सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बुधवार (27 जुलाई 2022) को एक महत्वपूर्ण फैसले में धन शोधन निवारण अधिनियम (Prevention of Money Laundering Act – PMLA) की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा। पीएमएलए कानून के तहत छापेमारी, गिरफ्तारी, कुर्की और जब्ती को कानूनी दायरे में बताया।
कॉन्ग्रेस समेत कुल 241 याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय की जस्टिस एएम खानविलकर, दिनेश माहेश्वरी और सीटी रवि की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया और प्रवर्तन निदेशालय (ED) को इस कानून की तहत दी गई शक्तियों को सही ठहराया।
सुप्रीम कोर्ट ने पीएमएलए कानून के तहत अपराध से बनाई गई आय, उसकी तलाशी और जब्ती, आरोपी की गिरफ्तारी की शक्ति जैसे PMLA के कड़े प्रावधानों को सही ठहराया। कोर्ट ने यह भी कहा कि FIR की तरह माने जाने वाले ECIR कॉपी को आरोपित को देना भी जरूरी नहीं है। ED द्वारा गिरफ्तारी के समय कारण बता देना ही इसके लिए काफी होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग एक स्वतंत्र अपराध है और इस कानून के सेक्शन 50 के तहत बयान लेने और आरोपी को बुलाने की शक्ति का अधिकार भी सही है। सुप्रीम कोर्ट में कहा कि इसके सेक्शन 5, सेक्शन 18, सेक्शन 19, सेक्शन 24 और सेक्शन 44 में जोड़ी गई उपधारा भी सही है। सुप्रीम कोर्ट ने इन 5 धाराओं को सही ठहराया है।
दरअसल, याचिकाकर्ताओं ने याचिका में कहा था कि जाँच एजेंसियाँ पुलिस शक्तियों का प्रयोग करती हैं, इसलिए उन्हें Cr.PC का पालन करने के लिए बाध्य होना चाहिए। इस मामले में कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी जैसे कई वरिष्ठ वकीलों ने अपना पक्ष रखा है।
बता दें कि भारत में मनी लॉन्ड्रिंग कानून-2002 में बना था। इसमें साल 2005, साल 2009 और साल 2012 में कुल तीन बार संशोधन किया जा चुका है। साल 2012 के आखिरी संशोधन 15 फरवरी 2013 से लागू हो गया था। पीएमएलए (संशोधन) अधिनियम, 2012 में अपराधों की सूची में धन को छुपाना, अपने पास रखना और धन का आपराधिक कामों में उपयोग इत्यादि को शामिल किया है।
केंद्र सरकार ने लोकसभा में बताया है कि पीएमएलए कानून 17 साल पहले लागू हुआ था। तब से अब तक इस कानून के तहत 5,422 मामले दर्ज किए गए हैं। वहीं, इस मामले में अब तक सिर्फ 23 लोगों को ही दोषी ठहराया गया है। केंद्र सरकार के अनुसार, 31 मार्च 2022 तक ED ने इस कानून के तहत एक लाख करोड़ रुपए से ज्यादा की संपत्ति जब्त की है और 992 मामलों में चार्जशीट दायर की है।