सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली नगर निगम (MCD) में नामित सदस्यों की नियुक्ति पर केजरीवाल सरकार को झटका दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि MCD में मनोनीत सदस्यों की नियुक्ति का अधिकार दिल्ली के उपराज्यपाल (LG) को है और वह इसके लिए दिल्ली सरकार की सलाह पर काम करने के लिए बाध्य नहीं हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (5 अगस्त, 2024) को यह निर्णय दिया। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस पीएस नरसिम्हन ने यह निर्णय दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दिल्ली नगर निगम में 10 मनोनीत सदस्यों की नियुक्ति का अधिकार उपराज्यपाल को है और इसके लिए वह दिल्ली सरकार की सलाह या सहायता मानने पर निर्भर नहीं है। कोर्ट ने कहा कि दिल्ली LG को यह शक्तियाँ उसे 1993 के MCD कानून से मिलती हैं।
कोर्ट ने कहा, “1993 का दिल्ली नगर निगम अधिनियम ने पहली बार LG को मनोनीत करने की शक्ति प्रदान की थी। LG द्वारा उपयोग की गई शक्ति उस योजना को दर्शाती है, जिसके अंतर्गत शक्ति बाँटी गई है। दिल्ली LG से अपेक्षा की जाती है कि वे कानून के अनुसार काम करें ना कि मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के अनुसार।”
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला 15 माह पहले रिजर्व कर लिया था और अब सुनाया है। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली की AAP सरकार की याचिका पर दिया है। AAP सरकार ने MCD में मनोनीत सदस्यों की राज्यपाल द्वारा नियुक्ति के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी।
AAP सरकार ने दलील दी थी कि LG ने बिना सरकार के सलाह के ही MCD में नियुक्तियाँ की और 1991 के कानून के बाद पहली बार यह हुआ। AAP सरकार ने दलील दी थी कि LG या तो सरकार के दिए गए नाम मानें या फिर इससे अपनी असहमति जताने के साथ इसे राष्ट्रपति को भेज दें।
गौरलतब है कि AAP सरकार लगातार LG के विरुद्ध कई मामलों में सुप्रीम कोर्ट जाती रही है। इस निर्णय से दिल्ली की केजरीवाल सरकार को बड़ा झटका लगा है। वर्तमान में MCD को लेकर दिल्ली में काफी गुस्सा है। MCD में वर्तमान में AAP सत्ता में है। MCD में कुल 250 सदस्य होते हैं। इनमें से 240 सीटों पर चुनाव होता है जबकि 10 सीटों पर सदस्यों को नामित किया जाता है। इनको मनोनीत करने का अधिकार अब राज्यपाल को मिल गया है। इन्हें एल्डरमैन कहा जाता है।