आपको जून 2022 की घटना याद होगी, जब राजस्थान के उदयपुर में इस्लामी कट्टरपंथियों ने दर्जी कन्हैया लाल तेली का सिर कलम कर दिया। उनका अपराध सिर्फ इतना था कि उन्होंने नूपुर शर्मा का समर्थन किया था, वही नूपुर शर्मा जिन पर पैगंबर मुहम्मद के अपमान का आरोप लगाया गया और क़तर तक ने जिनके बयान पर आपत्ति जताई और भाजपा को अपने प्रवक्ता को निलंबित करना पड़ा। हालाँकि, नूपुर शर्मा शिवलिंग का अपमान किए जाने के बाद वही कह रही थीं जो इस्लामी किताबों में लिखा है।
अब सुप्रीम कोर्ट में उदयपुर के इस हत्याकांड के मामले का जिक्र आया है। असल में देश की सर्वोच्च अदालत मंगलवार (16 अप्रैल, 2024) को एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई कर रही थी। इस याचिका में अल्पसंख्यकों के खिलाफ मॉब लिंचिंग के अपराध बढ़ने का दावा करते हुए गोरक्षकों पर निशाना साधा गया था और तथाकथित पीड़ितों के लिए त्वरित वित्तीय मदद की व्यवस्था की माँग की गई थी। जस्टिस BR गवई, जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस संदीप मेहता ने कन्हैया लाल तेली हत्याकांड का जिक्र करते हुए याचिकाकर्ताओं को सलाह दी कि वो ऐसे मामलों को लेकर वो सेलेक्टिव न बनें।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “राजस्थान के टेलर का क्या? कन्हैया लाल, जिनकी हत्या कर दी गई।” अधिवक्ता निजाम पाशा ये याचिका लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुँचे थे। गुजरात सरकार की तरफ से पेश हुईं वकील अर्चना पाठक दवे ने कहा कि याचिका में सिर्फ मुस्लिमों की मॉब लिंचिंग की बात है, जबकि राज्य सरकार की जिम्मेदारी है सबको सुरक्षा देना। जस्टिस गवई ने पाशा से कहा कि आप कोर्ट में क्या कह रहे हैं इसे लेकर सतर्क रहें। याचिका में मुस्लिमों की भीड़ द्वारा हत्या की वारदातें बढ़ने का दावा किया गया था।
BREAKING: "What about the Kanhaiya Lal case where the tailor was lynched in Rajasthan? Mob lynching is not about a particular religion or 'selective' cases…" Supreme Court says while hearing the PIL over rising instances of mob lynching.#SupremeCourt #SupremeCourtOfIndia pic.twitter.com/JXeN4fOFI0
— Law Today (@LawTodayLive) April 16, 2024
वकील निजाम पाशा ने इस दौरान मध्य प्रदेश और हरियाणा से भी एकाध मामले उठा-उठा कर कोर्ट का ध्यान खींचने की कोशिश की। ये वही वकील है, जो ‘लव जिहाद’ की कलई खोलने वाली फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ को ऑडियो-विजुअल प्रोपेगंडा बताते हुए इस पर बैन लगाने की माँग लेकर सुप्रीम कोर्ट गया था। इतना ही नहीं, बुर्का-हिजाब के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट में उसने कुरान का हवाला देते हुए कहा था कि इसे पहनने वाली महिलाओं से छेड़खानी करने वाले डरते हैं और ये समझते हैं कि ये एक मजबूत महिला है, इसका समुदाय इसके पीछे खड़ा है। निजाम पाशा ज्ञानवापी सर्वे के खिलाफ भी सुप्रीम कोर्ट गया था।