सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को गुजरात कैडर के आईपीएस अधिकारी संजीव भट की परिवार को सुरक्षा देने से सम्बंधित याचिका को खारिज कर दिया। जस्टिस ए के सीकरी और एस अब्दुल नजीर की पीठ ने भट से अपनी याचिका के साथ गुजरात उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने को कहा है।
Supreme Court asks former IPS Sanjiv Bhatt to approach the Gujarat High Court with his petition seeking security to his family after a recent accident involving his wife and son.
— ANI (@ANI) February 8, 2019
इकोनॉमिक्स टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल 4 अक्टूबर को शीर्ष अदालत ने उनकी पत्नी श्वेता भट की उस याचिका को भी खारिज कर दिया था, जिसमें एक वकील को ड्रग्स प्लांट कर गिरफ़्तार करने के 22 साल पुराने मामले में पुलिस की जाँच और उसकी न्यायिक हिरासत को चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने कहा था कि वह राहत के लिए इस मामले को उचित फ़ोरम के समक्ष रखें। शीर्ष अदालत ने माना था कि इसके लिए चल रही जाँच में हस्तक्षेप करना उचित नहीं था।
बता दें कि भट को 2011 में आधिकारिक वाहनों के दुरुपयोग और बिना अनुमति ड्यूटी से अनुपस्थित रहने के आरोप में निलंबित कर दिया गया था और बाद में अगस्त 2015 में बर्खास्त कर दिया गया था। उनकी पत्नी श्वेता ने 2012 में अहमदाबाद के मणिनगर सीट से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ कॉन्ग्रेस के उम्मीदवार के रूप में विधानसभा चुनाव लड़ा था।
भट 1996 में बनासकांठा जिले के पुलिस अधीक्षक थे। पुलिस के अनुसार, भट्ट के अधीन बनासकांठा पुलिस ने 1996 में सुमेरसिंह राजपुरोहित नामक एक वकील को लगभग 1 किलो ड्रग्स रखने के आरोप में गिरफ़्तार किया था। उस समय बनासकांठा पुलिस ने दावा किया कि राजपुरोहित के कब्जे वाले एक होटल के कमरे में ड्रग्स मिला था। बनासकांठा पुलिस के साथ जुड़े कुछ पूर्व पुलिसकर्मियों सहित संजीव भट्ट और सात अन्य को शुरू में इस मामले में पूछताछ के लिए हिरासत में लिया गया था।
हालाँकि, राजस्थान पुलिस की जाँच में ये स्पष्ट हो गया था कि राजपुरोहित को बनासकांठा पुलिस द्वारा कथित रूप से झूठा फँसाया गया था ताकि वह राजस्थान के पाली में एक विवादित संपत्ति को स्थानांतरित करने के लिए मज़बूर हो सके।
यह भी दावा किया गया कि राजपुरोहित को बनासकांठा पुलिस ने पाली स्थित उनके आवास से कथित तौर पर अपहरण कर लिया था। राजस्थान पुलिस की जाँच के बाद, बनासकांठा के पूर्व इंस्पेक्टर बी बी व्यास ने 1999 में गुजरात उच्च न्यायालय का रुख किया और इस मामले की गहन जाँच की माँग की।
जून 2018 में उच्च न्यायालय ने याचिका की सुनवाई करते हुए मामले की जाँच CID को सौंप दी थी और तीन महीने में जाँच पूरी करने को कहा था।