सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु की MK स्टालिन सरकार को बड़ा झटका दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने आगमिक मंदिरों में पुजारियों की नियुक्ति में सरकारी ज़बरदस्ती पर रोक लगाते हुए ‘स्टे ऑर्डर’ दिया है और कहा है कि सरकार किसी भी परंपरा में जबरन घुसने की कोशिश न करे। सुप्रीम कोर्ट ने आगमिक मंदिरों में सरकारी गाइडलाइन्स के हिसाब से नियुक्तियों पर रोक लगाई है, और मद्रास हाई कोर्ट की एकल पीठ के आदेश को बरकरार रखने को कहा है, जिसमें हाईकोर्ट ने कहा था कि आगमिक मंदिरों पर सरकार की गाइडलाइन्स लागू नहीं होंगी।
तमिलनाडु के मंदिर सरकार के हाथों में कैद!
तमिलनाडु में करीब 42,500 मंदिर हैं, जिनमें पुजारियों की नियुक्ति सरकार करती है। इन मंदिरों में करीब 10 प्रतिशत मंदिर आगमिक परंपरा के हिसाब से हैं। ये मंदिर बहुत पुराने हैं और अपनी अलग विशेष परंपरा और समुदाय की नीतियों का पालन करते हैं। चूँकि तमिलनाडु की सरकार ने नियम बनाया है कि मंदिरों में तैनाती के लिए सरकार द्वारा चलाए जा रहे ‘पुजारी डिप्लोमा’ हासिल करने वाले व्यक्ति ही पात्र होंगे। इस नीति के हिसाब से मंदिरों में भले ही कोई दशकों से पूजा कर रहा हो, लेकिन उसके पास तमिलनाडु सरकार का डिप्लोमा नहीं है, तो वो पुजारी के पद पर काम करने के लिए पात्र ही नहीं होगा।
बता दें कि तमिलनाडु के मंदिरों में चढ़ने वाले चढ़ाने, दान इत्यादि की सरकार ही बंदोबस्ती करती है। वही इन पैसों की मालिक होती है। इसके बदले में वो मंदिरों की व्यवस्था देखती है, पुजारियों व अन्य कर्मचारियों की वैतनिक नियुक्ति करती है।
सुप्रीम कोर्ट ने कही ये बात
इस मामले में ‘अखिल भारतीय आदि शैव शिवाचार्यर्गल सेवा एसोसिएशन’ ने रिट याचिका दायर की थी, जिसपर जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने सरकार को नोटिस जारी करते हुए आगमिक मंदिरों में पुजारियों की नियुक्ति के मामले में यथास्थिति बनाए रखने को कहा है।
Supreme Court Orders Status Quo On Appointment Of Archakas(Priests) In Agamic Temples In Tamil Nadu | @sheryl_ses #SupremeCourt https://t.co/AeJa0kCaQs
— Live Law (@LiveLawIndia) September 26, 2023
‘अखिल भारतीय आदि शैव शिवाचार्यर्गल सेवा एसोसिएशन’ की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट गुरु कृष्ण कुमार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि मद्रास हाईकोर्ट के फैसले के बावजूद राज्य सरकार मनमानी कर रही है और संप्रदाय के बाहर के लोगों की नियुक्तियाँ कर रही है। सरकार कह रही है कि लोग इसके लिए ट्रेनिंग कर चुके हैं और वो पूजा-पाठ कराने में सक्षम हैं, जबकि हाईकोर्ट ने साफ कहा है कि आगमिक मंदिरों के अपने रीति-रिवाज और उनकी अपनी परंपराएँ हैं। ऐस में उस परंपरा को मानने वाले लोगों की ही नियुक्ति हो सकती है।
ये है पूरा मामला
तमिलनाडु सरकार ने साल 2020 में एक कानून बनाया था, जिसे तमिलनाडु हिंदू धार्मिक संस्थान कर्मचारी (सेवा की शर्तें) नियम, 2020 नाम दिया गया है। इसी नियम के तहत तमिलनाडु सरकार मंदिरों में पुजारियों (अर्चकों) की नियुक्ति करती है। लेकिन, अगस्त 2022 में मद्रास हाई कोर्ट की एकल खंडपीठ ने आगमिक मंदिरों को इस नियम के भाग 7 और 9 की व्याख्या करते हुए छूट दी थी और कहा था कि आगमिक मंदिरों पर सरकार का ये आदेश लागू नहीं होगा, क्योंकि वो मंदिर खास परंपरा के हिसाब से चलते हैं, उसमें सरकारी दखल की जरूरत नहीं है।
इसके बावजूद तमिलनाडु सरकार उस परंपरा के बाहर के पुजारियों की नियुक्ति आगमिक मंदिरों में करना चाहती है, जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है।
क्या होते हैं आगमिक मंदिर?
तमिलनाडु में 8000 से अधिक आगमिक मंदिर हैं। इनके निर्माण की शैली से लेकर पूजा पाठ का तरीका भिन्न होता है। ये मंदिर शैव, वैष्णव या तांत्रिक परपंरा के पालक हो सकते हैं या फिर द्रविड़ परंपरा के भी। ये मंदिर आम मंदिरों से भिन्न होते हैं। इनकी माँग है कि सरकार इनकी परंपराओं के पालन में अड़ंगा न लगाए। इसे इस बात से समझा जा सकता है कि तांत्रिक परंपरा के मंदिर में वैष्णव पुजारी की नियुक्ति कैसे हो सकती है? जबकि उस व्यक्ति ने पूरी जिंदगी कभी तांत्रिक प्रक्रिया में हिस्सा ही नहीं न लिया हो।
सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएँ
तमिलनाडु के मंदिरों पर सरकार के कब्जे के खिलाफ कई याचिकाएँ सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद इन पर सुनवाई हो रही है। ऐसी ही एक याचिका सुब्रमण्यम स्वामी ने भी दायर की है, जिसमें उन्होंने मंदिरों को सरकार के कब्जे से मुक्त कराने की माँग की है। साल 2022 में स्वामी की याचिका पर सुनवाई भी हो चुकी है, जिसमें उन्होंने द्रमुक सरकार द्वारा नास्तिकों को पुजारियों के तौर पर नियुक्ति का विरोध किया था। इसके अलावा भी कई अहम याचिकाएँ सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं।