Saturday, April 20, 2024
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‘छेड़खानी करने वालों को बता देता है हिजाब – ये महिला मुस्लिम है, मजबूत है’: बुर्का पक्ष के वकील ने कुरान का दिया हवाला, सुप्रीम कोर्ट में हो रही सुनवाई

निज़ाम पाशा का ये भी आरोप है कि हिजाब पर बैन लगाने के लिए हाईकोर्ट ने कुरान को गलत तरीके से पेश किया है। पाशा ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि हिजाब पर बैन लगाने के लिए कर्नाटक हाईकोर्ट ने कुरान के तो तथ्य दिए वो सही नहीं थे।

शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। बुर्का पक्ष के वकीलों में से एक निज़ाम पाशा भी हैं। अब निज़ाम पाशा का एक पुराना ट्वीट सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। अपने ट्वीट में पाशा ने दावा किया है कि हिजाब मुस्लिम महिलाओं की पहचान बता कर छेड़छाड़ करने वालों से उन्हें बचाने में सहायक साबित होता है। इसके लिए पाशा ने बाकायदा कुरान की आयतों का भी हवाला दिया है। यह ट्वीट उन्होंने फरवरी 2022 में किया था।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, निज़ाम पाशा ने कुरान के 33.59 का हवाला देते हुए लिखा था कि मुस्लिम महिलाओं को हिजाब अपनाना चाहिए, ताकि उनकी पहचान मुस्लिम के तौर पर साबित हो। उन्होंने अपने ट्वीट में आगे लिखा है कि हिजाब छेड़छाड़ करने वालों को यह बताता है कि इसे पहनने वाली एक मजबूत महिला है और उसके पीछे उसका पूरा समुदाय मजबूती से खड़ा हुआ है।

निज़ाम पाशा

निज़ाम पाशा का ये भी आरोप है कि हिजाब पर बैन लगाने के लिए हाईकोर्ट ने कुरान को गलत तरीके से पेश किया है। सितम्बर के पहले सप्ताह में पाशा ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि हिजाब पर बैन लगाने के लिए कर्नाटक हाईकोर्ट ने कुरान के तो तथ्य दिए वो सही नहीं थे। पाशा हाईकोर्ट की इस टिप्पणी से सहमत नहीं थे कि कुरान के हिजाब को इस्लाम का अनिवार्य अंग नहीं मानता।

कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट में सवाल खड़े करते हुए पाशा ने आगे कहा था कि उच्च न्यायालय ने कुरान के अनुवादक की सलाह का जिक्र किया है, न कि कुरान के पाठ का। इस मौके पर पाशा ने हाईकोर्ट द्वारा उल्लेख की गई एक कविता का भी जिक्र किया था, जिसमें कहा गया था कि किसी को भी इस्लाम में धर्मांतरित होने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। पाशा ने हाईकोर्ट में बोली गई कविता को ‘जिलाबाब’ से संबंधित बताया, जो कि पूरे शरीर को ढँकता है, जबकि हिजाब केवल सिर और छाती को ढँकता है। पाशा ने कहा कि उच्च न्यायालय द्वारा बोली गई कविता के अनुसार, जिलाबाब अनिवार्य नहीं था न कि हिजाब।

निज़ाम पाशा के अलावा हिजाब समर्थक एक अन्य वकील दुष्यंत दवे ने यूनिवर्सिटी से जुड़े संस्थानों में हेडस्कार्फ बैन के हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए बेहद बेतुके तर्क दिए। इस दौरान उन्होंने ब्राह्मणों द्वारा भारत पर कथित तौर पर कब्ज़ा करने और जैन और बौद्धों को बाहरी लोगों के रूप में साबित करने के लिए डॉ अम्बेडकर की बातों को अपने हिसाब से पेश किया।

कर्नाटक बुर्का विवाद

गौरतलब है कि जनवरी 2022 में कर्नाटक के उडुप्पी में क्लास के अंदर हिजाब बैन करने के आदेश के बाद विवाद खड़ा हो गया था। PFI से समर्थित कुछ मुस्लिम छात्राओं ने इस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की थी। इस अपील के जवाब में कर्नाटक हाईकोर्ट ने 15 मार्च को फैसला देते हुए बताया कि हिजाब इस्लाम का अनिवार्य अंग नहीं है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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