ममता बनर्जी ने बुधवार (5 मई 2021) को लगातार तीसरी पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली। उससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने बंगाल सरकार को बड़ा झटका दिया। शीर्ष अदालत ने वेस्ट बंगाल हाउसिंग इंडस्ट्रीज रेगुलेशन ऐक्ट-2017 (WBHIRA) को रद्द कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने मंगलवार को यह फैसला दिया। बंगाल सरकार ने यह कानून केंद्र सरकार की रियल एस्टेट (रेगुलेशन एंड डेवलपमेंट) एक्ट, 2016 (RERA) की जगह बनाया था। राज्य सरकार के कानून को असंवैधानिक करार देते हुए अदालत ने कहा कि समानांतर शासन स्थापित करने का प्रयास स्वीकार नहीं किया जा सकता।
शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि किसी विषय पर केंद्र सरकार का कानून है तो राज्य सरकार उसी तरह का कानून नहीं बना सकती। बार ऐंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार अदालत ने कहा, “पश्चिम बंगाल ने एक समानांतर शासन स्थापित करने का प्रयास किया है जो संवैधानिक रूप से स्वीकार्य नहीं है।” मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के कानून को केंद्रीय कानून का अतिक्रमण माना। कहा कि इस कानून से एक समानांतर सिस्टम बनाया गया और संसद के अधिकार क्षेत्र में दखल दिया गया। अदालत ने कहा कि ऐसी स्थिति में राज्य सरकार का कानून अस्तित्व में नहीं रह सकता और उसे निरस्त किया जाता है।
सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद-142 के तहत अपने विशेष अधिकार का इस्तेमाल करते हुए कहा कि इस फैसले का असर ‘हीरा’ के तहत पूर्व में जिन हाउसिंग प्रोजेक्ट को मँजूरी मिल चुकी है उन पर नहीं होगा। बंगाल सरकार के इस कानून को एक गैर सरकारी संगठन ने चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता का कहना था कि राज्य के कानून के कारण खरीददारों को नुकसान उठाना पड़ा है।
गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजे 2 मई को घोषित किए गए थे। नतीजों में तृणमूल कॉन्ग्रेस की जीत सुनिश्चित होने के बाद राज्य में खून-खराबे का नया दौर शुरू हो गया था। विपक्षी दलों खासकर बीजेपी कार्यकर्ताओं, उनके घरों और कार्यालयों को निशाना बनाया गया। 14 लोगों की मौत की अब तक खबर आ चुकी है। राजनीतिक हिंसा को लेकर मंगलवार को गैर सरकारी संगठन इंडिक कलेक्टिव ट्रस्ट ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। ट्रस्ट ने अपनी याचिका में कहा है कि राज्य में संवैधानिक मशीनरी ध्वस्त हो गई है। लिहाजा संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जाए।