कर्नाटक में मुस्लिमों के खत्म किए गए 4 प्रतिशत आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँच गया है। तीन दशक पुराने इस आरक्षण को रद्द करने के कर्नाटक सरकार के फैसले को चुनौती दी गई है। कर्नाटक सरकार के इस फैसले पर 9 मई 2023 तक के लिए रोक लगा दी गई है। हालाँकि, कर्नाटक सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एफिडेविट देकर अपने फैसले का बचाव किया है।
अपनी एफिडेविट में कर्नाटक सरकार ने कहा कि धर्म के आधार पर आरक्षण पूर्णत: असंवैधानिक है। यह ना सिर्फ संविधान की धारा 14, 15, 16 का उल्लंघन करता है, बल्कि यह सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का भी उल्लंघन करता है। बता दें कि कर्नाटक में 10 मई को चुनाव होने वाले हैं।
मुस्लिम पक्ष द्वारा दायर इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की जज बीवी नागरत्ना और केएम जोसेफ सुनवाई कर रहे हैं। याचिका की सीधे सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई को लेकर भी कर्नाटक सरकार ने सवाल उठाया है और कहा कि याचिकाकर्ता ने इस याचिका को पहले कर्नाटक हाईकोर्ट में नहीं दायर किया।
कर्नाटक सरकार ने यह भी दलील दी कि संविधान में कहा गया है कि आरक्षण का उद्देश्य उन लोगों को आगे लाने का मौका देना है, जो ऐतिहासिक रूप से पिछड़े और भेदभाव के शिकार रहे हैं। इसका जिक्र संविधान के आर्टिकल 14-15 तक में किया गया है। पिछड़ी जातियों के बारे में भी कही गई है।
अपनी दलील में कर्नाटक सरकार ने आगे कहा कि पिछड़ेपन की बात समाज के वर्ग को लेकर कही गई है। मजहब के आधार पर नहीं। इसलिए मजहब के आधार पर मुस्लिमों को दिया गया आरक्षण असंवैधानिक था और सरकार ने इसे खत्म कर दिया।
दरअसल, मुस्लिमों को OBC कैटेगरी के तहत चार प्रतिशत का आरक्षण मिलता था। इस व्यवस्था को कॉन्ग्रेस की सरकार ने राज्य में लागू किया था। इसके बाद इस व्यवस्था को मुख्यमंत्री बोम्मई की नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने रद्द कर दिया। इस चार प्रतिशत को वोक्कालिगा और लिंगायत जैसी जातियों में बाँट दी गई है। वहीं, मुस्लिमों को EWS कैटेगरी के तहत रखा गया है।
मुस्लिमों का आरक्षण रद्द करने की घोषणा करते हुए सीएम बोम्मई ने कहा था, “चार प्रतिशत (अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण) आरक्षण को 2C और 2D के बीच विभाजित किया जाएगा।वोक्कालिगा और अन्य के लिए दी जाने वाली 4 प्रतिशत आरक्षण को बढ़ाकर 6 प्रतिशत किया जाएगा। वहीं, वीरशैव पंचमसाली और अन्य (लिंगायत) के 5 प्रतिशत आरक्षण को बढ़ाकर 7 प्रतिशत किया जाएगा।”
सरकार के इस फैसले से सभी लोगों को फायदा मिलेगा। मुस्लिमों को जहाँ 4 प्रतिशत की जगह अब 10 प्रतिशत का लाभ मिलेगा, वहीं वोक्कालिगा और लिंगायत समुदाय के आरक्षणों में भी 2-2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।