Thursday, November 21, 2024
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‘फेसबुक-इंस्टाग्राम से रोकना भी क्रूरता, कोई निश्चित परिभाषा नहीं’: पत्नी रहती थी मायके, तेलंगाना हाई कोर्ट ने पति की तलाक की याचिका स्वीकार की

उच्च न्यायालय ने माना कि पत्नी की हरकतें मानसिक क्रूरता के बराबर थीं और विवाह इतना टूट चुका था कि उसे सुधारा नहीं जा सकता था। हाई कोर्ट ने कहा, "क्रूरता ढहते ढाँचे के टुकड़ों में से एक है, जहाँ विवाह का आधार इस तरह से टूट गया है कि उस ढाँचे को न तो बचाया जा सकता है और न ही फिर से बनाया जा सकता है।"

तेलंगाना हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि एक पति या पत्नी द्वारा दूसरे की प्रति प्रतिष्ठा या सामाजिक कार्यों की संभावनाओं को नुकसान पहुँचाने वाला कोई भी कार्य क्रूरता के अंतर्गत आएगा। कोर्ट ने कहा कि विवाह केवल वचनों के आदान-प्रदान या एक समारोह से कहीं बढ़कर है। इसके लिए ईंट-दर-ईंट से एक साझा घर बनाने की आवश्यकता होती है, जो एक साथ जीवन जीने की निरंतर इच्छा से जुड़ा होता है। जब विश्वास दरक जाए तो उस संबंध का कोई अर्थ नहीं होता।

तेलंगाना हाई कोर्ट की न्यायाधीश मौसमी भट्टाचार्य और न्यायमूर्ति एमजी प्रियदर्शिनी की पीठ ने कहा कि यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि जीवनसाथी को फेसबुक और इंस्टाग्राम पर रहने से वंचित करना भी क्रूरता के समान हो सकता है। इसके बाद पीठ ने हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक माँगने की पति की अपील को स्वीकार कर लिया।

न्यायालय ने कहा कि विवाह को व्यक्तियों पर जबरन थोपा नहीं जा सकता। हाई कोर्ट ने यह भी कहा, “यह तथ्य कि दो व्यक्ति अब एक साथ जीवन की कल्पना नहीं कर सकते, विवाह को भंग करने और तलाक का आदेश देने के लिए पर्याप्त आधार के रूप में देखा जाना चाहिए।” कोर्ट ने माना की विवाह में संबंध में इतना टूट चुका है कि उसे सुधारा नहीं जा सकता।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत की खंडपीठ ने कहा, “पूरे मामले में न्यायालय की भूमिका सीमित है और उसे जल्लाद या परामर्शदाता के रूप में कार्य नहीं करना चाहिए, ताकि पक्षकारों को पति-पत्नी के रूप में बने रहने के लिए मजबूर किया जा सके। उनके बीच मन की बात हमेशा के लिए समाप्त हो गई हो। इस तरह की कवायद अनुचित और निरर्थक है।”

न्यायालय ने यह भी कहा कि मानसिक क्रूरता को एक निश्चित सूत्र में परिभाषित नहीं किया जा सकता, क्योंकि जिसे मानसिक क्रूरता माना जा सकता है, उसे ऐसे व्यवहार के रूप में देखा जा सकता है जो परेशान करने वाला या अवांछित हो, लेकिन क्रूर न हो। दरअसल, पति ने मानसिक एवं शारीरिक क्रूरता के आधार पर अपनी पत्नी से तलाक माँगा था।

दरअसल, यह मामला एक पति-पत्नी से जुड़ा हुआ है जिनकी शादी साल 2010 में हुई थी। शादी के कुछ समय बाद ही दोनों के बीच गंभीर वैवाहिक कलह शुरू हो गई। पत्नी ने साल 2011 में ससुराल छोड़ दिया और अपने पति के खिलाफ पाँच आपराधिक मामले दर्ज कराए। इनमें धारा IPC की धारा 498A के तहत क्रूरता और दहेज उत्पीड़न के आरोप भी शामिल हैं।

मई 2015 में पत्नी कुछ दिनों के लिए अपीलकर्ता पति के साथ रहने आई, लेकिन जल्द ही घर छोड़कर चली गई। इसके बाद उसने पति के खिलाफ और भी आपराधिक मामले दर्ज कराए। इनमें से कुछ मामलों में पति को बरी कर दिया गया। इसके बाद पति ने न्यायालय में तलाक की अर्जी दाखिल की। नवंबर 2021 में ट्रायल कोर्ट ने पत्नी के व्यवहार को क्रूरता नहीं मानते हुए तलाक देने से मना कर दिया।

इसके बाद ट्रायल कोर्ट के फैसले को अपीलकर्ता ने तेलंगाना हाई कोर्ट में चुनौती दी। पति ने दलील दी कि उसकी पत्नी ने उसके खिलाफ एक के बाद एक आपराधिक मामला दर्ज कराके शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया है। वहीं, पत्नी के वकील ने तर्क दिया कि पति को पत्नी की वित्तीय जरूरतों के लिए जिम्मेदार है और उसे भरण-पोषण सुनिश्चित किए बिना तलाक नहीं दिया जाना चाहिए।

उच्च न्यायालय ने माना कि पत्नी की हरकतें मानसिक क्रूरता के बराबर थीं और विवाह इतना टूट चुका था कि उसे सुधारा नहीं जा सकता था। हाई कोर्ट ने कहा, “क्रूरता ढहते ढाँचे के टुकड़ों में से एक है, जहाँ विवाह का आधार इस तरह से टूट गया है कि उस ढाँचे को न तो बचाया जा सकता है और न ही फिर से बनाया जा सकता है।”

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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