सुप्रीम कोर्ट ने नौकरशाहों को अदालत में व्यक्तिगत रूप से बुलाने पर रोक लगाते हुए उच्च न्यायालयों के लिए एक गाइडलाइन जारी की है। इसके साथ ही अवमानना कार्यवाही में यूपी के वित्त सचिव को हिरासत में लेने और मुख्य सचिव के खिलाफ जमानती वारंट जारी करने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया। दरअसल, सेवानिवृत मुख्य न्यायाधीश और न्यायाधीश को घरेलू नौकर नहीं उपलब्ध कराने पर हाईकोर्ट ने यह आदेश दिया था।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद यूपी सरकार ने उसके आदेशों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इसके बाद मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों के पृथक्करण को ध्यान में रखते हुए इस पर सुनवाई की।
फैसला देते हुए CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के पास संविधान के अनुच्छेद 229 के तहत हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश और न्यायाधीशों के लिए सेवानिवृत्ति के बाद के लाभों से संबंधित नियम बनाने की शक्ति नहीं है। इसलिए, इलाहाबाद हाईकोर्ट सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के लिए घरेलू मदद का प्रावधान करने वाले नियम नहीं बना सकते थे।
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (3 जनवरी 2024) को एक मामले की सुनवाई में कहा कि बेहद जरूरी होने पर ही अधिकारियों को कोर्ट में पेश होने के लिए कहा जा सकता है, लेकिन इसके लिए पहला विकल्प वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का देना होगा। शीर्ष न्यायालय ने यह भी कहा कि इसके लिए संबंधित अधिकारी को पूर्व सूचना भी देनी होगी।
इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक रूप से कहा था कि अधिकारियों को नियमित तौर पर तलब करके न्यायाधीश ‘बादशाहों’ की तरह व्यवहार नहीं कर सकते। कोर्ट ने आगे कहा था कि न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच शक्तियों का पृथक्करण बनाए रखा जाना चाहिए और सुशासन आपसी सम्मान पर निर्भर करता है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि अदालतों को अवमानना कार्यवाही में भी अधिकारियों की व्यक्तिगत उपस्थिति की माँग करने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि पहले हाईकोर्ट को नोटिस जारी करके उनके कृत्य का स्पष्टीकरण माँगा जाना चाहिए।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायाधीशों को उन अधिकारियों को अपमानित नहीं करना चाहिए, जो समन के कारण अदालत में उपस्थित हुए हैं। अधिकारियों की शारीरिक बनावट, शैक्षिक पृष्ठभूमि या सामाजिक स्थिति के बारे में अपमानजनक टिप्पणी करने से बचना चाहिए। उन्होंने कहा कि अधिकारियों को पूरी कार्यवाही के दौरान खड़े रहने की भी जरूरत नहीं है। वे तब खड़े हों, जब कोर्ट को संबोधित कर रहे हों।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी अधिकारी को केवल इसलिए नहीं बुलाया जाना चाहिए, क्योंकि सरकारी हलफनामे में दी गई दलीलों से न्यायाधीश के विचार नहीं मिलते हैं। कोर्ट ने कहा कि यदि जानकारी जानबूझकर छिपाई गई है या तथ्यों को गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया है या दबाया गया है तो अदालत अधिकारियों को तलब कर सकती है। इसके लिए कारण भी बताना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने आगे, “अधिकारियों के कार्य और निर्णय न्यायिक समीक्षा के अधीन हैं, लेकिन उन्हें बिना उचित कारण के बार-बार तलब करना स्वीकार्य नहीं है। संयम बरतना, सार्वजनिक अधिकारियों के खिलाफ अनुचित टिप्पणियों से बचना और कानून अधिकारियों के कार्यों को पहचानना एक निष्पक्ष और संतुलित न्यायिक प्रणाली में योगदान देता है।”