्य में मार्च निकालने की इजाजत दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम और पंकज मित्तल की पीठ ने 10 फरवरी को दिए गए मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा।

इससे पहले, आरएसएस की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने कहा था कि अनुच्छेद 19(1)(बी) के तहत बिना हथियारों के शांतिपूर्ण तरीके से एकत्र होना सबका मौलिक अधिकार है। इसे बहुत मजबूत आधार के अभाव में किसी भी तरह से कम नहीं किया जा सकता है।

जेठमलानी ने सरकार द्वारा आरएसएस पर इस आधार पर कुछ क्षेत्रों में मार्च निकालने पर लगाए गए प्रतिबंध पर सवाल उठाया कि पीएफआई पर भी हाल ही में प्रतिबंध लगाया गया था। जेठमलानी ने कहा, “जिन क्षेत्रों में ये मार्च निकाले गए, वहां से हिंसा की एक भी घटना की सूचना नहीं है।”

मामले की सुनवाई के दौरान भी सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु की स्टालिन सरकार के रवैये की आलोचना करते हुए कड़ी फटकार भी लगाई थी। न्यायाधीशों ने कहा था कि सरकार किसी के लिए लोकतंत्र की भाषा बोलती है और किसी के लिए सत्ता की भाषा बोलती है।

दरअसल, पिछले साल 2 अक्टूबर को पथ संचालन निकालने के लिए संघ ने राज्य सरकार से अनुमति माँगी थी। तमिलनाडु की स्टालिन सरकार सड़कों पर मार्च निकालने की अनुमति नहीं दी। अनुमति दी भी तो सीमिति जगहों पर और वह बंद परिसरों में। सरकार ने तर्क दिया था कि 6 ज़िले ऐसे हैं, जहाँ प्रतिबंधित इस्लामिक संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) का प्रभाव है। ऐसे में प्रदेश का माहौल बिगड़ सकता है।

संघ ने इसका विरोध किया और अपने मौलिक अधिकारों का हनन बताया था। राज्य सरकार के फैसले के खिलाफ संघ ने तमिलनाडु स्थित मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। हाईकोर्ट की एकल पीठ ने 4 नवंबर 2022 को सुनवाई करते हुए RSS को 6 जगहों को छोड़कर बाकी जगहों पर कुछ शर्तों के साथ मार्च निकालने की इजाजत दी थी। 

हाईकोर्ट द्वारा लगाई गई शर्तों में कहा गया था कि संघ के स्वयंसेवक बिना लाठी-डंडे या हथियारों के मार्च निकालेंगे। इसके साथ ही यह भी शर्त जोड़ी गई थी कि वे ऐसे किसी भी मुद्दे पर नहीं बोलेंगे, जिससे देश की अखंडता पर असर पड़े। हालाँकि कोर्ट के फैसले से नाखुश होकर RSS ने 6 नवंबर को होने वाले रूट मार्च को स्थगित कर दिया। इसके साथ ही कोर्ट से इस पर पुनर्विचार करने के लिए कहा।

इसके बाद मद्रास हाईकोर्ट की डबल बेंच ने 10 फरवरी 2023 को को सुनवाई करकते हुए उच्च न्यायालय की एकल खंडपीठ के प्रतिबंधों को हटा दिया। डबल बेंच ने एक स्वस्थ लोकतंत्र में विरोध के महत्व पर जोर दिया था। इस दौरान तमिलनाडु सरकार ने हाईकोर्ट में मार्च की अनुमति देने का विरोध किया।

हाईकोर्ट के डबल बेंच के फैसले के विरोध में तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, जिसे आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय ने 17 मार्च 2023 को हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली राज्य सरकार की याचिका पर सुनवाई टाल दी थी। इसके बाद 27 मार्च को कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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