Wednesday, November 6, 2024
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‘और कितने आयोग…’: ईसाई-मुस्लिम बने दलितों को भी SC दर्जा पर सुप्रीम कोर्ट का सवाल, रंगनाथ मिश्रा कमिटी की रिपोर्ट केंद्र ने खारिज की

साल 2007 में कॉन्ग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) की गठबंधन में मनमोहन सिंह सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंगनाथ मिश्रा की अध्यक्षता में आयोग का गठन किया था। जस्टिस रंगनाथ मिश्रा ने साल 2009 में अपनी रिपोर्ट दी थी।  इसमें उन्होंने धर्मांतरित ईसाई और मुस्लिमों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने का सुझाव दिया था।

ईसाई और मुस्लिम दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने की माँग वाली याचिका पर सुनवाई की रूपरेखा जुलाई 2023 में तय होगी। लगभग 20 सालों से लंबित इस मामले पर निर्णय लेेने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है। वहीं, केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि पूर्व चीफ जस्टिस केजी बालाकृष्णन के नेतृत्व में बनी कमेटी की रिपोर्ट का वह इंतजार कर रही है।

दरअसल, केंद्र सरकार ने पूर्व CJI रंगनाथ मिश्रा की अध्यक्षता में बनाई गई कमिटी की रिपोर्ट को खारिज कर दिया है। इस रिपोर्ट में ईसाई और मुस्लिम दलितों को अनुसूचित जाति में शामिल करने की सिफारिश की गई थी, ताकि उन्हें शिक्षा एवं नौकरी में दलितों की भाँति आरक्षण का लाभ मिल सके।

साल 2007 में कॉन्ग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) की गठबंधन में मनमोहन सिंह सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंगनाथ मिश्रा की अध्यक्षता में आयोग का गठन किया था। जस्टिस रंगनाथ मिश्रा ने साल 2009 में अपनी रिपोर्ट दी थी। 

मिश्रा कमिटी की रिपोर्ट को खारिज करते हुए केंद्र सरकार ने तर्क दिया कि यह रिपोर्ट बिना फील्ड स्टडी और किसी से सलाह के बिना तैयार की गई थी। इसके बाद 7 अक्टूबर 2022 को केंद्र की मोदी सरकार ने बालाकृष्णन के नेतृत्व में 3 सदस्यीय आयोग गठित किया। इस आयोग को कहा गया कि वे पता लगाएँ कि धर्मांतरित ईसाई और मुस्लिमों दलित को अनुसूचित जाति का दर्जा देने की जरूरत है या नहीं। इसके लिए 2 साल का समय दिया गया है।

इस मामले की इसकी अगली सुनवाई 11 जुलाई 2023 को की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह जुलाई में होने वाली अगली सुनवाई में विचार करेगा कि सरकार द्वारा स्वीकार ना की जाने वाली कमीशन की रिपोर्ट पर भरोसा किया जाना चाहिए या नहीं। अगर विश्वास किया जा सकता है तो किस हद तक।

केंद्र द्वारा केजी बालाकृष्णन की रिपोर्ट का इंतजार करने के आग्रह पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मुद्दे पर और कितने कमीशन बनेंगे?  इनका क्या औचित्य है? ये भी नहीं पता कि वर्तमान कमीशन की रिपोर्ट भी पहले जैसी नहीं होगी? अदालत ने कहा कि पूर्व चीफ जस्टिस रंगनाथ मिश्रा कमिटी की रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया गया।

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि यह एक संवैधानिक सवाल है कि क्या राज्य धर्म के आधार पर भेदभाव कर सकता है?  सरकार अब कह रही हैं कि उसने दो साल के कार्यकाल वाले एक नया आयोग को नियुक्त किया है। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या अदालत को सरकार के इस बयान पर फिर इंतजार करना चाहिए?

प्रशांत भूषण ने तर्क दिया, “हम शामिल करने के लिए नहीं, बल्कि दलित ईसाइयों और दलित मुस्लिमों के बहिष्कार को असंवैधानिक, अवैध और मनमाना कह रहे है। दरअसल, केवल हिंदू, सिख या बौद्ध धर्म के लोगों को अनुसूचित जाति के रूप में मान्यता दी गई है और उन्हें नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण दिया गया है।

बता दें कि इससे पहले केंद्र ने कहा था कि जिन लोगों ने ईसाई एवं इस्लाम में धर्मांतरण कर लिया है, उन्हें एससी का दर्ज नहीं दिया जा सकता। इसके पीछे केंद्र ने तर्क दिया था कि इस्लाम और ईसाइयत में भेदभाव नहीं होता और ना ही पिछड़ापन है।

दरअसल, 1936 में ब्रिटिश शासन ने भी अपने आदेश में कहा था कि धर्म परिवर्तन कर ईसाई बने दलितों को शोषित नहीं माना जाएगा। 1950 में राष्ट्रपति की तरफ से जारी ‘दि कॉन्स्टिट्यूशन (शेड्यूल्ड कास्ट्स) ऑर्डर’ में इस बात का प्रावधान किया गया है कि सिर्फ हिंदू, सिख और बौद्ध समुदाय से जुड़े दलितों को ही अनुसूचित जाति का दर्जा मिलेगा।

इसके पीछे कारण दिया कि ईसाई और मुस्लिम समाज में जाति व्यवस्था नहीं होती है। इसलिए धर्म परिवर्तन के बाद हिंदू से ईसाई या मुस्लिम बने दलित लोगों को सामाजिक भेदभाव नहीं होता है और वे इस आधार पर खुद को अलग दर्जा देने की माँग नहीं कर सकते। 

साल 1980 के दशक में 1950 में दिए गए राष्ट्रपति आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। ‘सूसाई बनाम भारत सरकार’ नाम के इस केस का फैसला 1985 में आया था और इसमें सुप्रीम कोर्ट ने धर्मांतरित ईसाई और मुस्लिम दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने से मना कर दिया था।

इसके बाद साल 2004 में गाज़ी सादुद्दीन नाम के याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर मुस्लिम दलितों को भी आरक्षण का लाभ देने की माँग की। इसके बाद ईसाई संगठनों की तरफ से भी ऐसी ही कई याचिकाएँ दाखिल की गईं। तब से यह मामला लंबित है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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